नईदिल्ली: अयोध्या मामले की सुनवाई को रद्द करने और पक्षकारों पर जुर्माना लगाए जाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस याचिका में ये भी मांग की गई कि अपीलकर्ताओं पर FIR दर्ज हो. चीफ जस्टिस (CJI) ने हैरानी जताते हुए कहा- ये कैसी याचिका है, आपको पता भी है कि आप क्या मांग कर रहे हैं? वकील देबाशीष ने ये याचिका दायर की थी.
लाइव स्ट्रीमिंग की मांग वाली याचिका
इसी तरह अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान लाइव स्ट्रीमिंग की मांग वाली एक अन्य याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये केस गंभीर मसला है इसलिए हम निर्णय नहीं ले सकते. हमें ये भी पता नहीं है कि लाइव स्ट्रीमिंग कितना कारगर काम कर रहा है. जस्टिस नारीमन की कोर्ट ने मामले को चीफ जस्टिस की बेंच की तरफ सुनवाई के लिए भेजा. BJP विचारक के एन गोविन्दाचार्य ने यह याचिका दाखिल की है. 11 सितंबर को अगली सुनवाई होगी.
जस्टिस रोहिंग्टन- अयोध्या मामले की सुनवाई संवेदनशील है, इसे कैसे लाइव स्ट्रीमिंग किया जा सकता है. बेहतर है कि आप अपनी इस मांग को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही बेंच के सामने रखें.
के एन गोविंदाचार्य की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह- माय लॉर्ड, उन्हीं के आदेश से तो यह याचिका आपके पास सुनवाई के लिए लिस्टेड हुई है.
जस्टिस रोहिंग्टन- हम आपकी याचिका को CJI को प्रेषित कर रहे हैं. 11 को आपका मामला CJI देखेंगे.
ज्ञात हो कि गोविंदाचार्य ने अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग को लेकर याचिका दायर की है. उनका कहना है कि अगर ये संभव न हो तो 2 अधिकारी ऐसे नियुक्त किये जायें जो रोजाना होने वाली कार्रवाई को लिखे ओर उसे कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए.
20वें दिन की सुनवाई
इससे पहले गुरुवार को अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहे हैं. मैं कह सकता हूं कि निर्मोही अखाड़ा 1855 में बाहरी आंगन थे और वह वहां रहे हैं. धवन ने कहा कि राम चबुतरा बाहरी आंगन में है जिसे राम जन्म स्थल के रूप में जाना जाता है और मस्जिद को विवादित स्थल माना जाता है.
धवन ने निर्मोही अखाड़ के गवाहों के दर्ज बयानों पर जिरह करते हुए महंत भास्कर दास के बयान का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने माना कि मूर्तियों को विवादग्रस्त ढांचे में रखा गया था.राजीव धवन ने श्री के. के. नायर और गुरु दत्त सिंह,डीएम और सिटी मैजिस्ट्रेट की 1949 की तस्वीरों को कोर्ट को दिखाया.
राजीव धवन ने राजा राम पांडे और सत्य नारायण त्रिपाठी के बयान में विरोधभास के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया. धवन ने कहा कि ऐसा लगता है कि कई गवाहों के बयान को प्रभावित किया गया. एक गवाह के बारे के बताते हुए धवन ने कहा कि उसने 14 साल की उम्र में RSS जॉइन किया था, बाद में RSS और VHP ने उसको सम्मानित भी किया.
धवन ने एक गवाह के बारे में बताते हुए कहा कि गवाह ने 200 से अधिक मामलों में गवाही दी है और विश्वास करता है कि एक झूठ बोले में कोई नुकसान नही है, जब मंदिर की ज़मीन ज़बरदस्ती छीनी गई है. जस्टिस DY चंद्रचूर्ण ने कहा कि इन विरोधाभासों के बावजूद आप यह मान रहे है कि उन्होंने अपनी शेबाइटी के अधिकार स्थापित कर लिए हैं
राजीव धवन ने कहा कि मैं उनको झूठा नही कह रहा हूं लेकिन में यह समझना चाह रहा हूं कि वह खुद को शेबेट तो बता रहे हैं लेकिन उनको नहीं मालूम कि कब से शेबेट हैं. जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर आप निर्मोही अखाड़ा के अस्तित्व को मान रहे है तो उनके संपूर्ण साक्ष्य को स्वीकार किया जाएगा
राजीव धवन ने कहा कि कुछ कहते हैं कि 700 साल पहले कुछ उससे भी पहले का मानते हैं. मैं निर्मोही अखाड़ा की उपस्थिति 1855 से मानता हूं, 1885 में महंत रघुबर दास ने मुकदमा दायर किया, हम 22 – 23 दिसंबर, 1949 के बयान पर बात कर रहे हैं.
धवन ने कहा कि Possesion शब्द art की एक टर्म है,जबकि belonging आर्ट का शब्द नहीं है. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि possesion आर्ट की टर्म क्यों हैं? जस्टिस नज़ीर ने कहा कि belonging शब्द उनकी याचिका में है और किसी भी क़ानून में नहीं है, आप इसपर क्यों बहस कर रहे है?
धवन ने कहा कि क्योंकि उन्होंने कहा है कि belonging का मतलब ‘कुछ और है’ ( something else). जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने कहा कि वह शेबेट है और यह उनका अधिकार है. धवन ने कहा कि हमको देखना होगा शेबेट के क्या अधिकार है, शेबेट के अधिकार सीमित हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मूर्ति कहाँ है मूर्ति जहां जाती है शेबेट वही रहता है. उनका कहना है कि उनका अधिकार छीना रहा है
जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने कहा कि शेबेट के प्रबंधन और प्रभार को मांग रहे है. प्रबंधन और प्रभार देवता के लिए है उनके सभी अधिकार देवता के लिए हैं. धवन ने कहा कि ट्रस्टी और शेबेटशिप में फ़र्क़ होता है. वह एक ट्रस्ट की अवधारणा है, लेकिन वह मालिक नहीं है. उन्होंने कहा कि मूर्ति को दूर नहीं ले जाया गया. जगह स्थानांतरित कर दी गई. इसलिए वह कहते हैं कि पूजा करना चाहते है. मेरा अनुरोध है कि यह याचिका के संदर्भ में देखा जाए.
राजीव धवन ने कहा कि राम चबूतरे पर पूजा और पूजा का अधिकार कभी मना नहीं किया गया, विवाद पूरे जमीन के स्वामित्व को लेकर है. उनकी दलील पर जस्टिस नज़ीर ने पूछा कि आप तो यह मान रहे हैं कि आप और निर्मोही अखाड़ा उस जगह पर साथ साथ थे ?
राजीव धवन ने कहा कि हमने कभी नहीं कहा कि निर्मोही अखाड़े का मालिकाना हक़ था. मालिकाना हक़ हमेशा से सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के पास था और है. राम चबूतरा पर निर्मोही अखाड़ा पूजा करता रहा है और हम इसे मानते हैं कि उनका उस जगह पर पूजा का अधिकार है.
Bureau Report
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