International Men’s Day: क्या मर्द को वाकई दर्द नहीं होता?

International Men's Day: क्या मर्द को वाकई दर्द नहीं होता?नईदिल्ली: आज इंटरनेशनल मेंस डे यानी ‘अंर्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस’ है. आज हम बात कर हैं पुरुषों की भावनाओं की. यूं तो पुरुषों को अहम का प्रतीक और महिलाओं को ममत्व की देवी कहा जाता है. लेकिन आज इस खास दिन पर आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि कई मायनों में पुरुष, महिलाओं से ज्यादा भावुक होते हैं. महज कुछ क्षणों के अहम के कारण पुरुष पूरे जीवन दर्द झेलते हैं. शायद यही वजह है कि पुरुषों की आत्महत्या के केस महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा हैं. 

मर्द को दर्द नहीं होता
‘मर्द को दर्द नहीं होता’ या फिर मर्द अपने दर्द को अपने भीतर रखते हैं? ऐसे कई उदाहरण हैं, जब एक पुरुष किसी महिला से ज्यादा भावुक नजर आया है. समाज में कई ऐसे पुरुष हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को बिना उसकी मां के पाला है. कई पुरुषों ने महिलाओं से बढ़कर ममत्व का उदाहरण पेश किया है. इसलिए यह बड़ा सवाल है कि क्या वाकई मर्द को दर्द नहीं होता? 

महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक सुसाइड करते हैं
‘इंटरनेशनल मेंस डे’ पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau) के आंकड़ों पर नजर डालें तो महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक सुसाइड (Suicide) करते हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में 30 से 45 साल के पुरुष सबसे ज्यादा सुसाइड करते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा दी गई रिपोर्ट देखें तो इस बात को भली-भांति समझा जा सकता है.ये आंकड़े बताते हैं कि एक वर्ष में 30 साल तक के 27343 और 45 साल तक के 30659 पुरुषों ने सुसाइड किया, जबकि 30 साल की उम्र में महिलाओं के सुसाइड का आंकड़ा 17527 और 45 साल की उम्र की महिलाओं का आंकड़ा 11723 है.

पुरुष अपनी कमजोरियां बयां नहीं करते 
समाज में पुरुषों को ताकतवर और निडर माना जाता है. पुरुष कभी भी अपनी कमजोरियां और झिझक बयां नहीं करते. महिलाएं अपनी व्यथा कई बार एक-दूसरे से शेयर कर लेती हैं लेकिन पुरुष अपने दर्द को अपने भीतर ही समाए रखते हैं. यही बड़ी वजह है कि पुरुष जल्दी रोते नहीं हैं.

ऐसे में अधिकतर पुरुष किसी बात को जब दिल से लगा लेते हैं, तब वे या तो एग्रेसिव होकर दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं या फिर मान-सम्मान, प्रेम, प्रतिष्ठा या भावनात्मक रूप से कमजोर होकर सुसाइड कर लेते हैं.

हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण और नारीवाद पर जोर दिया जाता है लेकिन पुरुषों से सहानुभूति कम होती है. पुरुष भी कई बार घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं. वे अंतर्मुखी या असहज महसूस करने के कारण किसी को कुछ बताते नहीं हैं. ऐसे में कई बार पुरुष अवसाद में भी जाने लगते हैं. 

महिला कानून का कई बार गलत उपयोग
समाज में भले ही महिलाओं के साथ हुई घटनाओं की खबरें आती हैं लेकिन कई बार पत्नियां उन्हें कानून का डर दिखाकर उनका शोषण करती हैं. यही वजह है कि पिछले कई सालों से भारत में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार से महिला आयोग की तरह ‘पुरुष आयोग’ और ‘पुरुष विकास मंत्रालय’ बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है.

उठ रही है ‘पुरुष आयोग’ की मांग
पुरुषों के अधिकारों के हनन के कारण पुरुषों का एक बड़ा तबका ‘पुरुष आयोग’ की मांग करता आया है. इनका मानना है कि पुरुष गलती करें तो उसे सजा दी जाए, लेकिन महिलाओं के लिए बनने वाले कानूनों का दुरुपयोग तत्काल प्रभाव से रोकना होगा, नहीं तो आने वाले समय में मेल एक्सप्लॉइटेशन (Male Exploitation) का रेट काफी बढ़ जाएगा.

बीते एक दशक में कई ऐसी खबरें सामने आई हैं, जब महिलाओं द्वारा पुरुषों का शोषण हुआ है या फिर महिला कानून के कारण बेगुनाह पुरुषों के साथ अन्याय हुआ है.

Bureau Report

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