कर्नाटक चुनाव 2018 : सियासी बिसात पर भाजपा ने चले ये 5 दांव और कांग्रेस को मिली मात.

कर्नाटक चुनाव 2018 : सियासी बिसात पर भाजपा ने चले ये 5 दांव और कांग्रेस को मिली मात.कर्नाटक: भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से चुनावों में बड़ी कामयाबी हासिल कर देश के 21वें राज्य पर अपना कब्जा जमा लिया है. देश के करीब 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर अब भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. एक बार फिर से भाजपा की जीत का सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. तमाम दावों को झुठलाते हुए भाजपा ने कांग्रेस को उसके सबसे बड़े किले धकिया दिया.

भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाती दिख रही है. जनता दल सेक्युलर ने अपना प्रदर्शन तो सुधारा लेकिन लगता नहीं कि भाजपा को वह अपने दम पर सरकार बनाने से रोक पाएगी. कांग्रेस एक बार फिर से राहुल गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद अपनी सत्ता नहीं बचा पाई. गुजरात के बाद उसे यहां बड़ी उम्मीद थी, लेकिन गुजरात के बाद कर्नाटक में भी उसे निराशा ही मिली.

कर्नाटक में भाजपा को मिल रही कामयाबी के ये पांच कारण रहे….

प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा एक बार फिर काम आया 
तमाम चुनावों की तरह इन चुनावों में भी भाजपा के सबसे बड़े पोस्टर ब्वॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. उन्होंने यहां कुल 21 रैलियां की. ये प्रधानमंत्री मोदी के आक्रामक चुनाव प्रचार का ही नतीजा रहा कि कर्नाटक के 6 में से 5 क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिली. यहां तक मैसुरु के क्षेत्र में भी कमजोर रहने वाली भाजपा ने इस बार कांग्रेस के बराबर सीटें हासिल की. मोदी ने पहले ही कह दिया था कि इस चुनाव के बाद कांग्रेस 3 पी में बदल जाएगी.

अमित शाह का बूथ मैनेजमेंट 
कर्नाटक चुनाव में एक बार फिर से दिखा दिया कि इस समय देश में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जैसा चुनाव मैनेजमेंट करने वाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है. सिद्धारमैया के खिलाफ पिछले पांच साल में ऐसी कोई लहर नहीं थी, जिसे बड़ा मुद्दा बनाया जा सके. लेकिन प्रधानमंत्री के साथ साथ अमित शाह ने उन पर आक्रामक हमले किए. और उन्हें कमीशन वाला मुख्यमंत्री बताया. इतना ही नहीं अमित शाह कर्नाटक के लोगों को लिंगायत के मुद्दे पर अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे. पन्ना प्रमुख का उनका फॉर्मूला भी यहां कारगर रहा.

आरआरएस की मजबूत किलेबंदी
एक बार फिर से भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मजबूत किले बंदी की. उन्होंने चुनाव से छह महीने पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को कर्नाटक के अलग अलग क्षेत्रों में भेज दिया. यहां तक कि कई कार्यकर्ता तो ऐसे रहे, जिन्हें कन्नड़ भाषा भी नहीं आती.

लिंगायत को अलग धर्म बनाने का मुद्दा 
कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले लिंगायत को अलग धर्म के तौर पर मान्यता देने का मास्टर स्ट्रोक चला था. लेकिन कांग्रेस पर ये दांव ठीक उल्टा पड़ा. लिंगायत बहुल इलाके में भाजपा को बाकी सभी पार्टियों के मुकाबले सबसे ज्यादा सीटें मिलीं. यहां लिंगायत बहुल इलाके में भाजपा को 39 सीटें मिलीं.

वोक्कालिगा समुदाय का गुस्सा भारी पड़ा

इन चुनावों में सिद्धारमैया ने शुरुआत से ही देवेगौड़ा के परिवार पर आक्रामक हमले किए. उन्होंने सभी चुनावी सभा में कहा, कि देवेगौड़ा परिवार से कोई कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकता. परिणामों को अगर देखें तो वोक्कालिगा समुदाय कांग्रेस से बुरी तरह खफा नजर आया. वोक्कालिगा बहुल आबादी वाली सीटों पर कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई. यहां जेडीएस पहले नंबर पर है.

Bureau Report

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