नईदिल्ली: देश का राजनैतिक मिजाज कुछ ऐसा हो गया है कि भले ही 2018 अभी आधा बीता हो, लेकिन सबका दिमाग 2019 की गर्मियों पर अटक गया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने चार साल में क्या हासिल किया, इसके ब्योरे से सरकारी विज्ञापन भरे पड़े हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने नेताओं को आम चुनाव की तैयारी के लिए अभी से जमीन पर उतार दिया है. उधर, विपक्ष की सारी कोशिश एक ऐसा बीजेपी विरोधी गठजोड़ बनाने की है, जो 2019 में देश का सियासी भूगोल बदल दे.
ऐसे में इस यहां इस बात की पड़ताल करने की कोशिश की जाएगी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में चली प्रचंड मोदी लहर और बीजेपी की बंपर जीत के बाद से देश का मिजाज कहां तक बदला है. इस मिजाज को भांपने का एक तरीका तो नेताओं की लोकप्रियता जांचने वाले सर्वे होते हैं, लेकिन एक तरीका यह भी हो सकता है कि 2014 के बाद से देश के अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में लोगों का मन कैसे बदला है.
इस दौरान हुए विधानसभा चुनावों में वोटर के मिजाज पर गौर करें तो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती दिखाई देती है. यह भी गजब का विरोधाभास है कि 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी एक के बाद एक राज्य में सरकार बनाती चली गई. और एक समय ऐसा आया कि देश के 21 राज्यों में या तो पार्टी की सरकार थी या फिर वह मुख्य गठबंधन सहयोगी थी. लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि राज्यों में जीत के बावजूद अधिकतर राज्यों में बीजेपी का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में घटता चला गया.
शाह और राहुल दोनों गिना रहे विधानसभा चुनाव के परिणाम
कई विशेषज्ञों का मानना है कि विधानसभा चुनाव के परिणामों की तुलना लोकसभा चुनाव के परिणाम से करना तर्कसंगत नहीं है. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेता लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनावों में अपने-अपने प्रदर्शन को याद दिला रहे हैं, उससे लगता है कि ये नेता भी लोकसभा चुनाव पर विधानसभा चुनावों के नतीजों का कुछ न कुछ असर तो मानते ही हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में जी न्यूज को दिए इंटरव्यू में याद दिलाया था कि किस तरह बीजेपी ने एक के बाद एक विधानसभा चुनाव जीते हैं. यह बताता है कि देश में मोदी की लोकप्रियता बरकरार है. दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार याद दिला चुके हैं कि गुजरात चुनाव मोदी के लिए खतरे की घंटी थी. उनका कहना है कि गुजरात में मोदी को धक्का लगा था और कर्नाटक ने बीजेपी को सबक दिया है. और 2019 में मोदी की उलटी गिनती शुरू हो गई है.
विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए चुनौती क्यों बन गए हैं, इसे समझने के लिए 2014 लोकसभा चुनाव के बाद देश के प्रमुख राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव का अध्ययन करते हैं…
असम में घटे 7 फीसदी वोट
सबसे पहले असम को लेते हैं. यह एक ऐसा राज्य है, जहां आजादी के बाद बीजेपी ने न सिर्फ पहली बार सत्ता में आई, बल्कि यहां से उसके लिए पूर्वोत्तर का द्वार खुल गया. लेकिन जरा वोट परसेंट पर गौर करें तो 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 36.86 फीसदी वोट मिले थे, यही वोट 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में घटकर 29.5 फीसदी पर आ गए.
यानी लोकसभा चुनाव के सालभर के भीतर हुए विधानसभा चुनाव में असम में बीजेपी ने करीब 7 फीसदी वोटर गंवा दिए. मजे की बात यह है कि वोट गंवाने के बावजूद बीजेपी ने राज्य में सरकार बना ली. वोटों में आई इस कमी को जरा गौर से देखें तो विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद कांग्रेस का वोट लोकसभा की तुलना में न सिर्फ 1 फीसदी बढ़ा, बल्कि उसे बीजेपी से ज्यादा वोट मिले. कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में 30.96 फीसदी वोट मिले.
