इन पांच बातों से समझिए क्‍या है मेरिटल रेप, क्‍या है विवाद?

इन पांच बातों से समझिए क्‍या है मेरिटल रेप, क्‍या है विवाद?नईदिल्ली: मेरिटल रेप का मसला दिल्‍ली हाईकोर्ट में चल रहा है. इसे अपराध की श्रेणी में डाला जाए या नहीं इस पर कोर्ट में बहस चल रही है. सरकार ने अपने जवाब में कहा कि मेरिटल रेप को अपराध नहीं माना जा सकता क्योंकि ऐसा करना विवाह की संस्था के लिए खतरनाक साबित होगा. यह पतियों को प्रताड़ित करने का जरिया बन सकता है. हालांकि महिला संगठनों ने इस जवाब पर नाराजगी जाहिर की है.

देश में पिछले कुछ सालों से मेरिटल रेप को अपराध बनाने की मांग चल रही है. इसको लेकर देश के अलग-अलग कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं. इनमें निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक शामिल है. लेकिन कोई एक स्‍पष्‍ट परिभाषा सामने नहीं आई है. सरकार हालांकि अपने रूख पर अडिग है और वह मेरिटल रेप को अपराध मानने के खिलाफ है. वर्तमान में मोनिका अरोड़ा नाम की वकील ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर रखा है.

कैसे शुरू हुई मांग

दिसंबर 2013 में निर्भया रेप कांड के बाद जस्टिस जेएस वर्मा कमिटी ने मेरिटल रेप को आपराधिक बनाने की सिफारिश की. इसमें कहा गया था कि रेप के दौरान शादी या अन्‍य रिश्‍ते आरोपी के बचाव का जरिया ना बने इसके लिए कानून होना चाहिए.

मेरिटल रेप पर सरकार का रूख

केंद्रीय महिला और बाल कल्‍याण विकास मंत्री मेनका गांधी ने मेरिटल रेप पर पिछले साल कहा था कि यह विदेशों में तो मान्‍य है लेकिन भारतीय संदर्भ में इसे लागू नहीं किया जा सकता. इसके कई कारण है जैसे अशिक्षा, गरीबी आदि. यही बात केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री हरीभाई परथीभाई चौधरी ने अप्रैल 2015 में राज्‍य सभा में कही थी.

मेरिटल रेप पर सरकार का रूख

केंद्रीय महिला और बाल कल्‍याण विकास मंत्री मेनका गांधी ने मेरिटल रेप पर पिछले साल कहा था कि यह विदेशों में तो मान्‍य है लेकिन भारतीय संदर्भ में इसे लागू नहीं किया जा सकता. इसके कई कारण है जैसे अशिक्षा, गरीबी आदि. यही बात केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री हरीभाई परथीभाई चौधरी ने अप्रैल 2015 में राज्‍य सभा में कही थी.

कोर्ट क्‍या कहता है

इसी साल मई में दिल्‍ली हाईकोर्ट ने एक एनजीओ की याचिका पर मेरिटल रेप को गंभीर समस्‍या माना. कोर्ट ने कहा कि यह समाज का अंग बन गया है. यह चुनौती है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने कहा था कि इसे अपराध नहीं माना जा सकता. उच्‍चतम न्‍यायालय ने दो साल पहले 2015 में भी इसी तरह की एक याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने उस समय कहा था कि एक आदमी के लिए कानून में बदलाव नहीं किया जा सकता.

महिला संगठनों की मांग

महिला संगठन पुरजोर तरीके से मेरिटल रेप के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए हैं. उनका कहना है कि शादी की आड़ में महिलाओं के साथ जबरदस्‍ती नहीं की जा सकती. महिला के ना कहने का मतलब ना ही होना चाहिए.

Bureau Report

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*