नईदिल्ली: RCEP यानि Regional Comprehensive Economic Partnership आजकल आप इसका नाम सुन रहे होंगे, और ये भी कि भारत ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया है. चीन सहित एशिया-प्रशांत के 15 देशों ने दुनिया के इस सबसे बड़े इस व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि ये RCEP समझौता है क्या और ये इतना जरूरी क्यों कहा जा रहा है.
क्या है RCEP समझौता
RCEP पर 10 देशों के दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (ASEAN) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के समापन के बाद रविवार को वर्चुअल तरीके से हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता करीब आठ साल तक चली बातचीत के बाद पूरा हुआ. दरअसल, इस समझौते के दायरे में करीब दुनिया की 30 परसेंट अर्थव्यवस्था आएगी.
RCEP एक व्यापार समझौता है, जो इसके सदस्य देशों के लिए एक-दूसरे के साथ व्यापार करने को बेहद आसान बनाता है. इसके सदस्य देशों को इंपोर्ट-एक्सपोर्ट पर लगने वाला टैक्स या तो भरना ही नहीं पड़ेगा या फिर बहुत कम देना पड़ेगा. इस समझौते के तहत भविष्य में सदस्य देशों के बीच व्यापार से जुड़े शुल्क घट जाएंगे. समझौते पर हस्ताक्षर के बाद सभी देशों को RCEP को दो साल के दौरान अनुमोदित करना होगा जिसके बाद यह लागू हो जाएगा.
RCEP में अमेरिका भी शामिल नहीं
सबसे पहले 2012 में RCEP का प्रस्ताव किया गया था. इसमें आसियन के 10 देश- इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यामांर और कंबोडिया के साथ चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. अमेरिका इस समझौते में शामिल नहीं है.
भारत ने क्यों किया RCEP से किनारा
भारत इस समझौते में शामिल नहीं हुआ इसके पीछे की वजहें हैं. इस समझौते से भारत के मेक इन इंडिया, आत्म निर्भर भारत जैसे मिशन को झटका लग सकता है और चीन को भी तवज्जो देनी पड़ सकती है. इसके ऐसे समझिए
1. जब व्यापार शुल्क खत्म हो जाएंगे तो देश में इंपोर्ट से बढ़ने लगेगा. जिससे लोकल मैन्यूफैक्चरर्स, कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है
2. साल 2022 में ये लागू होगा, लेकिन कस्टम ड्यूटी का आधार 2014 होगा, जिससे भारत का मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग को झटका लग सकता है
3. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर कोई देश RCEP के अलावा किसी दूसरे देश को अपने यहां निवेश करने पर अलग से कुछ फायदा देता है तो वही फायदा RCEP देशों को भी देना पड़ सकता है
4. RCEP में चीन भी शामिल है, यानि भारत को मजबूरी में चीन को भी वो सभी लाभ देने पड़ते, जो कि भारत के लिए अब मुश्किल है
5. किसान और व्यापारी संगठन इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि अगर भारत इसमें शामिल हुआ तो पहले से परेशान किसान और छोटे व्यापारी तबाह हो जाएंगे.
RCEP का विकल्प है FTA
एक्सपर्ट्स के मुताबिक अमेरिका और यूरोप के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) भारत के लिए ज्यादा फायदेमेंद साबित होंगे. क्योंकि ये विकसित देश हैं, जबकि आसियान देशों में भारत के प्रोडक्ट का मुकाबला करना मुश्किल होता. अमेरिका के साथ भारत का एक्सपोर्ट ज्यादा है इंपोर्ट के मुकाबले, जबकि चीन के साथ ठीक उल्टा है. साल भर पहले नवंबर 2019 में पीएम मोदी ने पहले ही RCEP में शामिल होने से ये कहकर इनकार कर दिया था कि वो अपनी अंतरात्मा की आवाज पर ये फैसला कर रहे हैं.
चीन ने कहा, भारत ने की गलती
RCEP में शामिल नहीं होने पर चीन ने अपनी खीज निकाली है. चीन के अखबारों ने लिखा है कि भारत ने रणनीतिक तौर पर एक भारी गलती की है. इसके लिए चीन की मीडिया ने strategic blunder जैसे शब्द का इस्तेमाल किया है और कहा है कि भारत आर्थिक रिकवरी करने से चूक जाएगा.
भारत ने कहा, शर्तें हमारे पक्ष में नहीं
विदेशी मंत्री एस जयशंकर ने भारत के इस कदम का सही बताया और कहा कि जरूरी नहीं कि सभी करार देश के लिए अच्छे ही हों. RCEP में हम वैश्विक प्रतिबद्धता में बंध जाते, इसके कई शर्तें हमारे पक्ष में नहीं हैं. जो इस डील की तारीफ कर रहे हैं वो पूरी पिक्चर नहीं दिखा रहे हैं.
Bureau Report
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