100 बच्‍चों की मौत, मासूमों को मौत देने वाले ‘सिस्टम’ की ‘सर्जरी’ होगी कब?

100 बच्‍चों की मौत, मासूमों को मौत देने वाले 'सिस्टम' की 'सर्जरी' होगी कब?कोटा: राजस्थान के कोटा में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. यहां के जेके लोन अस्पताल में दिसंबर के आखिरी दो दिनों में नौ बच्चों की मौत के बाद मरने वाले बच्चों की संख्या 100 हो गई है. मीडिया की टीम जब इस अस्पताल का दौरा करने पहुंची तो पाया कि अस्पताल में संसाधनों की भारी कमी है. अस्पताल की 19 में से 11 वेंटिलेटर मशीन खराब पड़ी हैं. ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी है. अस्पताल के NICU में ऑक्सीजन पाइपलाइन नहीं है. अस्पताल के बाहर हर तरफ गंदगी फैली है. इतना ही नहीं अस्पताल में हर तरफ गंदगी फैली है. NCPCR ने भी कहा कि अस्पताल में सफाई की हालत बहुत खराब है. हालांकि इस मुद्दे पर अस्‍पताल प्रशासन का कहना है कि बच्‍चों की मौत कई वजहों से हुई. उल्‍लेखनीय है कि जेके लोन अस्पताल में 2019 में 963 बच्चों की मौत हुई.

वहीं मासूमों की मौत पर राजनीति भी शुरू हो गई है. बीजेपी ने बच्चों की मौत के लिए कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है तो कांग्रेस ने बीजेपी को अपनी सरकार के आंकड़ों पर गौर करने को कहा है. बसपा प्रमुख मायावती ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रियंका गांधी इस मुद्दे पर चुप क्‍यों हैं?

लेकिन इन सबके बीच मीडिया का सवाल है कि मासूमों को मौत देने वाले ‘सिस्टम’ की ‘सर्जरी’ कब होगी? जब मीडिया ने बच्चों की मौत की वजह अस्पताल प्रशासन से जाननी चाही तो उन्‍होंने गोल-मोल जवाब दिया. अस्पताल प्रशासन ने दलील देते हुए कहा कि जिन बच्चों की मौत हुई है ये ज्यादातर रेफर किए गए थे…मरने वालों में अधिकांश बारां और कोटा के ग्रामीण क्षेत्रों से हैं और ये सभी नवजात थे…ये जवाब खुद शिशु रोग विभाग के प्रमुख ने दिया.

एक तरफ जहां बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रुक रहा है वहीं दूसरी तरफ राजस्थान सरकार की जांच कमेटी का मानना है कि बच्चों के इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गई. हालांकि अस्पताल में संसाधनों की कमी को कमेटी ने स्वीकारा है. रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों की संख्या बेड क्षमता से डेढ़ गुना अधिक है.

कार्रवाई के नाम पर अब तक सिर्फ अस्पताल के अधीक्षक डॉ एचएल मीणा को हटाया गया है. सरकार ये गिनाने में लगी है कि इस साल बच्चों की मौत का आंकड़ा पिछले साल से कम है…

सवाल ये है कि क्या सिर्फ इस आंकड़े के आधार पर राजस्थान सरकार और जेके लोन अस्पताल को क्लीन चिट दी जा सकती है? आंकड़े गिनाने वालों को एक साल में 100 बच्चों की मौत कम क्यों लग रही है? क्या इसके लिए सरकार और सिस्टम जिम्मेदार नहीं है?

 

Bureau Report

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