‘दलित’ शब्‍द का भारतीयों से नहीं अंग्रेजों से है नाता

'दलित' शब्‍द का भारतीयों से नहीं अंग्रेजों से है नातानईदिल्‍ली: सरकार ने बांबे हाई कोर्ट के फैसले की पृष्‍ठभूमि में एडवाइजरी जारी करते हुए प्राइवेट टीवी चैनलों से ‘दलित‘ शब्‍द के इस्‍तेमाल से बचने को कहा है. हालांकि इसके खिलाफ आवाजें मुखर हो रही हैं. बीजेपी सांसद उदित राज और गुजरात के दलित नेता जिग्‍नेश मेवाणी तक इस शब्‍द को दलित अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं. इसकी तुलना में सरकार के अनुसूचित जाति शब्‍द के इस्‍तेमाल के आग्रह को ठुकरा देते हैं. इस परिप्रेक्ष्‍य के मद्देनजर आधुनिक इतिहास में ‘दलित’ शब्‍द की यात्रा पर गौर किया जाए तो इसकी बहुत रोचक दास्‍तान उभरकर आती है:

1831 की डिक्‍शनरी
आधुनिक इतिहास में तकरीबन 200 साल पहले इस शब्‍द के जिक्र का पहला प्रमाण मिलता है. ब्रिटिश राज में ईस्‍ट इंडिया कंपनी के आर्मी ऑफिसर जेजे मोल्‍सवर्थ ने एक मराठी-इंग्लिश डिक्‍शनरी का प्रकाशन 1831 में किया था. उसमें ‘दलित’ शब्‍द का जिक्र मिलता है. उसके बाद महान समाज सुधारक ज्‍योतिबा फुले (1827-1890) ने दलित शब्‍द का व्‍यापक इस्‍तेमाल कर इसको इस समाज की चेतना से जोड़ा. उससे पहले इस समाज के लिए ‘अस्‍पृश्‍य’, ‘अंतज’ जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल होता था. ज्‍योतिबा फुले ने इसकी जगह शूद्र और अति-शूद्र एवं दलित-पटदलित शब्‍द पिछड़ों और अश्‍पृश्‍यों के लिए इस्‍तेमाल किया. इस तरह 19वीं सदी के अंत तक दलित शब्‍द चलन में आया.

‘हरिजन’

बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने 1935 में ‘अश्‍पृश्‍यों’ की एक सभा के आयोजन के लिए जो पैम्‍फलेट बनाया, उसमें ‘दलित’ शब्‍द का इस्‍तेमाल किया. हालांकि वह निजी तौर पर डिप्रेश्‍ड क्‍लासेज (Depressed Classes) यानी वंचित तबके शब्‍द का इस्‍तेमाल करना पसंद करते थे. उसी साल अंग्रेजों ने इंडिया एक्‍ट (1935) में ‘अश्‍पृश्‍यों’ को एक शेड्यूल(अनुसूची) में जगह दी गई. इसी के आधार पर शेड्यूल्‍ड कास्‍ट (अनुसूचित जाति) शब्‍द अस्तित्‍व में आया.

हालांकि उसी दौर में महात्‍मा गांधी ने इस तबके के लिए ‘हरिजन’ शब्‍द गढ़ा और इस नाम से एक अखबार भी निकाला. उसके बाद कांग्रेस ने इस शब्‍द को प्रचारित किया और 1970 के दशक तक यह इस तबके के लिए सबसे प्रभावी शब्‍द रहा.

दलित पैंथर्स
1972 में महाराष्‍ट्र में दलित आंदोलन को नई दिशा देने के लिए दलित पैंथर्स का गठन किया गया. इसके साथ ही दलित शब्‍द के इस्‍तेमाल का फिर से चलन बढ़ा. उसी की अगली कड़ी में 1981 में कांशीराम ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस4) का गठन किया. उसके बाद बीएसपी का गठन करने के साथ ही कांशीराम ने महात्‍मा गांधी के ‘हरिजन’ शब्‍द की आलोचना करते हुए कहा, ”यदि हम ईश्‍वर की संतान हैं तो क्‍या अन्‍य जातियों के लोग राक्षस की संतान हैं?” उसके बाद इस समुदाय की अस्मिता और गौरव के लिए दलित शब्‍द 1990 के दशक से अब तक सबसे ज्‍यादा चलन में बढ़ा.

Bureau Report

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