नईदिल्ली: दहेज उत्पीड़न मामले (498 A) में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार (14 सितंबर) को अहम फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविलकर और जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने पुराने फैसले में संशोधन करते हुए कहा है कि मामले की शिकायत की जांच के लिए कमेटी की ज़रूरत नहीं है. पुलिस को ज़रूरी लगे तो वह आरोपी को गिरफ़्तार कर सकती है.
आरोपी के लिए खुला है ये विकल्प
कोर्ट ने कहा कि आरोपी के लिए अग्रिम ज़मानत का विकल्प खुला हुआ है. कोर्ट ने आरोपियों की गिरफ्तारी पर लगी रोक हटाते हुए कहा कि विक्टिम प्रोटेक्शन के लिए ऐसा करना जरूरी है. दरअसल, इसी साल अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
2017 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा
पिछले साल 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने अपने पुराने फैसले में कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए जो शिकायत के पहलुओं पर जांच करें और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही ज़रूरी हो तो गिरफ्तारी होनी चाहिए, उससे पहले नहीं.
दो जजों की बेंच ने तुरंत गिरफ्तारी पर लगाई थी रोक
दरअसल, जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की दो जजों की बेंच ने महिलाओं के लिए बने कानूनों के दुरुपयोग के मामले को लेकर अहम निर्देश जारी किए थे. कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को देखते हुए ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी. इसके अनुसार दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाते हुए इस सिलसिले में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे.
अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है. अदालत ने मामले में एडवोकेट वी. शेखर को कोर्ट सलाहकार बनाया था. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम वैवाहिक विवाद से संबंधित तथ्यों को देखने के लिए नहीं हैं बल्कि हमें ये देखना है कि सिस्टम में जो गैप है उसे आदेश के जरिये भरा जाए. हमें ये देखना है कि क्या गाइडलाइंस जारी कर कानून के गैप को भरा गया है? क्या अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर फैसला देना सही था? साथ ही ये भी देखना जरूरी है कि इस आदेश के क्या कानून कमजोर हुआ है? सरकार का कहना था कि पिछले साल का फैसला व्यवहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं है. बहरहाल मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
Bureau Report
Leave a Reply