इसी चुनाव में असम की क्षेत्रीय पार्टी एआइयूडीएफ को 13 फीसदी वोट मिले. ऐसे में अगर कहीं कांग्रेस एआइयूडीएफ के साथ गठबंधन कर लेती है तो बीजेपी की मुश्किलें बहुत बढ़ जांएगी. एक तरफ तो उसके पास 2014 की तुलना में कम वोट होंगे और दूसरी तरफ एक मजबूत गठबंधन होगा. ऐसे में पिछले लोकसभा चुनाव में असम की 7 सीटों की जीत का दुहराना बीजेपी के लिए कठिन होगा. अगर गठबंधन नहीं भी होता है तो भी बीजेपी को 2014 की लोकसभा की तरह एकतरफा बढ़त हासिल नहीं होगी.
बिहार में घटे 5 फीसदी वोट
बिहार का गणित बहुत पेचीदा है. क्योंकि यहां के राजनैतिक समीकरण 2014 के पहले से लेकर अब तक बहुत झूला झूल चुके हैं. इसकी पूरी संभावना है कि ये समीकरण आगे और हिचकोले खांए. फिर भी 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29.86 फीसदी वोट मिले और 22 सीटें मिलीं. वहीं विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट परसेंट घटकर 24.42 फीसदी पर आ गया. विधानसभा में बीजेपी की सीटें बहुत ज्यादा घट गईं, लेकिन उसकी मुख्य वजह राजद, जेडीयू और कांग्रेस का महागठबंधन था. इसलिए सीटों की तुलना की जगह सिर्फ वोट फीसद की गिरावट को चिंता का विषय माना जाएगा. मजे की बात यह है कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ बीजेपी का वोट परसेंट नहीं गिरा, आरजेडी और कांग्रेस के वोट में भी मामूल कमी आई. जबकि जेडीयू का वोट स्थिर रहा. बिहार में चूंकि लोकसभा चुनाव नए गठबंधनों के साथ होंगे, ऐसे में वोट परसेंट से कोई नतीजा निकालना मुश्किल है.
गोवा में गंवाए 22 फीसदी वोट
लोकसभा में गोवा की सिर्फ दो सीटें हैं, लेकिन यहां का गणित दिलचस्प होगा. राज्य में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 54.12 फीसदी वोट मिले थे, जो 2017 विधानसभा चुनाव में घटकर 32.48 फीसदी पर आ गए. विधानसभा में दूसरे नंबर की पार्टी रहने के बावजूद बीजेपी ने यहां सफलतापूर्वक सरकार बना ली. लेकिन लोकसभा की तुलना में विधानसभा में वोट फीसद में 22 फीसदी की गिरावट कोई मामूली बात नहीं है.
गुजरात में 11 फीसदी वोट का नुकसान
गुजरात में दिसंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इस पश्चिमी राज्य में अपनी बादशाहत बरकरार रखी. प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष के गृहराज्य में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई. लेकिन जरा वोटों पर नजर डालें तो लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को जहां 60.11 फीसदी वोट मिले थे, वही वोट 2017 में घटकर 49.05 फीसदी पर आ गए. यानी पार्टी को 11 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ. दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट फीसद 33.45 फीसदी से बढ़कर 41.44 फीसदी तक पहुंच गया. यानी कांग्रेस को 7 फीसदी वोटों का फायदा हुआ. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां की सभी 26 लोकसभा सीटें जीती थीं. घटा हुआ वोट बैंक, यहां भी बीजेपी की लिए नई चुनौती हो सकता है.
हरियाणा में एक फीसदी का नुकसान
हरियाणा में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के ठीक बाद 2014 में ही हो गए थे. यानी लोकसभा और विधानसभा के बीच मतदाता का मूड बहुत कम बदला था. यहां भी विधानसभा चुनाव में बंपर जीत के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई थी. यहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मामूली वोट गिरावट देखनी पड़ी और पार्टी को वोट 34.84 से घटकर 33.24 फीसदी हो गया. पार्टी के लिए राहत की बात यह रही कि इस बीच कांग्रेस का वोट फीसद 22.99 फीसदी से घटकर 20.58 फीसदी पर आ गया. ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल को यहां दोनों चुनाव में 24 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले. हरियाणा में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 10 में से 7 विधानसभा सीटें जीती थीं.
