लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में फर्जी टीचरों की नियुक्ति की खबरें आपने खूब सुनी होंगी. लेकिन, एक नाम का एक टीचर असली हो और उसी नाम पर उसी के दस्तावेज पर कई टीचर फर्जी मलाई खा रहे हों तो, आप क्या कहेंगे. ऐसे फर्जी टीचरों के एक के बाद एक ऐसे कई मामले सामने आए तो, स्पेशल टास्क फोर्स और एसआईटी को जांच की जिम्मेदारी दी गई. जांच में अब तक 4000 से ज़्यादा ऐसे फर्जी टीचरों की पहचान की गई है.
दरअसल, यूपी एसटीएफ का एक दस्तावेज जी मीडिया के हाथ लगा है, जिसमें प्रदेश के शिक्षा विभाग को कई सुझाव दिए गए हैं. शिक्षा विभाग को खोखला कर चुके भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आठ सुझाव दिए गए हैं. इसमें सबसे ज्यादा गौर करने वाला सुझाव आठवें नंबर का है. इस सुझाव में एसटीएफ ने शिक्षा विभाग को बताया है कि आपके विभाग में ऐसी नियुक्तियां हो रही हैं, जो ना सिर्फ होनहार शिक्षकों के लिए परेशानी का सबब हैं. बल्कि, ऐसे बेरोजगार नौजवानों के उम्मीदों सपनों के साथ धोखा है, जो इस उम्मीद से व्यवस्था की तरफ देखते हैं कि एक दिन उनको भी नौकरी मिलेगी. लेकिन, उन्हें मालूम नहीं कि खाली वैकेंसी पर फर्जी नियुक्ति हो चुकी है.
एसटीएफ की मानें तो, इन फर्जी शिक्षकों की तादात इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है. ये भी कहा जा रहा है कि प्राइमरी शिक्षा पर उत्तर प्रदेश सरकार के 65 हजार करोड़ के बजट का करीब 10 से 15 हजार करोड़ ऐसे ही फर्जी टीचरों पर खर्च हो रहा है.
ये है पूरा मामला
अनिल यादव गोरखपुर में एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हैं. लेकिन, अनिल यादव नाम से सीतापुर और अंबेडकरनगर में भी अलग-अलग आदमी शिक्षक प्राइमरी स्कूल में पढ़ा रहे थे. इन्होंने पहली बार जब आईटीआर दाखिल किया तो, पता चला कि इनके पैन नंबर से दो और टीचर भी सैलरी पा रहे हैं और उनके नाम, पिता का नाम और आधार नंबर सब वही हैं. अनिल यादव को जब पता चला तो, उनके होश उड़ गए. वहीं, उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि कहीं नकली वाले इनकी हत्या कर खुद को अनिल यादव न साबित कर दें.
असल में अनिल यादव मेधावी छात्र थे. उनका 6 जिलों में चयन हो गया. हर जगह काउंसलिंग की और गोरखपुर में ज्वाइन कर लिया. यानी 6 जगह पद खाली रह गए. यहीं से इस फ्रॉड की कहानी शुरू होती है. सीतापुर और अंबेडकर नगर में जहां अनिल यादव ने नौकरी ज्वाइन नहीं की. वहां भी कुछ लोगों ने खुद को अनिल यादव बताकर नौकरी ज्वाइन कर ली. इसके लिए इन लोगों ने शिक्षा विभाग के लोगों को मिलाया. फिर अखबार में अनिल यादव के नाम से एडवाइरटाइज दिया गया कि उनकी सारी डिग्री खो गई हैं.
फिर उसी एड की कटिंग लगाकर अनिल यादव के नाम से डुप्लीकेट डिग्री बनवा ली गई. फिर उन डिग्रियों को जहां नौकरी ज्वाइन की वहां वेरीफाई भी करा लिया. यही नहीं अनिल यादव के नाम से फर्जी आधार और पैन नंबर भी बनवा ली. लेकिन जब अध्यापकों के लिए इनकम टैक्स भरना जरूरी किया गया तो, तीनों लोगों की सैलरी जारी होने से मामला पकड़ में आ गया. गौरतलब है कि यूपी पुलिस अब तक ऐसे दर्जनों मामलों का खुलासा कर चुकी है.
अब तक कहां-कहां से मिले कितने फर्जी अध्यापक
मथुरा: 124
सिद्धार्थ नगर: 97
बाराबंकी: 12
अमेठी: 10
आजमगढ़: 5
बलरामपुर: 5
महराजगंज: 4
देवरिया: 3
सुल्तानपुर: 3
बरेली: 2
सीतापुर: 2
अंबेडकरनगर: 1
गोरखपुर: 1
एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश ने बताया कि जब जांच का काम शुरू हुआ तो, लगा कि यह एक छोटा मामला है. लेकिन बाद में इतनी बड़ी समस्या निकल आई. सबसे पहला खुलासा मथुरा में हुआ. जहां 85 अध्यापकों की बात सामने आई थी. उन्होंने बताया कि बरेली में गिरफ्तार फर्जी अध्यापक उमेश कुमार और विनय कुमार 40-40 लाख रुपये की सैलरी अब तक पा चुके हैं.
आईजी अमिताभ यश ने बताया कि सिद्धार्थनगर में फर्जी टीचर राकेश सिंह ने भेद खुल जाने के बाद बीएसए ऑफिस में चोरी भी करवा दी, जिसमें उनकी डिग्री भी चोरी हो गई. जब वहां एक क्लर्क राकेश मणि को पता चला तो वह राकेश सिंह को ब्लैकमेल करने लगा. इससे परेशान होकर राकेश सिंह ने राकेश मणि पर दो महिलाओं से रेप के मुकदमे दर्ज करवा दिए. इसी तरह बिंदेश्वरी पहले शिक्षा विभाग में सफाई कर्मचारी थे. बाद में एक टीचर शशिकेश की डिग्री लगाकर टीचर बन गए.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में करीब सवा लाख प्राइमरी स्कूल हैं. जिनमें 2 करोड़ बच्चों को पौने छह लाख टीचर पढ़ाते हैं.
एसटीएफ ने बताया कि उत्तर प्रदेश में फर्जी टीचर बनने के 8 तरीके हैं.
1- फर्जी डिग्री से नौकरी पाना
2- दूसरों के नाम पर नौकरी पाना
3- बिना अप्लाई किए फर्जी नियुक्ति पत्र से नौकरी पाना.
4- फर्जी जाति प्रमाणपत्र से रिजर्वेशन से नौकरी पाना.
5- फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट बनवाकर कोटे से नौकरी पाना.
6- अल्पसंख्यक स्कूलों में नाकाबिल दोस्तों और रिश्तेदारों को कोटे के जरिए नौकरी दिलवा देना.
7- वित्त पोषित स्कूलों में अनियमिताएं.
8- किसी अन्य अभ्यर्थी के प्रमाण-पत्र पर दूसरे अयोग्य अभ्यार्थी को नियुक्ति देना.
Bureau Report
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