मुंबई: देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी कंपनी के स्टैट्यूटरी ऑडिटर को सीधे कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के आदेश पर हटाया गया है. जिस ऑडिटर के खिलाफ एक्शन लिया गया है, उसे ये तक नहीं पता था कि कंपनी की फैक्ट्री और प्लांट कहां हैं? कंपनी की AGM कब और कहां हुई? यहां तक कि जिस ऑडिटर के हाथों में कंपनी के बही खातों की जिम्मेदारी थी, उसी का एक क्लर्क कंपनी में डायरेक्टर था. सरकार के इस आदेश के बाद एक बार फिर शेल यानी फर्जी कंपनियों के पास सख्त संदेश गया है.
क्या है मामला?
कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के वेस्टर्न रीजन के पास शिकायत आई थी कि जेन शेविंग लिमिटेड नाम की कंपनी में काफी गड़बड़ियां हैं. शिकायत के बाद इसकी जांच मुंबई रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को सौंपी गई. जांच के दौरान पाया गया कि कंपनी के स्टैट्यूरी ऑडिटर मुकेश मानेकलाल चोकसी ने कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट पर दस्तखत तो किया था. लेकिन पूछताछ में ये माना कि खातों की ऑडिटिंग की ही नहीं. चोकसी की फर्म कारोबारी साल 2014-15 और 2015-16 के लिए जेन शेविंग लिमिटेड की स्टैट्यूटरी ऑडिटर थी.
परिवार के पास थे शेयर
जांच में ये भी खुलासा हुआ कि खुद स्टैट्यूरी ऑडिटर के परिवार के सदस्य ही जेन शेविंग लिमिटेड में शेयरहोल्डर थे. जबकि कंपनी कानून के तहत ऐसा
नहीं होना चाहिए. मामले पर कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के वेस्टर्न रीजन हेड ने मुंबई NCLT में कानून प्रक्रिया के तहत ऑडिटर पर 5 साल की पाबंदी लगाने की मांग की. NCLT ने कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय की अर्जी पर गौर करते हुए मुकेश मानेकलाल चोकसी को ऑडिटर पद से हटा दिया. NCLT ने पाया कि ऑडिटर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रहा.
हुए बड़े खुलासे
दरअसल जांच में कई बातें सामने आईं. जैसे कंपनी के ऑडिटर को ये ही नहीं पता था कि कंपनी की फैक्ट्री और प्लांट कहां हैं. शिकायतें थी कि कंपनी ने प्रॉस्पेक्टस जारी कर निवेशकों से पैसे जुटा लिए हैं. लेकिन कंपनी बार बार अपना रजिस्टर्ड ऑफिस बदलती रहती है. कंपनी ने निवेशकों से ये झूठ भी
बोला था कि कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कराया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय की जांच में पाया गया कि कंपनी एक
डमी कंपनी की तरह चल रही थी.
क्या होती है डमी कंपनी?
हाल के बरसों में सरकार ने ऐसी कई डमी कंपनियों के खिलाफ सख्ती बढ़ाई है. सरकार ने करीब एक लाख ऐसी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया है. शेल या डमी कंपनियों का इस्तेमाल टैक्स चोरी, कालेधन को सफेद करने और असली मालिकाना हक छुपाने के लिए किया जाता है.
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