नईदिल्ली: कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर पर सीबीआई की दस्तक के बाद उनके साथ धरने पर बैठकर ममता बनर्जी ने इस पूरे घटनाक्रम को बड़ा सियासी कलेवर देते हुए इसे राज्य बनाम केंद्र यानी दीदी बनाम बीजेपी का रंग दे दिया है. उससे ठीक पहले शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की सीमा के निकट ठाकुरनगर में एक बड़ी रैली बंगाल में बीजेपी के लोकसभा अभियान का आगाज किया.
उससे पहले पिछले महीने ममता बनर्जी की अगुआई में कोलकाता में 23 विपक्षी दलों ने एक मंच पर साथ जुटकर बीजेपी के खिलाफ बिगुल फूंका था. इस बीच बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह लगातार यह कह रहे हैं कि इस बार बीजेपी, बंगाल में 20 से अधिक सीटें जीतेगी. इन सारे घटनाक्रम को यदि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जोड़कर देखा जाए तो समझ में आएगा कि दरअसल सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए इस बार बंगाल बेहद अहम साबित होने जा रहा है:
1. पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. इस कारण लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80), महाराष्ट्र (48) के बाद तीसरा नंबर बंगाल का है. पिछली बार ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने बंगाल में इनमें से 34 सीटें जीती थीं. इसी कारण टीएमसी लोकसभा में चौथा सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी. 2019 में यदि तृणमूल उससे भी बेहतर प्रदर्शन करती है तो सत्ता में आने की स्थिति में विपक्षी महागठबंधन की तरफ से ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी मजबूत हो सकती है.
2. बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में केवल दो सीटें दार्जिलिंग और आसनसोल की मिली थीं. लेकिन पहली बार पार्टी को राज्य में 17 प्रतिशत वोट मिले. उससे पहले 2009 के चुनाव में बीजेपी को महज छह प्रतिशत वोट मिले थे. उसके बाद से ही बीजेपी लगातार बंगाल में अपने पांव जमाने की कोशिशों में लगी है. पार्टी की पूरी कोशिश वामदल और कांग्रेस को पछाड़कर तृणमूल के सामने मुख्य विपक्षी दल बनने की है. 2014 के चुनाव में लेफ्ट को 30 प्रतिशत और कांग्रेस को 10 प्रतिशत वोट मिले थे.
3. यूपी में सपा-बसपा गठबंधन होने और तीन हिंदी भाषी राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों में हैं. इसलिए लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र के बाद उसकी नजर बंगाल पर है. यूपी में पिछली बार बीजेपी को अपना दल के साथ मिलाकर 73 सीटें मिली थीं और इसी तरह महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को सबसे ज्यादा कामयाबी मिली थी. अब बीजेपी को लग रहा है कि यदि उत्तर भारत में उसको महागठबंधन के कारण नुकसान होता है तो बंगाल जैसे राज्यों से उसकी कसर को पूरा किया जा सकता है. इसलिए बीजेपी, बंगाल पर फोकस कर रही है.
4. पिछले साल उलूबेरिया उपचुनाव में बीजेपी, माकपा (सीपीएम) को पछाड़कर दूसरे स्थान पर थी. उसके बाद मई, 2018 के पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने 34 प्रतिशत सीटें निर्विरोध जीती थीं. आलोचकों का कहना है कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने विरोधियों को खड़ा नहीं होने दिया या वोट नहीं डालने दिया. इस कारण तृणमूल की छवि को धक्का लगा है और बीजेपी ऐसे वोटरों को अपनी तरफ रिझाने का प्रयास कर रही है.
5. नागरिकता (संशोधन) बिल इन सबके बीच लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में बड़ा मुद्दा बनने वाला है. इसमें बांग्लादेश से आने वाले हिंदू प्रवासियों समेत कई समुदायों को नागरिकता के मुद्दे पर राहत देने का प्रावधान किया गया है. बीजेपी इन तबकों को साधकर बंगाल में अपनी जड़ें मजबूत करना चाहती है. संभवतया इसी के मद्देनजर बीजेपी के बढ़ते कद को देखते हुए ममता बनर्जी ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
Bureau Report
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