नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर दायर 144 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। इस दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि केंद्र का पक्ष सुने बगैर सीएए और एनपीआर प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएंगे। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सीएए को लेकर 84 नई याचिकाएं दायर हो गई हैं। अब नई याचिकाएं स्वीकार न की जाएं। अगर ऐसे ही अर्जी आती रहीं तो हमें जवाब देने के लिए ज्यादा वक्त चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने इसके लिए 6 हफ्ते का समय मांगा। इस पर कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 हफ्ते में सभी याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकता कानून के विरोध वाली याचिकाओं पर 5 हफ्ते बाद ही कोई अंतरिम आदेश जारी होगा। अब 5 जजों की संविधान पीठ सीएए की संवैधानिकता पर सुनवाई करेगी। इस दौरान वेणुगोपाल ने मांग की- सभी हाईकोर्ट से कहा जाए कि वे सीएए से जुड़े मामलों पर सुनवाई न करें। बेंच ने इस पर समहति जताई।
अपडेट्स
- सुनवाई शुरू होने से पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा- कोर्ट का माहौल शांत रहना जरूरी। उन्होंने चीफ जस्टिस से कहा- इस कोर्ट में कौन आ सकता है और कौन नहीं, इस पर नियम होने चाहिए। अमेरिकी और पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में भी कोर्ट रूम के अंदर आने वालों के लिए कुछ नियम हैं।
- याचिकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा- अप्रैल में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसलिए कोर्ट को उससे पहले कुछ करना चाहिए। एनपीआर को 3 महीने के लिए टाला जाए, तब तक जज नागरिकता कानून पर चल रहे विवाद पर फैसला ले सकते हैं। कोर्ट को फैसला करना चाहिए कि इस केस को संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं।
- अटॉर्नी जनरल ने कहा- केंद्र को असम से जुड़ी याचिकाएं नहीं दी गईं। जो याचिकाएं हमें नहीं दी गईं, उनमें प्रतिक्रिया के लिए समय दिया जाए। चीफ जस्टिस बोले- सिर्फ एक पक्ष को सुनकर फैसला नहीं लिया जाएगा। हमें केंद्र को सुनना होगा। असम और त्रिपुरा के मामले अलग हैं।
- वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- उत्तर प्रदेश ने सीएए के तहत नागरिकता देनी शुरू कर दी है। ऐसे में जिन्हें नागरिकता दे दी जाएगी, उनसे नागरिकता वापस नहीं ली जा सकेगी। इसलिए सीएए पर पर रोक लगाई जाए। चीफ जस्टिस ने कहा- हम केंद्र से शरणार्थियों को कुछ अस्थायी परमिट देने के लिए कह सकते हैं।
- अटॉर्नी जनरल ने कहा- सीएए पर अब और याचिकाएं दायर होने से रोकी जाएं, क्योंकि पहले ही इस मामले में 144 याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। अगर सुनवाई के बीच में और याचिकाएं आईं तो हमें हर जवाब दायर करने के लिए और ज्यादा समय चाहिए।
- वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने असम में सीएए लागू होने से रोकने की मांग की। उन्होंने कहा- असम में हालात अलग हैं, पिछली सुनवाई से लेकर अब तक वहां 40 हजार लोग आ चुके हैं। इस पर एजी ने कोर्ट से अपील की कि असम से जुड़ी याचिकाओं को दो हफ्ते बाद अलग रखा जाए। इसके अलावा 80 अन्य याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए 6 हफ्ते का समय दिया जाए।
- सीजेआई ने कहा- हम असम से जुड़ी याचिकाओं पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेंगे। जो याचिकाएं केंद्र के सामने नहीं आईं, उन पर जवाब देने के लिए केंद्र को 4 हफ्ते दिए जाते हैं। इस मामले में सभी याचिकाएं हमें सूचीबद्ध कर के दी जाएं। कुछ मामलों को हम चेंबर में सुन सकते हैं।
सीएए में तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान
सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 से भारत में आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दी थी। इसके बाद यह कानून बन गया। इसके विरोध में पूर्वोत्तर समेत देशभर में प्रदर्शन हुई। इस दौरान हुई हिंसा में यूपी समेत कई राज्यों में लोगों की जान भी गई।
किस याचिका में, क्या कहा गया?
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग: आईयूएमएल ने याचिका में कहा- सीएए समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। यह अवैध प्रवासियों के एक धड़े को नागरिकता देने के लिए है और धर्म के आधार पर इसमें पक्षपात किया गया है। यह संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है। यह कानून साफतौर पर मुस्लिमों के साथ भेदभाव है, क्योंकि इसका फायदा केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को मिलेगा। सीएए पर अंतरिम रोक लगाई जाए। इसके साथ ही फॉरेन अमेंडमेंट ऑर्डर 2015 और पासपोर्ट इंट्री अमेंडमेंट रूल्स 2015 के भी क्रियाशील होने पर रोक लगाई जाए।
कांग्रेस: जयराम रमेश ने याचिका में कहा- यह कानून संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों पर एक “निर्लज्ज हमला’ है। यह समान लोगों के साथ असमान की तरह व्यवहार करता है। कानून को लेकर सवाल यह है कि क्या भारत में नागरिकता देने या इनकार करने का आधार धर्म हो सकता है? यह स्पष्ट तौर पर सिटिजनशिप एक्ट 1955 में असंवैधानिक संशोधन है। संदेहास्पद कानून दो तरह के वर्गीकरण करता है। पहला धर्म के आधार पर और दूसरा भौगोलिक परिस्थिति के आधार पर। दोनों ही वर्गीकरणों का उस मकसद से कोई उचित संबंध नहीं है, जिसके लिए इस कानून को लाया गया है यानी भारत आए ऐसे समुदायों को छत, सुरक्षा और नागरिकता देना, जिन्हें पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर जुल्म का शिकार होना पड़ा।
राजद, तृणमूल, एआईएमआईएम: राजद नेता मनोज झा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सीएए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया असम स्टूडेंट यूनियन, पीस पार्टी, सीपीआई, एनजीओ रिहाई मंच और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, वकील एमएल शर्मा और कुछ कानून के छात्रों ने भी सीएए के खिलाफ याचिकाएं दाखिल कीं।
केरलः मुख्यमंत्री पिनरई विजयन कानून को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। केरल सरकार ने कहा था- हम कानून के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, क्योंकि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला है। केरल के अलावा पंजाब विधानसभा ने भी सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पास किया है। वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे गैर भाजपा शासित राज्य पहले ही इसे अपने यहां लागू नहीं करने की बात कह चुके हैं।
कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था- हमारा काम वैधता की जांच करना
सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को कानून को संवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की थी। बेंच ने तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए कहा था कि देश अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है। जब हिंसा थमेगी, तब सुनवाई की जाएगी। पहली बार है, जब कोई देश के कानून को संवैधानिक करार देने की मांग कर रहा है, जबकि हमारा काम वैधता जांचना है।
Bureau Report
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