जयपुर: वसूली के सबसे बड़े नेटवर्क का सरगना आनंदपाल सिंह भी हर महीने किसी को बंधी देता था, बंधी भी एक ऐसे नकबजन को जिसने बाद में आनंदपाल को ही अपना पिता मान लिया और उसके लिए ही काम करने लगा।
इस फिल्मी कहानी में दो किरदार हैं, पहला आनंदपाल सिंह और दूसरा उसका ख़ास रसोईया श्रीवल्लभ। श्रीवल्लभ करीब बारह साल पहले आनंदपाल से वसूली करता था लेकिन बाद में उसने आनंदपाल को अपना पिता मान लिया और कोर्ट तक में पिता की जगह आनंदपाल का नाम दर्ज करने लगा।
बड़ा नकबजन था श्रीवल्लभ, कहता था दस रुपए रोज दो या 80 रुपए का लॉक तुड़वाओ
एसओजी अफसरों ने बताया कि श्रीवल्लभ और आनंदपाल 2003-2004 से ही एक दूसरे के संपर्क में थे। उस समय आनंदपाल ने अपराध की राह पर चलना शुरु ही किया था लेकिन श्रीवल्लभ शातिर नकबजन था। उसने डीडवाना बाजार में कारोबारियों को सरेआम चेतावनी दे रखी थी कि हर दुकानदार हर दिन या तो दस रुपए रोज दे या फिर हर रात उसकी दुकान का लॉक टूटेगा।
बड़ी हवेली और मकान वालों से भी यही कहकर वसूली होती थी कि या तो हर महीने दो सौ रुपए बंधी दो या फिर कभी भी लॉक तुड़वाकर लाखों का सामान पार हो सकता है। आनंदपाल भी श्रीवल्लभ को हर महीने दो सौ रुपए देता था। उसके कुछ परिचितों की दुकान भी डीडवाना में थी, उनकी तरफ से भी आनंदपाल ही श्रीवल्लभ को हर महीने दो सौ से ढाई सौ रुपए देता था।
श्रीवल्लभ की पत्नी के मरने पर आनंदपाल ने किया था अंतिम संस्कार
साल 2005 के बाद जब श्रीवल्लभ पुलिस के हत्थे चढ़ गया था तो उसके वियोग में उसकी पत्नी की मौत हो गई थी। उस समय जब पत्नी का अंतिम संस्कार करने वाला कोई रिश्तेदार तैयार नहीं हुआ तो आनदंपाल ने ही श्रीवल्लभ की पत्नी का अंतिम संस्कार किया और बाद में उसकी अस्थियों को हरिद्वार ले जाकर तर्पण तक किया।
कुछ समय बाद आनंदपाल को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय बीकानेर जेल में श्रीवल्लभ ने आनंदपाल का ध्यान रखा, वह उसका रसोईया बना। उसने सभी के सामने आनंदपाल को पापा बोलना शुरु कर दिया।
कोर्ट में पेशी के दौरान जब श्रीवल्लभ से उसके पिता का नाम पूछा गया तो श्रीवल्लभ ने सभी के सामने अपने पिता के नाम की जगह आनंदपाल का नाम लिखवाया। बाद में पेशी में आनदंपाल का नाम श्रीवल्लभ के पिता रामनिवास के पास ही लिखा गया।
Bureau Report
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