नईदिल्ली: कोरोना वायरस और इसके प्रभाव को लेकर कई अध्ययन किए जा रहे हैं और रोज कुछ न कुछ नया जानने को मिलता है. लेकिन बच्चों पर कोविड-19 के प्रभावों से जुड़ी एक रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है.
एक अधिकार समूह का कहना है कि इस आपदा के कारण लाखों बच्चों के भविष्य पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. क्योंकि कोरोना वायरस महामारी उन्हें जबरन श्रम और कम उम्र की शादी के लिए मजबूर कर देगी. क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) का कहना है कि जल्दी प्रतिबंध हटा देने की वजह से मामले एक बार फिर अपने चरम पर होंगे.
डच एनजीओ किड्स राइट्स के अनुसार- ‘बच्चों की हित में किए गए सालों के प्रयासों और प्रगति को ये संकट कई साल पीछे ले जाएगा. इसलिए, बच्चों के अधिकारों पर पहले से कहीं ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.’
एनजीओं के संस्थापक मार्क डुलार्ट ने अपना सालाना सर्वे पेश करते हुए कहा कि- ‘ये महामारी जिसकी वजह से आज सरकारों के पास स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए पैसे नहीं हैं, कल लाखों बच्चे गरीबी की दलदल में ढकेल देगी.’
किड्स राइट्स की सालाना रैंकिंग ने संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का उपयोग यह मापने के लिए किया कि बाल अधिकारों पर देश किस तरह संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के स्तर को मापते हैं.
बच्चों के टीकाकरण अभियान रद्द होने की वजह से शिशु मृत्यु दर में वृद्धि का खतरा बढ़ा गया है, जबकि आमतौर पर स्कूली भोजन पर ही निर्भर रहने वाले लाखों बच्चों के पास दैनिक पोषण मिलने का कोई स्रोत नहीं है.
महामारी से इतर, इस साल के सर्वेक्षण ने आइसलैंड, स्विट्जरलैंड और फिनलैंड को शीर्ष पर रखा है, जबकि चड, अफगानिस्तान और सिएरा लियोन को सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में जगह दी गई है.
एनजीओ की चेतावनी तब आई जब WHO के आपातकाल प्रमुख माइक रयान ने किसी भी समय संक्रमण के दूसरी लहर के होने की बात की, खासकर अगर पहली लहर को रोकने के उपायों या प्रतिबंधों को जल्द हटा लिया गया तो.
Bureau Report
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