नईदिल्ली: केंद्रीय कर्मचारियों को 2016 में 7वें वेतन आयोग का तोहफा मिला था. उस समय न्यूनतम बेसिक पे को 18000 रुपए प्रति माह कर दिया गया था. इससे एंट्री लेवल के कर्मचारी की ग्रॉस सैलरी में करीब 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन केंद्रीय कर्मचारी इससे खुश नहीं थे. उन्होंने सरकार से मांग की है कि न्यूनतम बेसिक पे 18000 रुपए से बढ़ाकर 26000 रुपए कर दी जाए. ऐसा फिटमेंट फैक्टर को बढ़ाकर ही संभव होगा. मौजूदा समय में फिटमेंट फैक्टर 2.57 गुना है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के वित्त मंत्रालय का कार्यभार दोबारा संभालने के बाद कर्मचारियों की उम्मीदें बढ़ गई हैं. क्योंकि उन्होंने संसद में आश्वासन दिया था कि वे केंद्रीय कर्मचारियों की मांग अनसुनी नहीं रहने देंगे. आइए जानते हैं वे 5 कारण जो केंद्रीय कर्मचारियों की खुशियां बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं :
2019 का लोकसभा चुनाव बड़ा राजनीति कारण
2019 में लोकसभा चुनाव होंगे. यह एक बड़ा राजनीतिक कारण है. एक कर्मचारी नेता के मुताबिक सरकार चुनाव से पहले सरकारी कर्मचारियों को कोई न कोई सौगात जरूर देती है. वह कभी नहीं चाहेगी कि चुनाव के समय उसे सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी झेलनी पड़े. केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की संख्या 1.1 करोड़ के करीब है. हाल में केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के डीए में 2% की बढ़ोतरी की है. यह अब 7 से 9 फीसदी हो गया है.
4 राज्यों में विधानसभा चुनाव
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनकी तारीखों का अब तक ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि यह 2018 के अंत तक होंगे. राजनीतिक पंडित 4 राज्य विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव के सेमिफाइनल के तौर पर देख रहे हैं. इसमें कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है. मौजूदा राज्य सरकारों ने चुनाव के मद्देनजर अपने सरकारी कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग की सौगात देना शुरू कर दिया है. एमपी सरकार ने छूटे हुए केंद्रीय कर्मचारियों को 7वां वेतन आयोग को तोहफा दिया है.
8.2 फीसदी की मजबूत विकास दर
2018 की पहली तिमाही में घरेलू अर्थव्यवस्था 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी जो पिछली 15 तिमाही की सर्वाधिक है. इस वृद्धि दर से सबसे तेज वृद्धि करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में देश की दावेदारी और मजबूत हो गई. चीन की वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही. पिछली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.7 प्रतिशत थी. आर्थिक मोरचे पर अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत होने के संकेत मिल रहे हैं. ऐसा 2016 में नोटबंदी के दो साल बाद हो रहा है.
महंगाई भी बड़ा कारण
तेल की ऊंची कीमतों से आम आदमी पहले से ही बेहाल है. उस पर रुपया कमजोर होने से आयातकों को क्रूड के इम्पोर्ट पर अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी. अगर ऐसा होता है तो डीजल की कीमत पर असर पड़ेगा. जरूरी वस्तुओं के ट्रांसपोर्टेशन में डीजल का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है. साबुन, शैंपू, पेंट इंडस्ट्री की लागत बढ़ेगी, जिससे इन उत्पादों के दाम बढ़ने की आशंका है.
लेकिन रुपए का लगातार कमजोर होना एक चुनौती भी है
डॉलर के मुकाबले रुपए का कमजोर होना अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती है. आर्थिक मोरचे पर रुपए का कमजोर होना किस तरह असर डालेगा? इसकी चर्चा जोरों पर है. मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि क्या केंद्र सरकार इन हालातों में केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का फैसला ले सकती है? अगर हां तो सरकार वित्तीय परिणामों को ध्यान में रखकर ही ऐसा फैसला लेगी. क्योंकि अचानक सैलरी बढ़ाने से सरकारी खजाने पर काफी बोझ पड़ेगा. इसलिए सरकार चरणबद्ध रूप से सैलरी बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार कर सकती है. इसका सबसे ज्यादा फायदा छोटे कर्मचारियों को होगा, जिनमें 7वें वेतन आयोग को लेकर सबसे ज्यादा असंतोष है.
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