नईदिल्ली: क्या पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी समूह बारूदी सुरंगों को उड़ाने के लिए आधुनिक ब्लूटूथ (Bluetooth) और वाई-फाई (Wifi) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं? खुफिया सूत्रों के मुताबिक म्यांमार में सक्रिय उग्रवादी समूह अराकान आर्मी वहां की सेना के खिलाफ इस तरह की टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रही है. इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियां खासा चिंतित हैं.
अराकान आर्मी ने मिजोरम के लॉनटाला जिले से सटे सीमावर्ती इलाकों में कई कैंप बनाए हैं. इससे कलादान प्रोजेक्ट को खतरा उत्पन्न हो गया है. कलादान प्रोजेक्ट दरअसल मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट है जिसको भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया में गेटवे के रूप में देखा जा रहे है.
ये उग्रवादी समूह मिजोरम में भी सक्रिय हैं. इन वजहों से चिंतित भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ये पता लगाने की कोशिशें कर रही हैं कि क्या इनके पास इस तरह की टेक्नोलॉजी उपलब्ध है? इस संबंध में एक अधिकारी ने कहा, ”हमने असम राइफल्स से कहा है कि वे पता लगाएं कि क्या उग्रवादी समूह बारूदी सुरंगों को उड़ाने में ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं.”
खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार इस तरह की बारूदी सुरंगों से निपटने के लिए म्यांमार सेना जैमरों का इस्तेमाल कर रही है. म्यांमार आर्मी की उत्तरी रेखाइन प्रांत में तैनात इंफैंट्री बटालियन अक्सर अभियानों में जैमरों का इस्तेमाल करते हैं.
दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार
कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (Kaladan multi-modal transit transport project) को दक्षिण-पूर्व के लिए प्रवेश द्वार कहा जाता है. इसके लिए अप्रैल 2008 में इस प्रोजेक्ट के लिए क्रियान्वयन के लिए भारत ने म्यांमार के साथ समझौता किया था. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद मिजोरम, म्यांमार के रेखाइन प्रांत के सित्तवे पोर्ट से जुड़ जाएगा.
Bureau Report
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