नईदिल्ली: अयोध्या केस में तीसरे दिन की सुनवाई में रामलला विराजमान की तरफ से जारी बहस में पेश वकील के परासरन ने ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादिप गरीयसि’ संस्कृत श्लोक का हवाला दे कहा कि जन्मभूमि बहुत महत्वपूर्ण होती है. राम जन्मस्थान का मतलब एक ऐसा स्थान जहां सभी की आस्था और विश्वास है. इससे पहले बुधवार को पांच जजों की संविधान पीठ की तरफ से जस्टिस बोबड़े ने श्रीरामलला विराजमान के वकील के परासरन से पूछा कि जिस तरह राम का केस सुप्रीम कोर्ट में आया है, उस तरह क्या कहीं और किसी अन्य गॉड का केस आया है? क्या जीसस यानी ईसा मसीह, बेथलहम में पैदा हुए इस पर किसी कोर्ट में सवाल उठा था? रामलला के वकील ने कहा कि वह इस पर चेक कराके जवाब देंगे.
के परासरन ने बुधवार को ही श्रीरामलला विराजमान का पक्ष रखते हुए कोर्ट में कहा कि लोगों का विश्वास और मान्यता है कि राम वहां विराजमान हैं और ये अपने आप में ठोस सबूत है कि वो राम की जन्मस्थली है. ब्रिटिश राज्य में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंटवारा किया था तो उस जगह को मस्जिद की बजाय, रामजन्म स्थान का मंदिर माना था. अंग्रेजों के ज़माने के फैसले में भी वहां बाबर की बनाई मस्जिद की जगह पर राम जन्मस्थान का ज़िक्र किया गया था.
निर्मोही अखाड़ा
अयोध्या केस के 18 पक्षकार हैं. 6 अगस्त से शुरू हुई सुनवाई में सबसे पहले निर्मोही अखाड़ा के पक्ष को सुना गया. कोर्ट ने उनके दावे के सबूत मांगे. इस पर निर्मोही अखाड़े के वकील ने बुधवार को कहा कि निर्मोही अखाड़े के दस्तावेज और सबूत 1982 में डकैत ले गए. ये बात निर्मोही अखाड़े के वकील ने अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कही. अखाड़े के वकील ने यह बात कोर्ट में तब बताई जब चीफ जस्टिस ने अखाड़ा से कहा कि वह सरकार द्वारा 1949 में ज़मीन का अटैचमेंट करने से पहले के जमीन के मालिकाना हक को दर्शाने वाले दस्तावेज, राजस्व रिकॉर्ड या अन्य कोई सबूत कोर्ट के समक्ष पेश करे. निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि इस मामले में वे असहाय हैं. वर्ष 1982 में अखाड़े में एक डकैती हुई थी. जिसमें उन्होंने उस समय पैसे के साथ उक्त दस्तावेजों को भी खो दिया था. इस पर चीफ जस्टिस (CJI) ने पूछा- क्या अन्य सबूत जुटाने के लिए केस से जुड़े दस्तावेजों में फेरबदल किया गया था?
इससे पहले जस्टिस बोबड़े ने पूछा- क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत राम जन्म भूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? ऐसा इसलिए क्योंकि निर्मोही अखाड़े ने इस आदेश को क़ानून में तय अवधि समाप्त होने के बाद निचली अदालत में चुनौती दी थी. दरअसल अखाड़ा ने तय अवधि (6 साल) समाप्त होने पर 1959 में आदेश को चुनौती दी थी. इस पर अखाड़ा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 1949 में सरकार का अटैचमेंट ऑर्डर था और उस ऑर्डर के ख़िलाफ़ मामला 1959 तक निचली अदालत में लंबित था. लिहाजा 1959 में निर्मोही अखाड़े ने निचली कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी.
CJI रंजन गोगोई ने कहा कि हम मौखिक और दस्तावेज़ी सबूतों को देखना चाहेंगे. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमको असली दस्तावेज़ दिखाइए. निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि दस्तावेजों का उल्लेख इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में शामिल है. CJI ने कहा कि आप अपने तरीके से इसको रखिये. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से कहा कि आप अपने दस्तावेज़ तैयार करें. हम आपको बाद में सुनेंगे.
Bureau Report
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