नकदी की कमी से निपटने के लिए विदेश में नोट छपवा सकती है सरकार, लेकिन ‘मेक इन इंडिया’ अभियान बन रहा है ‘रोड़ा’

नकदी की कमी से निपटने के लिए विदेश में नोट छपवा सकती है सरकार, लेकिन 'मेक इन इंडिया' अभियान बन रहा है 'रोड़ा'नईदिल्ली: नकदी की कमी को देखते हुए आरबीआई की सभी प्रिंटिंग प्रेस में बड़ी संख्या में नोटों की छपाई चल रही है। सरकार विदेश में भी नोट छपवाने पर विचार कर रही है। 

सरकार को लगता है कि अगर बाहर से नोट छपवाए तो इससे मेक इन इंडिया अभियान को बड़ा झटका लग सकता है। बीते हफ्ते सचिव स्तर की बैठक हुई थी,  जिसमें इसे लेकर बात हुई है।

एक सरकारी सूत्र के अनुसार बैठक में विदेशों में नोट छपवाने को लेकर विचार किया गया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस पर सरकार कई दिनों से उलझन में है। बैठक में कुछ अधिकारियों ने सलाह दी कि यदि सरकार बाहर करेंसी छपवाती है तो विपक्ष समेत आलोचक मेक इन इंडिया का हवाला देकर सरकार को घेरेंगे। विदेश में निजी एजेंसियों से नोट छपवाने का निर्णय टाल दिया गया है, लेकिन कैश को लेकर हालात नहीं सुधरे तो नोट बाहर छपेंगे।

नोटबंदी के बाद यूरोप के विभिन्न मुल्कों में स्थित भारतीय दूतावासों ने नोट छपाई का काम करने वाली कंपनियों से प्रस्ताव मांगे थे। कई कंपनियों ने छपाई की इच्छा जाहिर की। इनमें जर्मनी की जीसीकेव एंड डेवरिएंट और फ्रांस की फ्रांकोस चाल्र्स कंपनियां शामिल हैं। कुछ कंपनियां ने इसलिए मना कर दिया क्योंकि वो अमरीका से लेकर ब्रिटेन तक के कई देशों के नोट छापने में व्यस्त हैं। 

भारत पहले भी विदेश में इन कंपनियों से नोट छपवाता रहा है। साल 1997-98 में आरबीआई ने 3.6 अरब नोट जर्मनी, कनाडा, अमरीका, फ्रांस और ब्रिटेन में वहां की कंपनियों से छपवाए थे। 100 के नोट के रूप में दो अरब नोट और 500 के नोट के रूप में 1.6 अरब नोट भी विदेश में छपवाए जा चुके हैं।

Bureau Report

 

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