नईदिल्ली: सरकारी अनुदान प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई. इससे पहले 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में मदरसा आयोग को हरी झंडी दे दी थी. बुधवार (8 जनवरी) को पश्चिम बंगाल के मदरसा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में विरोधाभास है. लिहाजा इसे बडी पीठ के पास भेज जाना चाहिए. पश्चिम बंगाल मदरसा आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने पैरवी की थी.
कोर्ट अब इस मामले में शुक्रवार (10 जनवरी) को सुनवाई करेगा.
पश्चिम बंगाल मदरसा आयोग को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी
6 जनवरी को पश्चिम बंगाल मदरसा आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है. सरकारी अनुदान पाने वाले मदरसों में राज्य सरकार की तरफ से बनाया गया आयोग शिक्षक की नियुक्ति कर सकेगा. मदरसा के संचालक इसका विरोध कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि अब शिक्षकों की नियुक्ति मदरसा कमीशन द्वारा की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को वैध ठहराया.
मदरसों सहित अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार सरकार द्वारा एक विधायी प्रक्रिया अपनाकर ले लिया जा सकता है, जिसका उद्देश्य समुदाय की स्थिति का उत्थान करना है. जस्टिस अरुण मिश्रा और यू यू ललित की पीठ पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की संवैधानिक वैधता का फैसला करते हुए इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है जिसके तहत मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति एक आयोग द्वारा तय की जानी थी.
अनेक मदरसों की प्रबंध समितियों ने कलकत्ता हाई कोर्ट में एक्ट को चुनौती दी थी, जिसने कानून को असंवैधानिक ठहराया था. इस फैसले के खिलाफ नए कानून के तहत नियुक्त हुए शिक्षक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.
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