ओडिशा: ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले में बीते दो महीने में जापानी इन्सेफ्लाइटिस से 300 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है।
केन्द्र सरकार की नींद अब टूटी है और उसने राज्य सरकार से इससे निपटने के लिए ठोस योजना बनाने को कहा है।
जापानी इन्सेफ्लाइटिस मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारी है। इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है।
दिल्ली में रहने वाले मलकानगिरी के लोग चिकित्सकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के साथ मिलकर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय पर दबाव बना रहे हैं कि इस बीमारी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा घोषित किया जाए।
इस समूह में ज्यादातर अलग-अलग विश्वविद्यालयों के छात्र हैं, जो यह मांग कर रहे थे कि अब और मौतें न हों, इसके लिए एक्शन प्लान बनाया जाए।
5 दिसम्बर को छात्रों ने जंतर-मंतर से केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्य़ाण मंत्रालय तक मार्च निकाला और मांग की कि इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए जाएं और मलकानगिरी के पीड़ित लोगों की मदद की जाए।
यह समूह मलकानगिरी के लोगों के नेटवर्क का एक हिस्सा है जिसमें छात्रों के आंदोलनकारी संगठन, कल्याणकारी संगठन और पूरे देश से आए सामाजिक कार्यकर्ता थे।
इस नेटवर्क से जुड़े लोगों ने देश के विभिन्न शहरों- दिल्ली, गुवाहाटी, नांदेड, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरू, चेन्नई, मुम्बई और तिरुवनन्तपुरम में 30 नवम्बर से 5 दिसम्बर के बीच प्रदर्शन किए हैं और आदिवासी जिले में तुरन्त दख़ल के लिए सरकार पर दबाव बनाया है।
मार्च के बाद इस समूह के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों समेत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से जुड़े कुछ अधिकारियों से मुलाकात की। पहले तो इन अधिकारियों ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है।लेकिन बाद में राज्य के स्वास्थ्य विभाग को ‘मामले पर तुरन्त ध्यान देने’ का निर्देश देने पर सहमत हो गए।
मलकानगिरी एकता समूह के देवांगना का कहना है कि शुरुआत में तो अधिकारियों ने अपने दायित्व से पल्ला झाड़ा और कहा कि इससे निपटने के लिए हमारे पास कोई जादुई छड़ी नहीं है कि जिले में तुरन्त ही टीकाकरण कार्यक्रम शुरू कर दिया जाए। वह आगे कहते हैं कि उन्होंने यह दलील देने की भी कोशिश की कि उनके पास विशेषज्ञ नहीं हैं जो इस दिमागी बुखार की पहचान कर सकें या समस्या का तुरन्त हल निकाल सकें।
बाद में, अधिकारियों ने ओडिशा के अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव प्रमोद मेहता को बुलाया और उनसे महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रतिनिधियों समेत एक ‘मोबाइल टीम’ को मलकानगिरी में भेजने को कहा जो वहां की स्वास्थ्य सुविधाओं की असुलभता के बारे में देख-समझ सके।
वहीं यह समूह मौतों पर ओडिशा सरकार के रवैये से नाखुश और निराश हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अपना गुस्सा जताते हुए यह भी कहते हैं कि पिछले माह इन मौतों पर ध्यान देने के लिए राज्य सरकार ने एक ‘उच्च स्तरीय विशेषज्ञ कमेटी’ गठित की थी। कमेटी ने इन मौतों को ‘जहरीले बीज’ खाने से हुई मौत बता दिया। सच यह है कि प्रभावित ग्रामीणों ने कमेटी की रिपोर्ट को ‘हास्यास्पद’ बताया है। ग्रामीणों ने यह भी कहा है कि छह माह के बच्चे जंगलों में कैसे जा सकते हैं और जहरीले बीज कैसे खा सकते हैं।
मलकानगिरी ज़िला काफी पहले से ही जापानी इन्सेफ्लाइटिस की चपेट में है। 2011 और 2012 में इस बीमारी से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि इतनी भयानक आपदा के बाद यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं बमुश्किल ही सुधरी हैं।हालात बदतर हैं और राज्य सरकार यह आरोप लगाने की कोशिश कर रही है कि मौतें ‘आदिवासियों की नासमझी’ के कारण हो रही हैं।
हालत यह है कि बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को कई बार लिखने के बावजूद इस दिशा में कोई सार्थक कार्रवाई नहीं हुई।बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग ने इन मौतों पर स्वतः संज्ञान लिया था और उसके सदस्यों ने राज्य का दौरा करने का भी भरोसा दिया था, पर वह भी नहीं हुआ।
इस बीच मलकानगिरी के गरीब आदिवसियों का तड़पना लगातार जारी है। पिछले महीने जिलाधिकारी के सुदर्शन चक्रवर्ती ने कहा कि जापानी इन्सेफ्लाइटिस से 33 गांव प्रभावित हैं और मलकानगिरी के जिला अस्पताल में कम से कम 46 बच्चे हैं जो इस बीमारी की चपेट में हो सकते हैं। चक्रवर्ती ने यह भी बताया कि 114 मरीज़ों के खून के नमूनों की जांच की गई है जिसमें 51 के नमूने पॉजीटिव आए हैं। कार्यकर्ताओं को इस बात का डर है कि अगर पीड़ित लोगों को तुरन्त ही मेडिकल सुविधा नहीं मिली तो मरने वालों की संख्या में इज़ाफा हो सकता है।
Leave a Reply