इसे कहते हैं खुद्दारी… CM ने सहायता का आफर भिजवाया, मोगा के 101 वर्षीय बुजुर्ग ने कहा- मैं खुुद कमाकर खुश हूं

मोगा: स्वभाव में खुद्दारी हो, खुद पर भरोसा हो, तो जीवन में किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती। ऐसी ही मिसाल मोगा के 101 साल के बुजुर्ग हरबंस सिंह ने कायम की है। वे इस उम्र में भी हर रोज मोगा के अमृतसर रोड पर आलू, प्याज की रेहड़ी लगाकर जीवनयापन करते हैं। मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने डीसी संदीप हंस के माध्यम से बुजुर्ग को बुलाकर पूछा कि उन्हें कुछ सहायता की जरूरत हो तो बताएं, ये उम्र आराम की है। सरकार आपकी सहायता करेगी, इस सवाल पर बुजुर्ग हरबंस सिंह ने कहा ईश्वर का दिया उनके पास सब कुछ है, उन्हें कुछ नहीं चाहिए। वह खुद कमाकर खुश हैं।

ईश्वर का दिया सब कुछ है मेरे पास

डीसी से पहले हरबंस सिंह के साथ पहले तहसीलदार करुन थपरियान, बाद में एसडीएम सतवंत सिंह ने भी पूछा कि क्या उन्हें किसी प्रकार की सहायता की जरूरत है, हरबंस सिंह ने सबको विनम्रता के साथ एक ही जबाव दिया कि ईश्वर का दिया सब कुछ है, उन्हें कोई सहायता नहीं चाहिए। बाद में डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस ने बुजुर्ग से काफी आत्मीयता के साथ परिवार के हालात पूछे उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते हैं कि अगर उन्हें किसी भी प्रकार की मदद की जरूरत है तो सरकार उनकी पूरी मदद करेगी। परिवार में किसी बच्चे की पढ़ाई में मदद की जरूरत है या कुछ भी वे बोलें, लेकिन बुजुर्ग की रग-रग में खुद्दारी थी। हर बार हाथ जोड़कर सहायता का आफर ठुकरा दिया।

बुजुर्ग की मासूमियत पर हंस पड़े डीसी

करीब एक घंटे तक डीसी ने पूरी आवभगत के साथ कई बार सहायता के लिए कहा तो अंत में जाते-जाते बुजुर्ग ने इतना सा आग्रह किया कि उन्होंने एक जमीन ली थी, रजिस्ट्री करा ली है। इंतकाल नहीं कराया है, वे इंतकाल करा दें। गुलाम भारत के 26 साल व आजाद भारत के 74 साल के अनुभवों को समेटे बुर्जुग की इस मासूमियत पर डीसी को हंसी आ गई, बोले-पूरे जीवन में ऐसा खुद्दार नहीं देखा, उन्हें तो प्रशासनिक क्षेत्र में ऐसे लोग मिले हैं, जिनके पास सब कुछ होकर भी सरकार से सहायता की दरकार करते हुए उनके पास आए हैं। पहला बुजुर्ग देखा है जिसके लिए खुद पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री ने सहायता के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं, लेकिन बुजुर्ग किसी भी स्तर पर सहायता लेने को तैयार नहीं है। जहां तक इंतकाल की बात है तो वह तो वैसे ही प्रोसिस में हो जाना है। फिर भी डीसी ने अपना स्टाफ भेजकर हरबंस सिंह के घर से उनकी रजिस्ट्री मंगवा ली। ताकि उसका इंतकाल कराया जा सके।

कौन हैं हरबंस सिंह

अमृतसर रोड स्थित दशमेश नगर की गली नं. 6 निवासी हरबंस सिंह बताते हैं कि उन्हें बस इतना याद है जब भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी, तब वे 26 साल के थे। कुछ वर्ष पूर्व उनका आधार कार्ड बना था, लेकिन कुछ महीने पहले खो गया है। उनका बड़ा बेटा मंगत सिंह ई रिक्शा चलाकर परिवार का पालन कर रहा है, उसके दो बच्चे हैं, बेटी निशा व बेटा सहज दोनों पढ़ रहे हैं, जबकि एक फल विक्रेता बेटे की कुछ साल पहले हादसे में मौत हो गई थी, उसके भी दो बच्चे हैं, दोनों ही पढ़ रहे हैं। पूरा परिवार साथ रहता है। हरबंस सिंह बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई अच्छे स्कूल में चल रही है, किसी को कोई परेशानी नहीं है।

इस उम्र में भी मेहनत क्यों?

हरबंस सिंह बताते हैं कि हर सुबह चार बजे जागकर नित नेम के बाद मंडी पहुंचते हैं। वहां से प्याज व आलू लाते हैं। सुबह-शाम रेहड़ी लगाकर उसकी बिक्री करते हैं। हरबंस सिंह बताते हैं कि वे आज भी लगातार काम कर रहे हैं। इसलिए स्वस्थ भी हैं। जिंदा भी हैं, जिस दिन काम करना छोड़ देंगे। जिंदा नहीं रह पाएंगे। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। परिवार में कोई आर्थिक परेशानी नहीं है। सिर्फ खुद को स्वस्थ रखने के लिए ही वे हर दिन रेहड़ी लगाते हैं।

स्वस्थ रहने का राज

हरबंस सिंह कोरोना की दोनों भयावह लहर को पराजित कर चुके हैं, उन्हें खांसी जुकाम भी छू नहीं सका, इसके पीछे हरबंस सिंह बताते हैं कि वे मोबाइल नहीं रखते हैं। बाहर का खाना नहीं खाते हैं, घर में बना सादा भोजन करते हैं, नित नेम करते हैं, सरसों के तेल की मालिश करते हैं, बस यही उनके स्वस्थ रहने की वजह है। जिस दिन काम करना बंद कर देंगे, बीमार पड़ जाएंगे। 

Bureau Report

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