लखनऊ: मुलायम सिंह यादव ने 5 जनवरी को बुलाए गए समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अधिवेशन को स्थगित कर दिया है। यह जानकारी शिवपाल सिंह यादव ने ट्वीट कर दी है।
शिवपाल ने ट्वीट कर बताया, ‘नेताजी के आदेशानुसार समाजवादी पार्टी का 5 जनवरी का अधिवेशन फिलहाल स्थगित किया जाता है। सभी नेता और कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव की तैयारियों में जुटें और जीत हासिल करने के लिए जी-जान से मेहनत करें।
यह अधिवेशन मुलायम सिंह यादव ने रामगोपाल यादव द्वारा बुलाए गए अधिवेशन में अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के बाद बुलाया था। माना जा रहा था कि इस अधिवेशन में मुलायम कुछ बड़े फैसले ले सकते थे।
दूसरी ओर अखिलेश ने कहा कि समाजवादी पार्टी में चल रहे विवाद पर उन्होंने कड़ा मगर जरूरी फैसला लिया है। समाजवादी पार्टी में मचे घमासान पर सीएम अखिलेश यादव ने ट्वीट किया कि जिसको आप चाहते हो, कभी-कभी उसे बचाने के लिए आपको सही फैसले लेने पड़ते हैं। मैंने जो किया वो कड़ा फैसला जरूर था, लेकिन ये फैसला लेना जरूरी था।
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को नरेश उत्तम पटेल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया। फतेहपुर जनपद के रहने वाले नरेश उत्तम पार्टी के विधान परिषद सदस्य हैं। उत्तम की छवि बिल्कुल साफ.-सुथरी है। 30 साल के राजनीतिक करियर में उन पर एक भी मामला दर्ज नहीं है।
रविवार को प्रोफेसर रामगोपाल यादव द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन की किरणमय नंदा ने अध्यक्षता की थी। वहीं नरेश अग्रवाल भी वहां जाकर अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के प्रस्ताव पर सहमति दी थी। उधर शिवपाल यादव ने रविवार को पार्टी प्रमुख मुलायम से लखनऊ में उनके आवास पर मुलाकात की और मिर्जापुर, आजमगढ़, देवरिया और कुशीनगर की सपा जिला यूनिट को भंग कर दिया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति खासकर समाजवादी पार्टी के अंदर जो उठापठक चल रही है, भले ही उसका प्रभाव बिहार की राजनीति पर तत्काल कुछ न पड़े, लेकिन इसे लेकर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव तनाव में हैं। दरअसल लालू यादव की चिंता इस बात को लेकर नहीं है कि उनके बीच-बचाव के प्रयास और दावे धरे के धरे रह गए, लेकिन अखिलेश ने जिस तरह सत्ता और पार्टी पर कब्जा जमाया हैं और राजनीति में लंबी रेखा खींचते जा रहे हैं। यह लालू के लिए चिंता की वजह है। ये बात किसी से छिपी नहीं कि लालू और मुलायम सिंह यादव राजनीति में एक ही जाति के होने के बावजूद अपने राजनीतिक शिखर पर एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे।
लालू की परेशानी है कि फिलहाल उन्हें अगले कुछ दिनों में ये निर्णय लेना होगा की दो धड़ों में बंटी समाजवादी पार्टी के किस धड़े के साथ वो रहते हैं। चाहे वो अखिलेश की समाजवादी पार्टी हो या शिवपाल की। लालू के लिए किसी के समर्थन में खड़े होना उतना आसान नहीं होगा। हालांकि उनकी कोशिश होगी, जहां उनके दामाद के कदम हों, उसके साथ रहना ही उनके लिए बेहतर होगा। फिलहाल लखनऊ से खबरों के अनुसार तेज प्रताप अखिलेश यादव के साथ हैं, इसलिए मुलायम सिंह के पीछे खड़ा रहना मजबूरी है और यहीं से लालू यादव की असल मुश्किल शुरू होती है।
आने वाले दिनों में यदि प्रतिद्वंद्वी खेमों ने समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल पर अपना-अपना दावा किया तो विधानसभा चुनाव से पहले उस पर रोक लगने की पूरी संभावना है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले एक समूह ने जरूरत के मुताबिक उन्हें पहले ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और विभिन्न प्रादेशिक इकाइयों के गठन का अधिकार दे दिया है और इनकी सूचना जल्द से जल्द चुनाव आयोग को भी दी जानी है। अखिलेश खेमे के सूत्रों का कहना है कि यदि मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाला समूह चुनाव आयोग के पास जाता है तो वे भी जाएंगे। हालांकि पर्यवेक्षकों का मानना है कि अखिलेश वाले धड़े को चुनाव चिह्न पर दावा करने के लिए चुनाव आयोग के पास जाना होगा क्योंकि आयोग के रिकॉर्ड में मुलायम सिंह यादव और अन्य पदाधिकारियों का नाम होगा। यदि चिह्न पर अखिलेश दावा करते हैं तो ऐसी स्थिति में आयोग को दूसरे पक्ष को नोटिस देना होगा और इस पर फैसला करने से पहले दोनों पक्षों को सुनना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में यदि चुनाव आयोग किसी एक पक्ष को चिह्न देने के फैसले पर नहीं पहुंच पाता है तो वह इस पर रोक लगा सकता है ताकि चुनाव के दौरान किसी पक्ष को अतिरिक्त लाभ न हो।
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