नईदिल्ली: हिंदु पंचाग के मुताबिक हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है. इस बार सीता नवमी 24 अप्रैल को पड़ी है. मान्यता के अनुसार इसी दिन मिथिला नरेश जनक को देवी सीता एक कलश में मिलीं थी. देवी सीता कैसे कलश अंदर मिली और कैसे उनका नाम जानकी से सीता पड़ा इसके पीछे एक रोचक कहानी है.
शास्त्रानुसार राजा जनक की कोई संतान नहीं थी. घर धन-धान्य से संपन्न होने के बाद भी संतान ना होने के कारण राजान जनक काफी निराश रहते थे. इसी बीच मिथिला में भयंकर अकाल पड़ गया. मिथिला की सारी प्रजा अकाल से परेशान हो गई और फिर जनक जी को ऋषियों ने सलाह दी की वह राज्य में यज्ञ का आयोजन करवाएं, लेकिन सबसे कठिन काम था कि पूर्णाहुति से पहले जनक जी को अपने हाथों से खेल में हल चलाना था.
ऋषियों के कहे अनुसार जनक जी ने खेत में हल चलाना शुरू किया, कभी अचानक किसी धातु से उनके हल का नोक जिसे ‘सित’ कहते हैं टकराया. काफी कोशिश करने के बाद भी जब जनक जी इसे हटा नहीं पाए तो उन्होंने उस स्थान की खुदाई शुरू की और एक कलश को निकाला. कहा जाता है कि जनक जी ने जैसे ही कलश का ढक्कन हटाया, उसमें एक नवजात कन्या मुस्कुराती हुई नजर आई. जनक जी जब तक कुछ समझ पाते मिथिला में बारिश होने लगी. राजा जनक उस कन्या को अपने साथ ले आए और सित के कलश से कन्या प्राप्त हुई थी इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया.
कलश में कैसे आईं माता सीता
रामायण की कथा के अनुसार देवी सीता, लंकापति रावण की बेटी थी. लंका में जैसे ही सीता का जन्म हुआ, वैसे ही भविष्यवाणी हुई कि अगर यह बच्ची वहां रही तो देश का सर्वनाश हो जाएगा. भविष्यवाणी के बाद रावण डर गए और सीता को एक कलश में रखकर मिथिला की भूमि में दबा दिया. अब इसे संय़ोग कहा जाए या फिर भाग्य का लेखा, जो रावण सीता को जमीन में गाड़ गया था वह खुद उन्हें वापस लंका ले गया और उसका विनाश हो गया.
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