नईदिल्ली: अलग रंग, वेशभूषा, खानपान के लिए दुनियाभर में मशहूर भारत के लोग जहां भी जाते हैं अपनी एक अलग छाप छोड़ते हैं. खाना, रहना और पर्यटन की बात तो यहां निराली है ही, उतने ही निराले हैं भारत के लोग. अपने काम और ज्ञान से वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने वाले भारतीयों का नाम एक और लिस्ट में अब ऊपर आ गया है और वो है घूमना. जी हां, इन दिनों भारतीय लोगों को अपनी सरजमीं से ज्यादा घूमने के लिए विदेश की सरजमीं लुभा रही है.
विदेश यात्राओं पर इतना खर्च कर रहे भारतीय
पढ़ाई के अलावा भारतीय लोग शॉपिंग और दूसरे देशों के पर्यटक स्थलों पर अब सैर-सपाटे के लिये अब वो जम कर अन्य देशों की यात्रा पर जा रहे हैं. द टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में 253 दफा ज्यादा भारत के लोगों ने सात समुन्दर पार की यात्रा की. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013-2014 के दौरान भारतीयों ने 16 मिलियन की धनराशि को विदेश यात्राओं पर खर्च किया है, जबकि वर्तमान में यह आंकड़ा 4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है. यानि की महज 3 साल के समय में एक भारतीय की विदेश यात्रा पर खर्च लगभग 253 प्रतिशत बढ़ गया है.
विदेश में बढ़ा पढ़ाई का ट्रेंड
सैर सपाटे के अलावा पिछले कई सालों में भारतीयों के बीच विदेश में पढ़ाई करने का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ा है. उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें इस बात का जिक्र था कि भारतीय छात्रों की संख्या के मामले अमेरिका सबसे उपर है. 2008 से जर्मनी जाने वाले छात्रों की तादाद में 114 % का इज़ाफा हुआ है.
विदेश यात्राओं पर इस कार्ड के जरिए हो रहा है खर्च
रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेश यात्रा पर जाने और वहां पर घूमने के लिए भारतीय खुलकर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं. बैंकिंग सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि विदेश यात्राओं के लिए कर्ज लेना भी पहले से काफी आसान हो गया है. देश के बड़े प्राइवेट बैंक से जुड़े वित्तीय सलाहकार का कहना है,”ट्रेवल लोन्स के लिए कोई अलग से बैंकिंग संस्थानों के पास विकल्प नहीं है,लेकिन बड़ी संख्या में लोग अपनी विदेश यात्रा के सपनो को पूरा करने के लिए पर्सनल लोन भी लेते हैं.”
देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा रहा है ऐसा असर?
साल 2017 में 23 मिलियन भारतीयों ने विदेश यात्रा की थी. जहां देश पूरी तरह तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के आयात के लिये अन्य देशों पर निर्भर है. भारतीयों के इन खर्चो की वजह से इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक पड़ता है और बैलेंस ऑफ़ पैमेंट (भुगतान संतुलन) भी काफी हद तक प्रभावित होता है. फिलवक्त भारतीय लोगों का विदेशों में संपत्ति खरीदने में रूचि घटी है और उन्होंने वित्तीय खरीद भी काम की है.
भारतीय विदेश में प्रोपर्टी खरीद में कम कर रहे निवेश
इस साल जनवरी से आरबीआई ने सारे बैंको से लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम(एलबीएस) के तहत होने वाले भुक्तान की जानकारियां नियमित रूप से मांगी है ताकि लेन- देन के लिए आरबीआई के निर्देशों का उल्लंघन ना हो सके. बैंकिंग सेक्टर से जुड़े लोगो का मानना है पिछले कुछ वर्षो से भारतीय विदेश में प्रोपर्टी में कम निवेश कर रहे हैं और फिलवक्त इसका प्रतिशत गिरता दिख रहा है. विदेश में प्रॉपर्टी खरीदने में ज्यादातर रईश रूचि रखते हैं.
आरबीआई के दिशा निर्देश प्रॉपर्टी खरीद में बाधक
विदेशी मुद्रा के एक कारोबारी के अनुसार,” कम्पनी के प्रमोटर्स को विदेशो में निवेश के लिए एलआरएस रूट का प्रयोग करने की जरुरत नहीं हैं. क्योंकि फिलवक्त रूपया चालु खाते में पूरी तरह परिवर्तनीय है. वैसे निवेशक कॉर्पोरेट रूट में माध्यम से भी देश के बाहर निवेश कर सकते हैं और उसके मूल्य पर किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध का सामना करना पड़ेगा.फिलवक्त आरबीआई के एलआरएस रूट पर लगाम कसने की वजह से विदेशी संपत्ति की खरीद का प्रतिशत घटा है. 2013 में रिज़र्व बैंक ने यह लिमिट 2 लाख डॉलर से 75000 डॉलर कर दिया था और एलआरएस के माध्यम से विदेशो में होने वाली खरीद पर भी रोक लगा दी थी. फरवरी 2015 से इससे 2 लाख 50 हजार डॉलर तक बढ़ा दिया गया और संपत्ति की खरीद को मंजूरी दी गई.
Bureau Report
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