हिमाचल प्रदेश में गंवाए 5 फीसदी वोट
लोकसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी को 53.85 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 48.79 फीसदी वोट मिले. यानी बीजेपी को 5 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ. इस राज्य की चारों लोकसभा सीटें बीजेपी के पास हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट में बहुत मामूली इजाफा हुआ. यहां कांग्रेस 41 फीसदी से कुछ अधिक वोट पाई.
जम्मू-कश्मीर में 10 फीसदी वोट का नुकसान
जम्मू-कश्मीर में भी लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद 2014 में ही विधानसभा चुनाव हुए. यहां की 6 में से 3 लोकसभा सीट जीतने वाली बीजेपी को लोकसभा में 32.65 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट घटकर 22.98 फीसदी रह गया. यानी लोकसभा चुनाव के छह महीने के भीतर पार्टी का 10 फीसदी वोट खिसक गया. यहां सिर्फ बीजेपी को ही नुकसान नहीं हुआ, लोकसभा में 23 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस का भी 5 फीसदी वोट विधानसभा चुनाव में खिसक गया.
यहां वोटों के लिहाज से सबसे ज्यादा फायदे में रही नेशनल कॉन्फ्रेंस. पार्टी को लोकसभा में 11.22 फीसदी वोट मिले थे जो विधानसभा में बढ़कर 20.77 फीसदी हो गए. यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस यहां अहम खिलाड़ी होगी. नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले ही लोकसभा उपचुनाव में एक सीट पीडीपी से छीन चुकी है. यहां बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाली पीडीपी को विधानसभा में 22.67 फीसदी वोट मिले थे.
इस राज्य में वोट परसेंट के अंतर से हार जीत पर कितना अंतर पड़ेगा यह कहना कठिन है. क्योंकि बीजेपी को जम्मू में वोट मिलते हैं और पीडीपी को कश्मीर में. इस तरह पूरे राज्य में इनका औसत वोट प्रतिशत कम होने के बावजूद ये पार्टियां पिछले चुनाव में अच्छी सीटें पा गई थीं. दूसरी तरफ कांग्रेस का वोटर पूरे राज्य में बिखरा है.
कर्नाटक में 7 फीसदी वोटर खिसके
कर्नाटक में 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 43.37 फीसदी वोट और 17 लोकसभा सीटें मिली थीं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट बैंक घटकर 36 फीसदी रह गया. यानी पार्टी का 7 फीसदी वोट खिसक गया. यहां लोकसभा की तुलना में कांग्रेस का वोट भी 3 फीसदी गिरा और पार्टी को 38 फीसदी वोट मिले. राज्य विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों का फायदा मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी के जनता दल सेकुलर को हुआ. जेडीएस का वोट 11 फीसदी बढ़कर 18 फीसदी हो गया.
अब कांग्रेस और जेडीएस के बीच गठबंधन भी हो चुका है. यह बीजेपी के लिए चुनौती और बढ़ा देगा.
केरल में वोट प्रतिशत में मामूली इजाफा
केरल एक ऐसा राज्य है जो बीजेपी की जीत के नक्शे पर कहीं नहीं है. लेकिन यहां लोकसभा चुनाव 2014 की तुलना में विधानसभा चुनाव 2016 में बीजेपी के वोट में मामूली ही सही बढ़त देखने को मिली. यहां पार्टी को लोकसभा के 10.45 फीसदी की जगह विधानसभा में 10.53 फीसदी वोट मिले.
लेकिन राज्य का सियासी गणित ऐसा है कि उसे लोकसभा में कोई सीट नहीं मिली थी और विधानसभा में सिर्फ एक सीट मिली. इस राज्य में पार्टी की सत्ता से जुड़ी संभावनाएं नगण्य हैं. यहां मुख्य मुकाबला लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस गठजोड़ के बीच है.
