नईदिल्ली: नागरिकता संशोधन बिल पर कई राजनीतिक पार्टियां दुष्प्रचार कर रही हैं. लेकिन इसके साथ ही एक 17 वर्ष पुराने दुष्प्रचार पर भी ब्रेक लग गया है. बुधवार को गुजरात के नानावटी-मेहता आयोग ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगे मामलों में तत्कालीन गुजरात सरकार को क्लीन चिट दे दी है. आयोग ने माना है कि उन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी और उनके तीन मंत्रियों अशोक भट्ट, भरत बरोट और हरेन पांड्या का कोई रोल नहीं था.
आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं लेकिन क्लीन चिट पाने के लिए उन्हें भी देश की कानून व्यवस्था के सामने 17 वर्षों का लंबा इंतज़ार करना पड़ा है. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी मोदी ने इस आयोग के सामने अपना बयान दिया था. 11 दिसंबर को गुजरात विधानसभा में जस्टिस जीटी नानावटी और जस्टिस अक्षय मेहता आयोग की ढाई हज़ार पन्नों की जांच रिपोर्ट पेश की गई. इस दौरान गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने विधानसभा को बताया कि रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मोदी पर लगे सभी आरोप खारिज कर दिए गए हैं . इस आयोग का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद किया गया था. अब 17 वर्षों के बाद..इस मामले की अंतिम रिपोर्ट पूरे देश के सामने आ गई है.
क्या थे आरोप?
1. इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी पर सबसे पहला आरोप था कि उन्होंने गोधरा के बाद गुजरात में मुसलमानों पर हुई हिंसा को सही ठहराने की कोशिश की थी. आयोग ने इस आरोप को गलत बताया है औऱ कहा कि इन दंगो में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई हाथ नहीं था.
2. दूसरा आरोप ये था कि दंगों के वक्त अहमदाबाद में सेना की तैनाती को लेकर तत्कालीन राज्य सरकार ने जानबूझकर देरी की थी. आयोग ने इस आरोप को भी गलत ठहराते हुए कहा कि राज्य सरकार ने कम वक्त में सेना को सभी ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध करा दी थीं .
3. तीसरा आरोप ये था कि नरेंद्र मोदी सबूत नष्ट करने के मकसद से साबरमती एक्सप्रेस का एस-6 कोच देखने गए थे और वो उनकी निजी यात्रा थी. जबकि जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट मे माना कि मोदी आधिकारिक यात्रा पर S-6 कोच को देखने गए थे और उनका मकसद सबूत नष्ट करने का नहीं था.
4. प्रधानमंत्री मोदी पर चौथे आरोप का आधार था…तत्कालीन डीजीपी R.B Shrikumar (आर बी श्री कुमार) का वो आरोप..जिसमें उन्होंने कहा था, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने..कई अफसरों को मौखिक रूप से गैरकानूनी आदेश दिए थे. लेकिन आर बी श्री कुमार इसे लेकर आयोग के सामने कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए. आयोग ने माना है कि आर बी श्री कुमार ने ये आरोप उन पर विभागीय कार्रवाई होने के डर से लगाए थे .
5. पांचवा आरोप ये था कि वर्ष 2002 के अप्रैल और मई महीने में भी गुजरात के कई ज़िलों में दंगे होते रहे..लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़िले के पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. इस वजह से लगातार हिंसा होती रही और इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग मारे गए . लेकिन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस आरोप को भी गलत बताया है. आयोग का कहना है कि हिंसा को रोकने में पुलिस इसलिए नाकामयाब हुई क्योंकि राज्य में पर्याप्त संख्या में पुलिस बल मौजूद नहीं था
आयोग को इस बात का भी कोई सबूत नहीं मिला है कि पुलिस ने जानबूझकर दंगे भड़कने दिए. आयोग ने पुलिस द्वारा दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई ना करने के आरोपों को भी गलत माना है. आयोग के मुताबिक जिन पुलिसकर्मियों ने अपनी ड्यूटी पर लापरवाही की थी..उनके खिलाफ राज्य सरकार ने कार्रवाई की थी. आयोग ने अपनी जांच में माना है कि पुलिस बल के पास पर्याप्त मात्रा में हथियार नहीं थे…जिसकी वजह कई इलाकों में हिंसा नहीं रोकी जा सकी .
