सपा+बसपा के बाद भी यूपी में बीजेपी को हराना आसान नहीं… समझिए गणित.

सपा+बसपा के बाद भी यूपी में बीजेपी को हराना आसान नहीं… समझिए गणित.नईदिल्ली: बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की अध्यक्ष मायावती ने 7 मई को कर्नाटक में घोषणा की है कि 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी पार्टीसमाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ गठबंधन करके लड़ेगी. इस गठबंधन ने जिस तरह का प्रदर्शन गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में किया है, उससे ऐसा संदेश जा रहा है जैसे ये गठबंधन 2019 में यूपी में बीजेपी का सफाया कर देगा. इसकी सीधी वजह यह बताई जा रही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी और सहयोगियों को जहां 43.3 फीसदी वोट मिले थे, वहीं सपा को 22.2, बसपा को 19.6 और कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले थे. तीनों दलों के वोट मिलाकर 49.3 फीसदी होते हैं. इस तरह गठबंधन के पास 6 फीसदी ज्यादा वोट दिखाई देते हैं. ऐसे में पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों का सीटवार विश्लेषण करते हैं, जिससे सांख्यिकी के महीन पहलू भी सामने आ जाएं.

2014 में बीजेपी ने 14 सीटें 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर जीतीं
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने यूपी की 73 सीटें जीतीं थीं. इनमें से 14 सीटें ऐसी थीं, जिनपर बीजेपी को 50 फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले. यानी इन सीटों पर अगर सारी पार्टियां एक हो जाएं तो भी बीजेपी का पलड़ा भारी है. संयोग से इनमें से अधिकांश सीटें शहरी क्षेत्र की हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सपा-बसपा गठबंधन कर भी लें तो भी शहरों में बीजेपी का मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं है.
 
हालांकि गोरखपुर और फूलपुर सीटें भी बीजेपी ने पिछली बार 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर जीती थीं और इस बार उपचुनाव में पार्टी हार गई. लेकिन यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उपचुनाव में प्रधानमंत्री मैदान में नहीं कूदते हैं, जबकि आम चुनाव में हर जगह वही वह होंगे.

15 सीटों पर बीजेपी ने पाए थे 45 फीसदी से अधिक वोट

पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में 15 सीटें ऐसी थीं जिन पर बीजेपी ने 45 से 50 फीसदी तक वोट हासिल किए थे. गठबंधन की स्थिति में भी इन सीटों पर बीजेपी की दावेदारी को कम करके नहीं आंका जा सकता. इस तरह देखा जाए तो 29 सीटें ऐसी हैं जिन पर गठबंधन की सूरत में भी बीजेपी दमदार प्रदर्शन कर सकती है.

15 सीटों पर कांग्रेस के बिना सपा-बसपा कमजोर

हालांकि इस बात की पर्याप्त संभावना है कि जब यूपी में महागठबंधन होगा तो उसमें कांग्रेस भी शामिल होगी, लेकिन अभी तक इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है. गोरखपुर और फूलपुर में कांग्रेस अलग लड़ी थी. वहीं कैराना को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है. फिर भी पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें, तो 15 लोकसभा सीटें ऐसी थीं जिन पर सपा-बसपा का वोट बीजेपी के वोट से कम था. यानी इन सीटों पर जब तक कांग्रेस या अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल का साथ नहीं मिलता, तब तक गठबंधन के लिए बीजेपी से पार पाना कठिन होगा. इन 15 सीटों में से 7 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी ने 45 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे. इस तरह देखा जाए तो कुल मिलाकर 37 सीटें ऐसी हो जाती हैं जिन पर बीजेपी की दावेदारी गठबंधन की सूरत में भारी रहेगी.

बूथ मैनेजमेंट और प्रत्याशी चयन होगा अहम

पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम देखें तों बीजेपी ने जो सीटें 50 फीसदी से अधिक वोट पाकर जीतीं. वे सभी हाइप्रोफाइल थीं. यानी प्रत्याशी दमदार होने के साथ ही बीजेपी का वोट तेजी से बढ़ा. इसी तरह पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही विपक्ष का सफाया हो गया हो, लेकिन मुलायम सिंह और सोनिया गांधी बड़े अंतर से जीते थे. अब जब एनडीए और महागठबंधन दोनों के वोटों में थोड़ा-सा ही अंतर रहेगा, तब प्रत्याशी का चयन महत्वपूर्ण हो जाएगा. जिस तरफ के प्रत्याशी के पास अपना खुद का पांच फीसदी वोट होगा, वह चुनाव अपनी तरफ मोड़ सकता है.

Bureau Report

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