महाराष्ट्र में बढ़े वोट
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव 2014 के तुरंत बाद 2014 में ही विधानसभा चुनाव हुए. यहां विधानसभा चुनाव में लोकसभा की तुलना में बीजेपी को ज्यादा वोट मिले. पार्टी को लोकसभा में 27.66 फीसदी वोट मिले थे, जो विधानसभा में बढ़कर 27.81 फीसदी हो गए. यहां कांग्रेस को आधे फीसदी वोट का नुकसान हुआ था.
पंजाब में खिसके वोट, गई सत्ता
पंजाब में बीजेपी मुख्य खिलाड़ी नहीं है. यहां वह अकाली दर की छोटी सहयोगी की भूमिका में रहती है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 8.77 फीसदी और अकाली दल को 26.37 फीसदी वोट मिले थे. यहां 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 3.5 फीसदी और अकादी दल को 1.5 फीसदी का नुकसान हुआ. मजे की बात यह है कि दोनों दलों के नुकसान के बराबर ही 5 फीसदी वोटों का फायदा कांग्रेस को हुआ. यहां कांग्रेस की सरकार है. पिछले लोकसभा में बीजेपी-अकाली गठबंधन को 6 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को 3. चार सीटें आम आदमी पार्टी को मिली थीं. जाहिर है पंजाब भी बीजेपी के लिए नई चुनौती लेकर आएगा.
उत्तर प्रदेश में तीन फीसदी वोट घटे
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश ही रहा था. यहां से बीजेपी गठबंधन को 80 में से 73 सीटें मिली थीं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 42.63 फीसदी वोट मिले थे, जबकि विधानसभा चुनाव 2017 में पार्टी को 39.67 फीसदी वोट मिले. पार्टी के वोट में 3 फीसदी की मामूली कमी आई. एक तरह से देखा जाए तो 2014 से 2017 तक राज्य में मोदी की लोकप्रियता देश के बाकी राज्यों की तुलना में कहीं अच्छी रही.
लेकिन पार्टी के सामने यहां सबसे बड़ी चुनौती दो क्षेत्रीय दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच संभावित चुनाव पूर्व गठबंधन है. अगर यह गठबंधन हो जाता है और इसमें कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल को भी एंट्री मिल जाती है, तो बीजेपी के सामने खड़ी चढ़ाई होगी.
पश्चिम बंगाल में 7 फीसदी वोट छिटके
सीटों के लिहाज से पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन पूरे देश में मौजूदगी दिखाने के लिए यह बीजेपी का सबसे प्रिय राज्य है. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को यहां तीन लोकसभा सीटें और 17 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन विधानसभा चुनाव 2016 में पार्टी को महज 10.16 फीसदी वोट मिले. पार्टी का 7 फीसदी वोट खिसक गया.
इसकी एक स्पष्ट वजह तो यह थी कि विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का सीधा मुकाबला लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन से था. बीजेपी कोई विकल्प नहीं थी. लेकिन इतना ता है कि पार्टी ने अपना वोटर गंवाया.
झारखंड में 9 फीसदी वोट गंवाए
झारखंड भी उन राज्यों में है जिन्हें बीजेपी ने मोदी राज में जीता और सरकार बनाई. लेकिन यहां भी वही कहानी है. 2014 लोकसभा में बीजेपी को यहां 40.71 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि विधानसभा 2014 में बीजेपी के वोट घटकर 31.26 फीसदी रह गए. इसी तरह कांग्रेस के वोट भी 13.48 फीसदी से घटकर 10.46 फीसदी रह गए.
यहां सबसे बड़ा फायदा झारखंड मुक्ति मोर्चा को हुआ. पार्टी के वोट लोकसभा के 9.42 फीसदी से बढ़कर 20.43 फीसदी हो गए. यानी वोटों में 11 फीसदी का तेज उछाल. अगर राज्य में कांग्रेस झामुमो में गठबंधन होता है, तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. यहां बीजेपी को लोकसभा की 14 में से 12 सीटें मिली थीं.
उत्तराखंड में 9 फीसदी वोट की चपत
पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी को 55.93 फीसदी वोट और सभी 5 लोकसभा सीटें मिली थीं. विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी का वोट घटकर 46.51 फीसदी हो गया. यानी वोट फीसद में 9 फीसदी की कमी आई. लेकिन इस बीच कांग्रेस का वोट फीसद भी 34.40 से घटकर 33.49 फीसदी पर आ गया. हालांकि बीएसपी का वोट 4.78 फीसदी से बढ़कर 7 फीसदी जरूर हो गया. अगर राज्य में कांग्रेस और बीएसपी एक साथ आती हैं तो बीजेपी का संकट बढ़ेगा.
