नईदिल्ली: भारतीय रेलवे को 10 साल पुराने लापरवाही के मामले में झटका लगा है और अब राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 3 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया है. रेलवे की लापरवाही का यह मामला सितंबर 2010 का है, जब ट्रेन में लोअर बर्थ खाली होने के बावजूद एक बुजुर्ग दंपत्ति को नहीं दी गई थी.
टीटीई ने भी नहीं दी थी लोअर बर्थ
एनबीटी की रिपोर्ट के अनुसार, बुजुर्ग दंपत्ति ने 4 सितंबर 2010 को सोलापुर से बिरूर जाने के लिए दिव्यांग कोटे से थर्ड एसी बोगी में सीट बुक कराई, लेकिन इसके बावजूद उन्हें लोअर बर्थ नहीं दी गई. इसके बाद यात्रा के समय दंपत्ति ने टीटीई से लोअर बर्थ देने का आग्रह किया, लेकिन इसके बाद भी उन्हें नीचे की सीट नहीं दी गई. इसके बाद उन्हें सीट के पास नीचे बैठकर यात्रा करनी पड़ी, हालांकि बाद में एक यात्री ने उन्हें अपनी लोअर बर्थ दे दी.
डेस्टिनेशन से पहले उतार दिया गया
सीट देने में लापरवाही के अलावा बुजुर्ग दंपत्ति को गंतव्य स्टेशन से पहले उतार दिया गया. दरअसल, बिरूर स्टेशन पर ट्रेन सुबह तड़के पहुंचनी थी, इसलिए बुजुर्ग दंपत्ति ने कोच अटेंडेंट और टीटीई से कहा कि बिरूर स्टेशन आने पर उन्हें बता दें. लेकिन यहां भी लापरवाही हुई और उन्हेंने बिरूर से करीब सौ किलोमीटर पहले ही चिकजाजुर में उतार दिया गया.
खाली थी 6 लोअर बर्थ सीट
परेशानी के बाद बुजुर्ग दंपत्ति ने भारतीय रेलवे के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. शिकायत में दंपत्ति ने बताया कि यात्रा के समय कोच में छह लोअर बर्थ खाली थी, लेकिन टीटीई ने उन्हें लोअर बर्थ नहीं दी और उन्हें 100 किलोमीटर पहले उतार दिया गया. उन्होंने रेलवे पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए मुआवजा मांगा था.
जानें क्या है भारतीय रेलवे का नियम
भारतीय रेलवे के नियमों के अनुसार, सीनियर सिटीजन पुरुष और 45 साल या इससे ज्यादा उम्र की महिला यात्री अपनी पसंद की सीट ना सेलेक्ट करें, तब भी कंप्यूटराइज्ड पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम में लोअर बर्थ देने का प्रावधान है. हालांकि यह बुकिंग के समय लोअर बर्थ खाली रहने पर निर्भर करता है. इसके साथ ही ट्रेन में यात्रा के दौरान लोअर बर्थ खाली रहने पर टिकट चेकिंग स्टाफ दिव्यांग, सीनियर सिटीजन या गर्भवती महिला की सीट बदलकर लोअर बर्थ दे सकता है.
लंबी लड़ाई के बाद बुजुर्ग को मिला इंसाफ
इस मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को घोर लापरवाही का जिम्मेदार ठहराते हुए 3 लाख 2 हजार रुपये मुआवजा और 2500 रुपये मुकदमा खर्च देने का आदेश दिया, लेकिन रेलवे ने आदेश के खिलाफ राज्य आयोग में अपील की. रेलवे का कहना था कि सीट कंप्यूटराइज्ड बुक होती है और कोटा स्थान के हिसाब से लगता. टीटीई सीट नहीं दे सकता. हालांकि राज्य आयोग ने अपील खारिज कर दिया और कहा कि टीटीई का यात्रियों के प्रति कर्तव्य होता है. आयोग ने कहा कि टीटीई ने लापरवाही दिखाई और इस पर ध्यान नहीं दिया कि कौन रात में ट्रेन से उतर रहा है. इसके बाद मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग पहुंचा, लेकिन यहां से भी रेलवे को राहत नहीं मिली और राष्ट्रीय आयोग ने भी जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश को सही ठहराया.
Bureau Report
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