नईदिल्ली: समलैंगिक संबंधों को धारा 377 IPC के अपराध के दायरे से बाहर करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष तीसरे दिन सुनवाई शुरू हो गई है. तीसरे दिन मामले की सुनवाई के दौरान समलैंगिकता पक्ष के वकील श्याम दीवान ने कहा कि अब समय आ गया है कि कोर्ट को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत ‘राइट टू इंटिमेसी’ को जीवन जीने के अधिकार का हिस्सा घोषित कर देना चाहिए.
याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि निजता किसी भी व्यक्ति को अपनी जिंदगी में किसी के साथ भी नजदीकी रिश्ते कायम करने का अधिकार देती है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता किसी समलैंगिक को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार देती है और उन्हें सम्मान के साथ अपने साथी के साथ जीने का अधिकार भी देती है.
उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे समलैंगिक लोग जो शर्मिले हैं, वो खुल कर सामने नहीं आ पाते और अपनी बातें नहीं रख पाते थे वो नाज फाउंडेशन मामले में कोर्ट के फैसले से खुद को सशक्त महसूस कर रहे थे. परंतु जब सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा से धारा 377 को अपराध की श्रेणी में शामिल किया तो इसका समलैंगिक समुदाय पर बेहद नकारात्मक असर पड़ा था
याचिकाकर्ता वकील दीवान ने कोर्ट में दी ये दलीलें
-सुप्रीम कोर्ट के लिए ये सही समय है कि वो घोषणा करे कि ये अपराध नहीं है.
– गे समुदाय के लोग गिरफ्तारी के डर के साए में जी रहे हैं.
– LGBT को अपराधियों की तरह देखा जाता है.
– 377 LGBT और उनकी गरिमा को नुकसान पहुंचाती है.
– यहां तक कि इलाज कराने में भी इन लोगों को परेशानी होती है.
– मेडिकल समुदाय से भी इन लोगों को सहयोग नहीं मिलता.
– छोटे शहरों नें डॉक्टर उनकी पहचान को छिपाते नहीं हैं.
– LGBT समुदाय की यौन प्राथमिकताओं के चलते ग्रामीण और सेमी अर्बन क्षेत्रों में हेल्थ केयर में उनके साथ भेदभाव होता है
– LGBT कम्यूनिटी के लोग हेल्थ के मामले में सफर करते हैं.
– CJI ने कहा LGBT खुद को भेदभाव का शिकार पाते है क्योंकि अलग ट्रीट होते है वो अपराधबोध से ग्रसित होते हैं.
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