दिल्ली में 14 फीसदी वोट का नुकसान
लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत मिली और 46.63 फीसदी वोट मिले. विधानसभा चुनाव 2015 में बीजेपी का वोट घटकर 32.78 फीसदी रह गया. बीजेपी को यहां 14 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ. कांग्रेस ने भी यहां 6 फीसदी वोट गंवाए. दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का वोट बैंक 33 फीसदी से बढ़कर 54 फीसदी हो गया.
पूर्वोत्तर में जबरदस्त फायदा
अगर असम को छोड़ दें तो पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में बीजेपी की लहर 2014 के लोकसभा चुनाव में पहुंची ही नहीं थी. लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में यहां वैसी मोदी लहर दिखाई दी, जैसी बाकी देश ने 2014 में देखी. त्रिपुरा इसके सबसे अच्छा उदाहरण है. 2014 के लोकसभा चुनाव में त्रिपुरा में बीजेपी को महज 5.77 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 50 फीसदी के करीब वोट पाकर यहां सरकार बना ली. इसी दौरान बीजेपी ने मणिपुर में सरकार बनाई. अरुणाचल प्रदेश में तो पूरी कांग्रेस ही बीजेपी बन गई.
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा में इस दौरान नहीं हुए विधानसभा चुनाव
इन छह राज्यों को ऊपर के गुणा-भाग से बाहर रखना पड़ा है, क्योंकि इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां इस साल के अंत में चुनाव होंगे, वहीं आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में इन राज्यों को इस फॉर्मूले के तहत इस विश्लेषण में शामिल नहीं किया जा सकता.
हालांकि बीजेपी को इस बात का अंदाजा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे पहले जैसा प्रदर्शन दुहराना मुश्किल होगा. उड़ीसा में बीजेपी जिस तरह मेहनत कर रही है, ऐसे में वह नवीन पटनायक के इस गढ़ में थोड़ी बहुत सेंधमारी कर सकती है. आंध्र और तेलंगाना के पत्ते खुलना अभी बाकी है. वहीं तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही खास वजूद नहीं है.
घटता वोट बैंक कितनी बड़ी चुनौती होगा
विधानसभा चुनाव के नतीजों का लोकसभा चुनाव पर कोई असर होता है या नहीं. इस सवाल पर चुनाव सर्वेक्षण करने वाली प्रमुख एजेंसी सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार कहते हैं, हां यह सच है कि लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के वोट घटे हैं. लेकिन यह कोई अनोखी घटना नहीं है. अगर कांग्रेस पुराने लोकसभा चुनाव और उनके बाद हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम देखेंगे तो भी मिलत जुलता ट्रेंड मिलेगा. क्योंकि लोकसभा ज्यादा वोट पाने के बाद विधानसभा के चुनाव में कुछ एंटी इनकंबेंसी होती ही है. दूसरी बात यह कि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे और क्षेत्रीय दल भी असर डालते हैं. जबकि लोकसभा में इनका असर उतना नहीं होता. ऐसे में विधानसभा चुनाव के परिणाम को न तो नजरंदाज किया जा सकता है और न ही लोकसभा चुनाव के लिए सटीक रुझान.
चुनाव सर्वेक्षण से जुड़ी देश की एक अन्य प्रतिष्ठित संस्था एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर कहते हैं, विधानसभा चुनाव के परिणामों को नकारा नहीं जा सकता है. इस सवाल पर कि क्या विधानसभा चुनाव के नतीजों को ट्रेंड कहा जा सकता है, छोकर ने कहा- अगर तीन तथ्य एक दिशा में जाते हैं तो उसे ट्रेंड कहा जा सकता है, यहां तो तीन से कहीं ज्यादा तथ्य एक ही दिशा में जा रहे हैं. तो विधानसभा चुनाव के परिणाम ट्रेंड तो निश्चित तौर पर है.
Bureau Report
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