भारतीय कोच नहीं बनीं तो ईरानी महिलाओं को ट्रेनिंग दी, भारत को गोल्ड से किया दूर

भारतीय कोच नहीं बनीं तो ईरानी महिलाओं को ट्रेनिंग दी, भारत को गोल्ड से किया दूरजकार्ता: इंडोनेशिया में चल रहे एशियाई खेलों में भारतीय कबड्डी टीम को इस बार निराशा मिली है. पहले पुरुष टीम फाइनल में नहीं पहुंच सकी और उसके बाद महिला टीम को फाइनल में ईरान के हाथों हार मिल गई. टीम को शुक्रवार को फाइनल में ईरान से हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा, मौजूदा चैम्पियन भारत को एक संघर्षपूर्ण मुकाबले में 24-27 से मात खानी पड़ी.

एशियाई खेलों में यह पहली बार है, जब भारत के अलावा कोई अन्य टीम ने स्वर्ण पदक जीता है, 2010 में महिला कबड्डी को एशियाई खेलों में शामिल करने के बाद से भारत लगातार दो बार से स्वर्ण पदक जीतता आ रहा था. ईरान की जीत में या भारतीय टीम की इस हार में प्रमुख भूमिका ईरानी कबड्डी टीम की कोच की रही जो भारतीय हैं. शैलजा जैन ईरानी कबड्डी टीम की कोच हैं. शैलजा महाराष्ट्र की रहने वाली हैं और वे साल 2016 में ईरानी टीम से जुड़ी थी. 

ईरान जाने का फैसला आसान नहीं था
61 साल की शैलजा के लिए ईरान से जुड़ने का फैसला आसान नहीं था. शुरू में वे ईरान जाने के लिए उत्साहित नहीं बल्कि चिंचित थी. शाकाहारी भोजन, ईरान में ड्रेस कोड, वहां लड़कियों के साथ होने वाले व्यवहार, जैसी कई चिंताएं शैलजा को थीं. लेकिन शैलजा ईरान गईं और वहां की महिला टीम की कोच भी बनी और अब वे सफलतम कोच हैं क्योंकि उनकी टीम ने एशियाई खेलों में कबड्डी की बेहतरीन टीम, भारतीय टीम को हराया है.

नागपुर में पैदा हुईं शैलजा ने अपनी मां को खेलते देखकर कबड्डी सीखा है. उन्होंने सारे खेल, कबड्डी, लंगड़ी, खो खो,  दौड़, जैसे खेल खेले हैं. अपनी एक सहेली को देख कर वे कबड्डी में आईं और नेशनल और यूनिवर्सिटी लेवल तक कबड्डी खेलों में भाग लिया. 

ईरान की लड़कियों कि फिटनेस है शानदार
ईरानी लड़कियों के बारे में शैलजा का कहना है कि उनकी फिटनेस शानदार है. वे सारे खेल खेलती हैं जिनमें रग्बी, फुटबॉल, कराते, ताईक्वांडो और मार्शल आर्ट्स शामिल हैं. उन्हें शैलजा को केवल कबड्डी की तकनीकें ही सिखानी पड़ी. 

भारत की कोच न बनने पर यह कहा शैलजा ने
वे भारत में कोच क्यों नहीं बनी, इस सवाल पर  वे कहती हैं कि काश वे ऐसा कर पातीं लेकिन वे बिना किसी दखलंदाजी के कोचिंग देना पसंद करती हैं. उनका कहना है कि ईरान में सब कुछ उनके हाथ में हैं. कोई दखल नहीं हैं. “मेरे हस्ताक्षर के बिना अंतिम 12 का चुनाव हो ही नहीं सकता मैं एक जीतने वाली टीम चाहती थी. मैंने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया जिसमें प्रेरणात्मक संदेश देती थी.  लेकिन टीम में खिलाड़ियों के चयन को लेकर मैं सख्त थी.”  

शैलजा कहती हैं कि वे भारत से प्यार करती हैं, भारत उनका देश है लेकिन वे कबड्डी से भी प्यार करती हैं.”

Bureau Report

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