राजस्थान में कांग्रेस के गहलोत खेमे के 91 विधायकों की मुसीबत बढ़ गई है। एक ओर विधायक विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफे वापस लेने की अपील कर चुके हैं। दूसरी ओर राजस्थान हाईकोर्ट में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज मित्थल और शुभ मेहता की डिविजन बेंच में मामले पर सोमवार रो सुनवाई हुई। कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष से 10 दिन में इस्तीफों पर निर्णय कर जवाब पेश करने को कहा है। विधानसभा अध्यक्ष और सचिव की ओर से जवाब पेश करने के लिए कोर्ट से समय मांगा गया था। अब मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी।
विधानसभा अध्यक्ष अनंत समय तक इस्तीफे पेंडिंग नहीं रख सकते
उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने मीडिया से रूबरू होकर कहा- सुनवाई के दौरान मैंने खुद अपनी याचिका में पैरवी की है। हाई कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाया है । पहली बार विधानसभा अध्यक्ष को इस तरह के निर्देश हाई कोर्ट ने दिए हैं। कोर्ट का फैसला जरूर नजीर बनेगा। चाहे दल बदल पर फैसला हो या त्यागपत्र पर फैसला हो। विधानसभा अध्यक्ष उसे अनंत समय तक के लिए पेंडिग नहीं रख सकते हैं।
एजी के विधानसभा अध्यक्ष को रिप्रेजेंट करने पर आपत्ति
राठौड़ ने कहा कि आज मैंने इस बात पर भी ऑब्जेक्शन किया कि जो एडवोकेट जनरल सरकार को रिप्रेजेंट करते हैं, वो विधानसभा अध्यक्ष को रिप्रेजेंट कैसे कर रहे हैं। क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष की पैरवी करने एजी कोर्ट में पहुंच गए। 23 जनवरी को बजट सत्र शुरू होगा। उससे पहले हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि इस्तीफों पर निर्णय होगा।
91 विधायकों को विधायक के रूप में काम करने से रोका जाए
उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि आज कोर्ट ने गम्भीर रुख अपनाते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष नियम और प्रक्रियाओं के तहत निर्णय के लिए आए प्रकरणों को अनंत समय तक रोककर नहीं रख सकते। मैंने कोर्ट से कहा- जिन विधायकों ने त्यागपत्र दिया। वो आज त्यागपत्र वापस ले रहे हैं या त्यागपत्र हैं या नहीं। 97 दिन तक त्यागपत्र देने की नौटंकी की। वेतन-भत्ते लिए और मंत्रिमंडल की बैठक में भाग लेते रहे। इसलिए कोर्ट संज्ञान ले। पहले भी दल बदल याचिका पर सितम्बर 2020 को निर्णय दिया गया था कि तीन महीने में स्पीकर फैसला करें। लेकिन स्पीकर ने फैसला नहीं किया। मैंने इस सारी बातों को अपनी याचिका में लिखा है। साथ ही कोर्ट से मांग रखी है कि इन 91 विधायकों को विधायक के रूप में काम करने से रोका जाए।
4 बार फैसला करने की मांग विधानसभा अध्यक्ष से की
राठौड़ बोले कि मैंने एक बार नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के साथ शिष्टमंडल में शामिल होकर और तीन बार पत्र लिखकर विधानसभा अध्यक्ष से गुहार लगाई थी कि आप नीतिगत फैसला करें। फैसला नहीं हुआ तो व्यथित होकर मैं कोर्ट में आया हूं। कोर्ट के नोटिस तामील होने के बाद भी अब तक फैसला नहीं हुआ है। इस्तीफों पर जल्द फैसला होना चाहिए।
विधानसभा सदस्य के त्यागपत्र वापस लेने का प्रावधान नहीं
एडवोकेट हेमंत नाहटा ने कहा कि आर्टिकल 190 में सदस्य द्वारा त्याग पत्र देने का तो प्रावधान है लेकिन उसे वापस लेने का प्रावधान नहीं है। लॉ की पोजिशन यह है कि जिस काम को करने की प्रक्रिया दी गई हो, केवल वही काम किया जाने योग्य है। जिस काम को करने की प्रक्रिया नहीं दी गई हो, उसे नहीं किया जा सकता। इस्तीफा वापस लेना वर्जित माना जाएगा। विधानसभा के सदस्य अगर एक रात को निर्णय लेते हैं कि हमें अपनी सीट का प्रतिनिधित्व नहीं करना है। उन्होंने यह निर्णय लेकर इस्तीफा सौंप दिया। अगर विधानसभा अध्यक्ष के पास पहले से ऐसी सूचना नहीं है कि इस्तीफे जबरन लिखवाए गए हैं या कूटरचित किए गए हैं, तो उन्हें स्वीकार करने के अलावा उनके पास दूसरा ऑप्शन नहीं है।
इस्तीफे स्वीकार करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा
