कानपुर: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 15 जुलाई को कीर्तिमान रचने जा रहा है. इसरो 15 जुलाई को चांद के दक्षिणी हिस्से के लिए चंद्रयान-2 लांच करने जा रहा है. इसरो की मदद करके चांद के तमाम राज को दुनिया के सामने लाने में इस बार कानपुर का आईआईटी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
इसरो के चंद्रयान-2 अभियान के लिए कानपुर आईआईटी ने इसरो की महत्वपूर्ण मदद की है. 2009 में कानपुर आईआईटी और इसरो के बीच दो एएमयू साइन हुए थे, जिसमें पहला एएमयू
चंद्रयान -2 के लिए मैप बनाने का और दूसरा एएमयू रास्ता दिखाने का था, जिसे कानपुर आईआईटी के वैज्ञानिकों ने बनाकर इसरो को सौंप दिया.
आईआईटी कानपुर में पढ़ाने वाले प्रोफेसर केए वेंकटेश और प्रोफेसर आशीष दत्ता ने मिलकर कई सालों की मेहनत से ये प्रोजेक्ट तैयार किया है. प्रोफेसर आशीष दत्ता बताते हैं कि अंतरिक्ष परियोजना चंद्रयान-2 के चांद पर पहुंचते ही मोशन प्लानिंग का काम शुरू हो जाएगा.
सबसे पहले चंद्रयान 2 में लगा विशेष रोवर पहुंचते ही वहां की थोड़े वक़्त में मैपिंग करेगा उसके बाद वो रूट का चार्ट भी बनाएगा. रूट के चार्ट बनाते वक्त दो तरह की लाइनें बनेंगी. अगर रास्ता सीधा है तो सीधी लाइन और रास्ता अगर जिगजैग है तो उसी रास्ते के हिसाब से लाइन टेढ़ी हो जाएगी.
चांद की सतह पर रोवर अच्छे से काम करे, इसके लिए उसमें 6 पहिये लगाए गए है और इसमें एल्युमीनियम का प्रयोग किया गया है. साथ ही वहां के हिसाब से रोवर में जॉइंट भी दिए गए हैं. इसके पहियों में खास बात ये है कि ये सतह के हिसाब से काम करेंगे. इससे पहिये नीचे धंसने से काफी हद तक बच जाएगा.
चंद्रयान-2 का वजन 3.8 टन है, जिसको देखते हुए इस रोवर का वजन 25 किलो का रखा गया है. इसके साथ ही एक और अन्य रोवर भी चंद्रयान 2 में मौजूद रहेगा. इसरो इस मिशन के जरिए चंद्रमा के कई रहस्यों का पता करेगा और इस बार ये चंद्रयान 2 चांद पर साउथ इलाके में जा रहा है. जहां इससे पहले कोई नहीं गया है.
ऐसे में वहां पानी है या नहीं इन सब सवालों से भी पर्दा उठ सकता है. फिलहाल ये कहा जा सकता है कि आईआईटी कानपुर ने रोवर के जरिये इस अभियान को आगे ले जाने में मदद की है. उससे चंद्रमा के कई रहस्यों का पता दुनिया को पता चल सकेगा.
Bureau Report
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