नईदिल्ली: अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल होती है तो उस विचार करने वाली पीठ (बेंच) में एक नए जस्टिस को शामिल किया जाएगा. इसके पीछे वजह यह है कि मुख्य फैसला देने वाली पीठ के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सेवानिवृत्त हो चुके हैं. नियम के मुताबिक, पुनर्विचार याचिका पर फैसला देने वाली पीठ ही सुनवाई करती है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने रविवार को अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने का ऐलान किया. इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसला किया है कि वह मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि को वैकल्पिक स्थल के रूप में स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि यह इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य व अखिल भारतीय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह मामला सभी मुसलमानों की ओर से अदालत में दायर किया गया था और बोर्ड समुदाय की भावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है, जो अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग और समीक्षा याचिका दायर करना चाहता है.
जिलानी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वरिष्ठ वकील राजीव धवन उनके वकील के रूप में बोर्ड का पक्ष रखना जारी रखेंगे और वे 9 नवंबर को आए फैसले के 30 दिनों के भीतर याचिका दायर करने का प्रयास करेंगे.
उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी कह चुके हैं कि वह समीक्षा याचिका दायर नहीं करेंगे. हालांकि, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बोर्ड की बैठक में भाग लेने के बाद संवाददाताओं से कहा कि वह पुनर्विचार याचिका दायर किए जाने के निर्णय का समर्थन करते हैं.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “हलांकि, हमें पता है कि याचिका खारिज कर दी जाएगी, फिर भी हम समीक्षा याचिका दायर करेंगे. यह हमारा अधिकार है.”
समीक्षा याचिका दायर करने से बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी के इनकार पर जिलानी ने कहा कि बोर्ड अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग कर रहा है और इस मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं की जा रही है. उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने को लेकर अंसारी पर शायद जिला प्रशासन का दबाव होगा.
Bureau Report
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