नईदिल्लीः अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में मध्यस्थता पैनल के प्रमुख जस्टिस कलीफुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मध्यस्थता के लिए सुन्नी वक्फ़ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने उन्हें चिट्ठी लिखी है.उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष मध्यस्थता को दोबारा शुरू करना चाहते है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसपर निर्णय लें. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही मध्यस्थता पैनल का गठन और बाद में मध्यस्थता बंद हुआ था.
उधर मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन ने आज सुनवाई को दौरान कहा कि जब देवता अपने-आपको प्रकट करते है तो किसी विशिष्ट रूप में प्रकट होते है और उसकी पवित्रता होती है. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि एक देवता का एक रूप होना चाहिए?
राजीव धवन ने कहा कि हां, देवता का एक रूप होना चाहिए जिसको भी देवत माना जाए, भगवान का कोई रूप नहीं है, लेकिन एक देवता का एक रूप होना चाहिए. धवन ने कहा कि पहचान के उद्देश्य से एक सकारात्मक कार्य होना चाहिए, वह सकारात्मक अभिव्यक्ति के लिए दावा नहीं कर रहे हैं वह विश्वास के आधार पर दावा कर रहे हैं. राजीव धवन ने कहा मूर्ति की पूजा हमेशा बाहर के चबूतरे पर होती थी. 1949 में मंदिर के अंदर शिफ्ट किया जिसके बाद यह पूरी ज़मीन पर कब्ज़े की बात करने लगे.
पिछले शुक्रवार को 23वें दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि जब आस्था या विश्वास है कि वहां राम जन्मस्थान (Ram Janmsthan) है, तो उसे स्वीकार करना होगा. हम इस पर सवाल नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम (Muslim) पक्षकार के वकील राजीव धवन (Rajiv Dhawan) से कहा था कि आखिर देवता या जन्मस्थान को क्यों नहीं ‘न्यायिक व्यक्ति’ माना जाना चाहिए? धवन ने कहा था कि इसका क्या प्रमाण है कि हिंदू (Hindu) अनंत काल से उस जगह को भगवान राम (Lord Ram) का जन्म स्थल मान रहे हैं. स्कंद पुराण (Skand Puran) और कुछ विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांत के आधार पर उसे जन्मस्थान नहीं ठहराया जा सकता. इस पर पीठ के सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा था कि आखिर ऐसी क्या चीजें हैं, जिनके आधार पर देवता या जन्मस्थान (Janmsthan) को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जाना चाहिए. हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) के वकील बरुण सिन्हा का यह मानना है कि कोर्ट की यह टिप्पणी बहुत अहम है.
मुस्लिम (Muslim) पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने पीडब्ल्यूडी (PWD) की उस रिपोर्ट का हवाला दिया था जिसमें कहा गया था कि 1934 के सांप्रदायिक दंगों (communal riots) में मस्जिद (Masjid) के एक हिस्से को कथित रूप से क्षतिग्रस्त किया गया था और पीडब्ल्यूडी ने उसकी मरम्मत कराई थी. जिलानी ने कहा था कि 1885 में निर्मोही अखाड़ा (Nirmohi Akhara) की दायर याचिका में विवादित जमीन के पश्चिमी सीमा पर मस्जिद होने की बात कही थी यह हिस्सा विवादित जमीन (disputed land) का भीतरी आंगन है.
निर्मोही अखाड़ा ने 1942 के अपने मुकदमे में भी मस्जिद का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने तीन गुम्बद वाले ढांचे को मस्जिद स्वीकार किया था. जिलानी ने मोहम्मद हाशिम के बयान का हवाला देते हुए कहा था कि हाशिम ने अपने बयान में कहा था कि उन्होंने 22 दिसबंर 1949 को बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी. ज़फरयाब जिलानी ने हाजी महबूब के बयान का हवाला देते हुए कहा कि 22 नवंबर 1949 को हाजी ने बाबरी मस्जिद में नमाज (Namaj) अदा की थी. उन्होंने एक गवाह के बारे में बताते हुए कहा था कि 1954 में बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने की कोशिश करने पर उस व्यक्ति को जेल हो गई थी.
Bureau Report
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