नईदिल्ली: शताब्दी, राजधानी और दुरंतों एक्सप्रेस गाडिय़ों में फ्लैक्सी किराया प्रणाली के लागू होने के बाद यात्रियों की संख्या में आई कमी से रेलवे के माथे पर बल पड़ गए हैं और अब वह इन गाडिय़ों में छोटी दूरी के यात्रियों को आकर्षित करने के लिए किरायों को कम करने और तत्काल कोटा घटाने का विचार कर रही है।
नौ सितंबर को लागू हुई फ्लैक्सी किराया प्रणाली के आरंभिक 50-51 दिनों में तकरीबन छह हजार सीटों की बुकिंग कम होने से रेलवे अधिकारी चिंतित हैं। रेल अधिकारियों को कहना है कि निर्माण एवं अचल संपत्ति व्यवसाय में मंदी के कारण सीमेंट, लोहा आदि की ढुलाई में कमी आने तथा सरकार की सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और कोयला खदानों के पास ही ताप विद्युत गृह बनाने की नीति से रेलवे के मालवहन राजस्व में बहुत कमी आने का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि अब इन गाडिय़ों में अधिकतम 1.5 गुना की बजाय 1.4 गुना ही किराया लिया जाएगा। साथ ही इन गाडिय़ों में तत्काल कोटा की सीटों को 30 प्रतिशत से घटाकर 10 फीसदी करने का प्रस्ताव किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस समय सबसे बड़ी चुनौती यात्री परिवहन का राजस्व और यात्रियों की संख्या को बढ़ाना है। शताब्दी, राजधानी और दुरंतों एक्सप्रेस गाड़यिों में फ्लैक्सी किराया प्रणाली के सफल नहीं हो पाने से विचित्र स्थिति बन रही है और इस प्रणाली में अधिकतम किराये में कमी करने का फैसला किया गया है।
अधिकारियों के अनुसार राजधानी एवं दुरंतो एक्सप्रेस के किनारे वाली निचली (साइड लोअर) सीटें आरएसी टिकटों को आवंटित की जाएंगी, ताकि अधिक से अधिक यात्रियों को अपने गंतव्य पहुंचने का अवसर मिल सके। अधिकारियों का कहना है कि कुछ मार्गाें पर तो रेलवे को सड़क परिवहन के माध्यमों से कड़ी प्रतिस्पद्र्धा का सामना करना पड़ रहा है।
रेलवे के ऊर्जा बिल में भी कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन उससे करीब साढ़े तीन से चार हजार करोड़ रुपए का ही फर्क पड़ेगा। हालांकि रेल बजट के आम बजट में विलय होने के बाद रेलवे को सरकार को करीब साढ़े 10 हजार करोड़ का लाभांश नहीं देना पड़ेगा, पर इससे काम नहीं चलेगा। अधिकारियों के अनुसार इन्हीं कारणों से यात्री परिवहन से राजस्व बढ़ाना अपरिहार्य हो गया है।
Bureau Report
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