नईदिल्ली: क्रूड के दाम में तेजी के बावजूद तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को 16 से 19 अप्रैल के बीच स्थिर रखा और फिर 24 से 29 अप्रैल के बीच भी यही स्थिति रही यानि मंगलवार से रविवार के बीच दिल्ली में पेट्रोल 74.63 रुपए प्रति लीटर और डीजल 65.93 रुपए प्रति लीटर पर स्थिर रहा. हालांकि पेट्रो उत्पादों की कीमतें रोज तय होती हैं. लेकिन इस कार्रवाई पर अचानक ब्रेक का कारण क्या है? विश्लेषकों की मानें तो इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, जिनका 90 फीसदी ईंधन रिटेलिंग पर नियंत्रण है, के शेयरों में 11 अप्रैल तक 9 से 16 फीसदी की गिरावट तक दर्ज की गई क्योंकि इस दौरान तेल कीमतों में आग लगी हुई थी. मीडिया रिपोर्टों में दावा है कि कीमतों में संशोधन सरकार के कहने पर रोका गया. हालांकि पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इसका खंडन कर चुके हैं. उनका कहना था कि कर्नाटक चुनाव को लेकर सरकार की ओर से पेट्रो उत्पादों की कीमतों में संशोधन को रोकने के लिए कोई निर्देश नहीं जारी किया गया है. कर्नाटक में 12 मई को मतदान है.
चार महानगरों में नहीं बढ़े दाम
इकोनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 24 से 29 अप्रैल के बीच दिल्ली में पेट्रोल 74.63 रुपए प्रति लीटर और डीजल 65.93 रुपए प्रति लीटर था. वहीं कोलकाता में यह क्रमश: 77.32 और 68.63 रुपए प्रति लीटर, मुंबई में 82.48 और 70.2 रुपए प्रति लीटर और चेन्नै में 77.43 व 69.56 रुपए प्रति लीटर था. पेट्रोल और डीजल पर से सरकारी नियंत्रण काफी पहले हट गया था लेकिन माना जा रहा है कि सरकार चुनाव के वक्त सरकारी कंपनियों से कीमतों में मामूली बढ़ोतरी के लिए ही कहती है. कंपनियां उस दौरान हुए घाटे की भरपाई मतदान के बाद कीमतें बढ़ाकर करती हैं. सरकारी तेल कंपनियों की कीमतों को देखकर ही रिलायंस, एस्सार जैसी प्राइवेट तेल कंपनियां अपनी कीमतें तय करती हैं.
गुजरात चुनाव के वक्त भी स्थिर हो गई थी कीमतें
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में रोजाना संशोधन का नियम है, यानि दाम क्रूड के स्तर को देखकर तय होते हैं. फाइनेंशियल एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक गुजरात में विधानसभा चुनाव दिसंबर 2017 में हुए थे. दिसंबर के पहले 15 दिन इंडियन ऑयल ने रोजाना सिर्फ एक से तीन पैसे तक ईंधन के दाम बढ़ाए लेकिन 14 दिसंबर को मतदान के बाद कीमतें बेतहाशा बढ़ीं. तब यह कयास लगे थे सरकार के कहने पर कंपनियों ने कीमतें नहीं बढ़ाईं. हालांकि पेट्रोलियम मंत्री प्रधान ने तुरंत इसका खंडन किया था. उन्होंने कहा था कि हमारी तरफ से ऐसा कोई निर्देश नहीं है. उस समय कंपनियों को एक रुपए प्रति लिटर का घाटा सहना पड़ा था. आईओसी के चेयरमैन संजीव सिंह ने भी कहा था कि हमें सरकार की ओर से कोई निर्देश नहीं मिला है.
आठ साल पहले सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गया था पेट्रोल
पेट्रोल जून 2010 से सरकारी नियंत्रण से बाहर हैं. इसके बाद अक्तूबर 2014 में डीजल को भी इस व्यवस्था के तहत लाया गया. उसके बाद माह में दो बार कीमतों में संशोधन होने लगा था. लेकिन तेल कंपनियों ने बीते एक साल से रोजाना कीमतों में संशोधन की व्यवस्था शुरू कर दी.
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