कर्नाटक: कर्नाटक में सियासी घमासान के बीच प्रोटेम स्पीकर पद पर बीजेपी एमएलए केजी बोपैया की नियुक्ति का कांग्रेस और जेडीएस ने विरोध किया है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्नाटक में जो सबसे वरिष्ठ एमएलए हो उसे ही इस पद पर नियुक्त किया जाए. इसी आधार पर कांग्रेस और जेडीएस बोपैया का विरोध कर रहे हैं लेकिन इस बीच बीजेपी ने एक ट्वीट में 1956 और 1977 के मामले का हवाला दिया है. बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस की यह दलील की प्रोटेम स्पीकर सबसे वरिष्ठतम एमएलए को बनाया जाना चाहिए, तर्कहीन है. 1956 और 1977 में सरदार हुकुम सिंह और डीएन तिवारी प्रोटेम स्पीकर बनाए गए थे लेकिन वे सबसे वरिष्ठ एमएलए नहीं थे. कांग्रेस के डरने का एक कारण यह भी है कि 2011 में बोपैया के कर्नाटक विधानसभा का स्पीकर रहते उन्होंने अपनी ही पार्टी के 11 असंतुष्ट विधायकों को अयोग्य करार दिया था. उस समय येदियुरप्पा सरकार को विश्वास मत हासिल करना था. मीडिया रिपोर्ट में दावा है कि बोपैया ने येदियुरप्पा को मदद पहुंचाने के लिए ऐसा किया.
2011 में जल्दबाजी में 16 विधायकों पर की थी कार्रवाई
बीजेपी एमएलए केजी बोपैया बीजेपी के शासनकाल में 2009 से 2013 के बीच कर्नाटक विधानसभा के सभापति रहे थे. उन्हें सीएम बीएस येदियुरप्पा का नजदीकी माना जाता है. विवाद से उनका नाता पहले से है. 2011 में उन्होंने येदियुरप्पा सरकार के विश्वासमत से पहले अपनी ही पार्टी के 11 असंतुष्ट विधायकों व 5 निर्दलीय सदस्यों को अयोग्य करार दिया था. इस कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन अदालत ने उनके फैसले को कायम रखा. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया. शीर्ष न्यायालय की टिप्पणी थी कि बोपैया ने फैसला लेने में हड़बड़ी की.
विराजपेट से जीतते आए हैं चुनाव
बोपैया विराजपेट सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते आए हैं. कांग्रेस उनके 2011 के फैसले के कारण विरोध कर रही है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली है. सीएम येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 111 विधायकों का समर्थन चाहिए. 222 सीटों पर चुनाव में उसे 104 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस और जेडीएस को क्रमश: 78 और 38 सीटें मिली हैं.
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