6. छठा आरोप ये था कि तत्कालीन राज्य सरकार के कई मंत्री हिंसा भड़काने में शामिल थे. आयोग ने माना है कि गुजरात दंगा गोधरा कांड का परिणाम था. गोधरा की वजह से गुजरात में हिंदू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा काफी नाराज़ था और उनमें से कुछ लोग मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में शामिल भी थे. लेकिन आयोग को इस बात का भी कोई सबूत नहीं मिला हैं कि हिंसा भड़काने में गुजरात सरकार के किसी मंत्री का हाथ था.
इस रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाने वाले तीन प्रमुख अफसरों- आरबी श्रीकुमार,संजीव भट्ट और राहुल शर्मा की नकारात्मक भूमिका के सबूत मिले हैं. इससे पहले 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों को लेकर जो एसआईटी बनाई थी उसने भी गुलबर्ग सोसायटी मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी थी.
मीडिया की भूमिका पर सवाल
नानावटी-मेहता आयोग ने गुजरात दंगों के दौरान मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं. आयोग ने कहा कि पुलिस और कई लोगों ने इस बात के सबूत पेश किए हैं कि गोधरा और उसके बाद हुई गुजरात हिंसा को मीडिया कवरेज ने और ज्यादा भड़काने का काम किया. मीडिया में छपी कुछ खबरों को देखकर लोग उग्र होकर सांप्रदायिक हिंसा में शामिल हो गए. आयोग ने उस वक्त राज्य के खुफिया विभाग के प्रमुख रहे B Shri Kumar के शपथपत्र का भी हवाला दिया. इस हलफनामे में कहा गया था कि उस वक्त सनसनीखेज़ तरीके से की जा रही Live Reporting ने भी हिंसा भड़काने का काम किया.
भावनगर ज़िले के तत्कालीन SP राहुल शर्मा ने आयोग को बताया कि एक स्थानीय अखबार में छपी खबर के बाद..उनके ज़िले में हिंसा भड़क गई थी. आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि दंगों के दौरान की जाने वाली रिपोर्टिंग पर कुछ हद तक लगाम लगाई जानी चाहिए ताकि मीडिया जिम्मेदारी से काम कर सके.
रिपोर्ट के अंत में आयोग ने कहा है कि मीडिया को ये समझना चाहिए कि ऐसे मुश्किल हालात में बढ़ा चढ़ाकर की गई रिपोर्टिंग से ज्यादा हिंसा भड़क सकती है . आयोग ने संबंधित विभागों को भी निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करें कि मीडिया ऐसे माहौल में नियंत्रित होकर अपना काम करें . और अगर ऐसे वक्त में भी मीडिया अपनी सीमाएं लांघता है तो फिर मीडिया के खिलाफ भी प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए .
यानी दंगे भड़काने में मीडिया की भी अप्रत्यक्ष भूमिका थी. मीडिया के एक हिस्से का इरादा..दुष्प्रचार करना था या नहीं..ये तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन एक एजेंडे के तहत की गई पत्रकारिता ने ना सिर्फ एक राज्य को कई दिनों तक दंगों की आग में झोंककर रखा ..बल्कि एक ऐसे दुष्पच्रार को जन्म दिया. जिसके ज़रिए सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि पूरे देश की छवि को खराब किया ..और दो समुदायों के लोग एक दूसरे से नफरत करने लगे .
44 हज़ार 445 शपथ पत्र
आयोग ने ये माना है कि गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा की बड़ी वजह हिंदू और मुस्लिम समुदाय के कुछ तबकों में एक दूसरे के प्रति नफरत थी. आयोग की इस रिपोर्ट का आधार 44 हज़ार 445 शपथ पत्र हैं . इसके अलावा इसमें 488 सरकारी अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के शपथ पत्र भी शामिल हैं. जस्टिस GT NANAVATI और जस्टिस अक्षय मेहता की ढाई हज़ार पन्नों की ये रिपोर्ट. उस दुष्प्रचार की पोल खोलती है. जिसके ज़रिए…17 वर्षों तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर दाग लगाने की कोशिश हुई .
साफ है कि अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हो पाया है. लेकिन विपक्ष ने गुजरात दंगों के नाम पर उन्हें बार-बार बदनाम करने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार का ये सिलसिला गुजरात दंगों के बाद से भी शुरू हो गया था.
