रांची: रात में लैपटॉप और मोबाइल चार्ज में लगाकर सो जाना हमारी-आपकी आदतों में शुमार है. हमारी छोटी सी भूल कितनी बड़ी सजा बन सकती है इस बात का अंदाजा आप रांची के निशांत केडिया की कहानी पढ़कर लगा सकते हैं. इस भूल ने 40 की उम्र में हंसता खेलता परिवार और अच्छी नौकरी के साथ सुखमय जीवन बिता रहे निशांत केडिया की जिंदगी बदलकर रख दिया.
मां-बाप के इकलौते संतान निशांत केडिया सीमेंट का कारोबार करते थे. ऑफिस में काम निपटाने के बाद देर रात तक घर पर उन्हें लैपटॉप की मदद से बिजनेस का काम निपटाना पड़ता था. नौ दिसंबर 2017 को निशांत के माता-पिता किसी शादी में गए हुए थे. घर पर निशांत, उनकी पत्नी और दोनों बच्चे थे. रात करीब एक बजकर 11 मिनट पर निशांत लैपटॉप पर काम करते रहे और पत्नी को दूसरे कमरे में जाकर सोने के लिए कह दिया. काम करते-करते निशांत को कब नींद आ गई उन्हें पता नहीं चला. लैपटॉप ऑन रहा और वह सो गए.
रात करीब दो बजे निशांत के कमरे से जोरदार धमाके की आवाज आई. बगल के कमरे में सो रही उनकी पत्नी दौड़कर पहुंची तो कमरे का दरवाजा नहीं खुल रहा था. पड़ोसियों की मदद से किसी तरह दरवाजा खोला गया. अंदर का माहौल देखकर सभी दंग रह गए. पूरा कमरा आग की लपेट में था और धुआं-धुआं हो गया था. बिस्तर, टीवी, एसी, कंबल सहित आस-पास के सभी सामान जल चुके थे. निशांत बाथरूम में सॉवर के नीचे बेसुध पड़े हुए थे.
दरअसल जब लैपटॉप गर्म होकर फटा तो निशांत की नींद खुली. वह दरवाजे की तरफ भागे, लेकिन दरवाजा नहीं खुला तो वह शरीर की जलन को कम करने के लिए बाथरूम पहुंचे और सॉवर खोलकर उसके नीचे बैठ गए.
निशांत के बिजनेस पार्टनर और उनके चचेरे भाई प्रदीप केडिया के अनुसार लैपटॉप ब्लास्ट होने का सबसे बड़ा कारण था उसका चार्ज में लगा रहना. निशांत के सो जाने के बाद लैपटॉप कंबल के नीचे चला गया. बिस्तर के नीचे भी प्लास्टिक लगा हुआ था क्योंकि निशांत के बच्चे भी उसी बिस्तर पर सोते थे. प्लास्टिक और सिंथेटिक कंबल होने के कारण लैपटॉप गर्म हो गया और फट गया.
पड़ोसियों की मदद से किसी तरह निशांत को रांची के ही एक हॉस्पिटल में ले जाया गया. 11 दिनों तक लगातार इलाज होने के बाद स्थिति में सुधार नहीं होता देख परिजन उन्हें 20 जनवरी को मुंबई ले गए. मुंबई में निशांत के चेहरे के 30 से अधिक ऑपरेशन हुए. पांच महीने तक लगातार निशांत का इलाज चलता रहा. धमाके का असर निशांत के पूरे शरीर पर पड़ा. उनके पूरे चेहरे की रंगत बदल गई. हाथ और पैर काम करना बंद कर दिए.
12 मार्च को निशांत पैरालिसिस के शिकार हो गए. निशांत के शरीर का बाएं का हिस्सा पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया. निशांत धीरे-धीरे जीने की उम्मीद छोड़ चुके थे, लेकिन डॉक्टरों की टीम ने किसी तरह उन्हें बचा लिया. 28 मई को वह मुंबई से इलाज रांची लौट आए हैं, लेकिन अभी भी बिस्तर और व्हीलचेयर पर जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं.
निशांत की घटना से परिवार वालों ने ऐसा सबक लिया है कि अब रात को कोई भी व्यक्ति मोबाइल भी चार्ज में लगाकर नहीं सोता है. ऑफिस में जो लैपटॉप यूज करते हैं वह नीचे फैन प्लेट का प्रयोग करना नहीं भूलते हैं. निशांत का चेंबर आज भी खाली है और हर दिन उनके ठीक होकर लौटने का इंतजार कर रहा है. इलाज में अबतक 40 लाख रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं. निशांत के छोटे भाई की मौत सात साल पहले करेंट लगने से हो गई थी.
Bureau Report
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