तीन साल का कार्यकाल पूरा करने पर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने प्रेस वार्ता में आगे भी देवभूमि की सेवा करने की इच्छा तो जताई थी। लेकिन अचानक उनकी विदाई हो गई। इसने सियासी हलकों में कई चर्चाओं को हवा दे दी। उनके इस्तीफे की खबरें जिसने भी सुनीं, जुबां पर एक ही सवाल था कि आखिर वह बेवक्त राजभवन से क्यों विदा हुईं?
शाह से मुलाकात के बाद विदाई की पटकथा लिख दी गई थी
सूत्रों के मुताबिक, तीन दिन पूर्व उनकी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हुई मुलाकात के बाद उनकी विदाई की पटकथा लिख दी गई थी। माना जा रहा है कि बीते कुछ वर्षों में राजभवन और सरकार के बीच कई मुद्दों को लेकर तल्खी पैदा हुई। जिस राज्य विश्वविद्यालयों के अंब्रेला एक्ट को उच्च शिक्षा मंत्री मील का पत्थर मानकर चल रहे थे, उस पर विधानसभा से दो बार पास होने के बाद भी राजभवन ने मुहर नहीं लगाई। इससे सरकार और भाजपा के वरिष्ठ नेता अंदरखाने काफी खफा थे।
नियुक्तियों का मामला सामने आया तो इसमें राज्यपाल के रुख से सत्ताधारी भाजपा असहज
सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि पिछले दिनों उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में 56 नियुक्तियों का मामला सामने आया तो इसमें राज्यपाल के रुख से सत्ताधारी भाजपा असहज हो गई। मीडिया में मामला उठने के बाद राज्यपाल ने सीधे इसकी जांच बैठा दी। उनके इस कदम से भाजपा में अंदरखाने काफी विरोध देखने को मिला।
आगरा के प्रोफेसर बन गए थे कुमाऊं विवि में कुलपति
कुमाऊं विवि में राज्यपाल ने कुलाधिपति की शक्तियों का प्रयोग करते हुए आगरा के एक प्रोफेसर को कुलपति पद पर तैनात कर दिया। सूत्रों की मानें तो उनके इस फैसले पर न केवल कुमाऊं विवि बल्कि पार्टी में भी काफी विरोध हुआ। हालांकि बाद में वहां स्थायी कुलपति की तैनाती कर दी गई।
उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों का प्रिंटिंग (पेपर व अन्य) का काम यहीं होता था। लेकिन राज्यपाल के आने के बाद कई विश्वविद्यालयों की प्रिंटिंग का पूरा काम आगरा की कंपनी के पास चला गया था। अचानक हुए इस परिवर्तन को भी राजभवन से जोड़कर देखा गया।
Bureau Report
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