अहमदाबाद: गुजरात के आणंद जिले में अल्पा पटेल नामक महिला द्वारा समाज परिवार से वंचित अनाथ लोगों के लिए एक ऐसा कार्य किया जा रहा है, जिससे जानने के बाद लोग को अपने समाजसेवी होने के भ्रम को पूरी तरह से दूर कर उन्हें सोचने पर मजबूर कर देती है. अल्पा पटेल न हीं गरीबो को खाना खिलाती है और न हीं उनके लिए बसेरे बनती है.
अल्पा उन अनाथ और गरीब लोगों का अंतिम संस्कार खुद अपने हाथों से करती है और इसके साथ ही अस्थि विसर्जन भी पूरी विधि विधान के साथ करवाती है. स्त्री शशक्तिकरण की बात तो प्रचार माध्यमों की तरफ से काफी की जाती है, लेकिन प्रचार प्रसार से दूर कुछ महिलाएं ऐसी भी है जो पुरुष के काम करने के मुकाबले या समाज के अनाथ तबके के लिए काम करने के लिए कई गुना आगे है.
7 हजार से ज्यादा अंतिम संस्कार कर चुकी हैं अल्पा
इनमें से ही एक है अल्पा पटेल. भारतीय समाज में किसी रिश्तेदार की मौत पर भी महिलाएं शमशान भूमि नहीं जाती है और आज भी हमारे समाज में यही परंपरा काफी हद तक जारी है. हालांकि बात 21वीं सदी में महिलाओं के पुरुषों के मुकाबले में होने की बाते जोर शोर से कहीं जाती है, लेकिन ये सुब धरना जैसे शब्दों तक तक ही सीमित है और वास्तविक जीवन में आज भी महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबन्ध होते है. जिसमें से एक महिलाओ का शमशान जाने पर भी है, लेकिन इन सब बातों से परे अल्पा पटेल ने अब तक दो सौ तिहत्तर लावारिश लाशों का न सिर्फ एक परिवार के सदस्य की तरह अंतिम संस्कार किया है परन्तु उनकी अस्थियों का विधि विधान विसर्जन भी किया है.
कई मुश्किलों के बाद मिली अंतिम संस्कार करने की अनुमति
शाश्त्रोक्त के अनुसार महिलाएं शम्सन घाट संस्कार के लिए नहीं जाती है ऐसी हिन्दू धर्म में मान्यता है. लेकिन अल्पा पटेल ने बुजुर्गो से राय मशवरा करके लावारिश लाशों को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया इस काम के लिए अल्पा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. साथ ही शुरुआत में उन्हें लाशों का अंतिम संस्कार करने में डर भी लगता था.
पुलिस की मदद से करती हैं काम
अल्पा का मन डरा, लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत के आगे हार नहीं मानी. जिन लाशों का अल्पा अंतिम संस्कार करती है वह मुख्य रूप से लावारिश और बेसहारा ही होती हैं. ऐसे लोग बड़े पैमाने पर बस स्टेशन या रेलवे स्टेशन के आसपास ही अपनी अन्तिंम सांस लेते है. इस मामले की पुलिस को जानकारी देकर उन मृतक लावारिश लाशों को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जाता है. उसके बाद अल्पा पटेल और उनकी टीम द्वारा इन लावारिश लाशों का कब्ज़ा लेकर उन्हें श्मशान भूमि पर पुरे रीतिरिवाज और अंतिम संस्कार की विधि के साथ ले जाया जाता है.
रोटी हर कोई देता है मुखाग्नि नहीं: अल्पा
अल्पा पटेल जैसी महिला भारत में तो क्या पुरे विश्व में एक महिला होंगी जो पुरुषों को पीछे छोड़ने जैसा हिम्मत का काम करती है. अल्पा का कहना है की लावारिस और गरीब लोगों को खाना तो कोई भी दे देता है या खाना तो कही भी मिल जाता है. रात को सोने के लिए भी कही न कही ये लावारिस लोग जगह खोज ही लेते है. लेकिन जब इन लावारिस लोगों की मौत हो जाती है तब उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं होता. अल्पा ने कहा कि लावारिसों का अंतिम संस्कार करने का कदम उन्होंने इसलिए उठाया ताकि उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हो सके.
Bureau Report
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