इस्तीफे वापस लेने के मुद्दे पर एडवोकेट नाहटा ने कहा कि ये सारी लीगलिटी कोर्ट की ओर से एग्जामिन किए जाने योग्य है। जब इस्तीफे वापस लिए जाने का प्रोविजन नहीं है। तो ऐसी स्थिति में विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जाने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं रह गया है।
13 बसपा विधायकों का डिसक्वालिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट कर चुका
क्या विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय फाइनल रहेगा या हाईकोर्ट अपने स्तर पर फैसला ले सकता है, सवाल पर एडवोकेट नाहटा ने यह कोर्ट में विचाराधीन मैटर है इस पर मैं कमेंट नहीं कर सकता हूं। लेकिन जब विधानसभा का एक साल रहा गया। तो राजेंद्र सिंह राणा के केस में 13 बसपा विधायकों का डिसक्वालिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह मानना था कि इस स्टेज पर उन्हें रिमांड किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। परिस्थितियों को लेकर कोर्ट खुद कोई निर्णय ले सकती है। 97 दिनों में विधानसभा स्पीकर ने फैसला नहीं लिया। इ दौरान मंत्री-विधायकों ने जितने भी काम किए हैं, क्या वो लीगली सही हैं, जो पैसा नीतिगत रूप से खर्च किया गया क्या वह सही है। इस सब का भी एग्जामिन होगा।
क्या है पूरा मामला
25 सितम्बर 2022 को गहलोत खेमे के कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के निवास पहुंचकर अपने इस्तीफे उन्हें सौंप दिए थे। जिनकी कांग्रेस विधायकों, मंत्रियों ने ही अलग-अलग संख्या बताई। कभी 92, कभी 82 इस्तीफे बताए गए। लेकिन सीएम या विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से इनकी कोई सटीक जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
18 अक्टूबर को राजस्थान बीजेपी विधायकों का 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी से मुलाकात करने उनके निवास पर पहुंचा। लेकिन इस डेलीगेशन में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे शामिल नहीं थीं। बीजेपी विधायकों का कहना था कि गहलोत सरकार अल्पमत में आ गई है। विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी से मुलाकात कर कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे 91 विधायकों के सामूहिक इस्तीफे नियमों के तहत स्पीकर से स्वीकार करने की मांग की गई थी।
ज्ञापन में यह कहा गया था
ज्ञापन में प्रदेश में सरकार समर्थित 91 विधानसभा सदस्यों के 25 सितम्बर 2022 को दिए गए सामूहिक त्याग-पत्र के बाद भी उनके संवैधानिक पद पर बने रहने पर सवाल उठाते हुए संविधान के आर्टिकल 208 के तहत बने राजस्थान विधानसभा प्रक्रियाओं के नियमों के नियम 173(2) के तहत स्वेच्छा से दिए विधायकों के त्याग पत्र स्वीकार करने की मांग की गई थी।
इससे पहले 6 दिसम्बर को हुई थी हाईकोर्ट में सुनवाई
उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के मामले पर लगी जनहित याचिका पर इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट में 6 दिसंबर को सुनावई हुई थी। जिसमें हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को नोटिस जारी कर दिए थे। तब गहलोत सरकार के मंत्री अशोक चांदना ने कहा था कि राजेंद्र राठौड़ अटखेलियां कर रहे हैं। तो पलटवार करते हुए राठौड़ ने करारा जवाब देते चांदना से कहा था कि संविधान घोड़ों और पोलो से ऊपर का विषय है।
इस्तीफे बिना देरी स्वीकार करना अध्यक्ष के लिए बाध्यकारी
राठौड़ ने कहा कि सीट से स्वेच्छा से इस्तीफा दिया जाना MLA का अधिकार है। 91 विधायकों से ज़बरन हस्ताक्षर कराए जाने या उनके त्याग पत्र पर किसी अपराधी द्वारा हस्ताक्षर कूट रचित कर दिए जाने की कोई सूचना अध्यक्ष के पास नहीं थी। इसलिए लिखित में अपने हस्ताक्षरों से व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अध्यक्ष को इस्तीफ़ा पेश किए जाने पर उसे बिना देरी किए स्वीकार करना अध्यक्ष के लिए विधानसभा प्रक्रिया नियम 173 के अंतर्गत बाध्यकारी है। एमएलए एक जागरूक, शिक्षित व्यक्ति होता है और जब 91 सदस्यों ने सामूहिक रूप से बुद्धि लगा कर इस्तीफ़े देने का निर्णय लिया, तो यह नहीं कहा जा सकता कि 91 सदस्यों का ज्ञान सामूहिक रूप से फेल हो गया हो।
Bureau Report
Leave a Reply