प्रधानमंत्री मोदी को 2001 में गुजरात में आए भूकंप के बाद मुख्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन देश की राजनीति में सबसे बड़ा भूकंप 2002 में आया. जब गुजरात दंगों की आग में जलने लगा. इन दंगों में एक हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए थे . नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कि अगर वो चाहते तो दंगे रोक सकते थे.
ये भी विडंबना है कि नरेंद्र मोदी 13 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन 2002 को छोड़कर उनके शासन काल में कभी दंगे नहीं हुए . लेकिन उनके विरोधियों ने 2002 के दंगों का मुद्दा कभी हाथ से जाने नहीं दिया . नरेंद्र मोदी को लेकर दुष्प्रचार का सिलसिला 2002 के बाद से ही शुरू हो गया था. लेकिन 2007 आते-आते उन पर अपमानजनक टिप्पणियां भी की जाने लगीं.
वर्ष 2007 में कांग्रेस अध्य़क्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था . इसके अलावा राहुल गांधी, मणिशंकर अय्यर, मनीष तिवारी, बीके हरिप्रसाद और दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने पिछले 17 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर कई हमले किए…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने वालों की सूची में सिर्फ राजनेता ही नहीं बल्कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल रहा है . मीडिया के इस हिस्से ने प्रधानमंत्री मोदी को बार-बार गुजरात के खलनायक के तौर पर दिखाने की कोशिश की . डिजाइनर पत्रकारों ने…विदेशी मीडिया के एक हिस्से के साथ गठबंधन कर लिया और ये लोग प्रधानमंत्री मोदी की छवि को धूमिल करने के लिए ज़ोर शोर से अपना एजेंडा चलाने लगे.
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ विरोधी राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ नहीं लड़ रहे थे. बल्कि मोदी विरोधी इस गठबंधन में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा, अंग्रेज़ी बोलने वाले Celebreties, कथित बुद्धिजीवी, अवार्ड वापसी गैंग और देश के टुकड़े टुकड़े करने वाली सोच रखने वाले छात्र नेता शामिल थे. लेकिन आज नानावटी-मेहता आयोग ने मोदी विरोधी गिरोह को आईना दिखा दिया है.
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने ऊपर फेंके गये पत्थरों से भी घर बना लेते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे ही नेता हैं. लेकिन पिछले 17 वर्षों के दौरान उनका नाम गुजरात दंगों से जोड़कर..उन्हें ठेस पहुंचाई गई. राजनीतिक रूप से उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश की गई. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तो 27 मार्च 2010 को गुजरात दंगों की जांच करने वाली Special Investigation Team यानी SIT ने करीब 10 घंटे तक पूछताछ की थी.
SIT से पूछताछ के बाद नरेंद्र मोदी मीडिया के सामने आए थे. और उन्होंने कहा था कि वो हर जांच और कानूनी प्रक्रिया में मदद करेंगे. आरोप मुक्त होने के बावजूद कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2002 दंगों का सबसे बड़ा विलेन बताती है. लेकिन देश में हुए बड़े दंगों में कांग्रेस पार्टी की भूमिका को समझना भी जरूरी है. आजादी के बाद सांप्रदायिक दंगों का इतिहास देखे तो 1967 से अब तक देश में 18 बड़े दंगे हुए हैं..
जिसमें 10 बड़े सांप्रदायिक दंगे कांग्रेस के शासनकाल में हुए.. 4 सांप्रदायिक दंगे अन्य दलों के शासन में हुए. तीन राष्ट्रपति शासन के दौरान हुए और सिर्फ एक बड़ा सांप्रदायिक दंगा 2002 में गुजरात में हुआ. जब नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे. इतना ही नहीं.. पिछले 70 सालों में देश में हुआ सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा ना केवल कांग्रेस के शासन में हुआ बल्कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं पर इसे आयोजित करने का आरोप भी लगा. वर्ष 1984 में हुए सिख दंगे में सिर्फ दिल्ली में ही करीब 3 हज़ार लोगों की जान चली गई थी. कुल मिलाकर कांग्रेस शासन काल में हुए 10 बड़े दंगों में 7800 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई… लेकिन कांग्रेस आज भी गलतियां मानने की बजाय उसे छुपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाती है.
Bureau Report
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