वाराणसी: देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शहनाई को लोकप्रिय बनाने वाले भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. शहनाई वादन में उन्होंने देश को दुनिया में एक अलग मुकाम दिलाया. लेकिन आज उनका परिवार बेहद तंगी के दौर से गुजर रहा है. हालात इस कदर खराब हैं कि उनके पुरस्कारों की कोई देखभाल करने वाला भी नहीं है. उनके पद्म विभूषण अवॉर्ड में दीमक लग गई है. 21 अगस्त को बिस्मिल्लाह खां की 11वीं पुण्यतिथि है. लेकिन ऐसा लगता है कि इतने कम वक्त में ही लोगों ने उन्हें भुला दिया है. खुद उनके बेटे नाजिम कहते हैं कि अब्बा के जाने के बाद सब कुछ बदल गया है. परिवार के आर्थिक हालात बेहद खराब हैं. घर का खर्च जैसे तैसे चल रहा है.
वाराणसी के दालमंडी में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का पैतृक घर है. जहां उनकी फैमिली रहती है। यही पर उनको मिला पद्म विभूषण अवॉर्ड भी रखा है. लेकिन उसे दीमक खा गया है.
नाजिम कहते हैं, अब्बा के जाने के बाद सबकुछ बदल गया. अब हमे कोई नहीं पूछता. दादा को पद्म विभूषण अवॉर्ड मिला था, लेकिन आज उसकी कोई कीमत नहीं है. उसको दीमक खा चुका है. उनके कमरे में आज भी उनका जूता, छाता, टेलीफोन, कुर्सी, लैम्प, चम्मच-बर्तन रखा है. नाजिम ने कहा कि रेडियो में मान्यता प्राप्त होने के बावजूद 5 साल तक रेडियो में एक प्रोग्राम तक नहीं मिला. पोते नासिर का कहना है, घर की स्थिति ऐसी है कि हम सोच नहीं पा रहे कि कैसे परिवार का पेट पालें. आमदनी का जरिया नहीं है. साल में एक या दो प्रोग्राम होता है. वो पैसा एक महीने में ही खत्म हो जाता है. बकौल नाजिम, बचपन के दिनों में अब्बा से मिलने एक अमेरिकी व्यापारी काशी आया था. उसने अब्बा से कहा था कि जितना भी पैसा चाहिए ले लीजिए, लेकिन साथ में अमेरिका चलिए. अब्बा का जबाब था कि क्या वहां मां गंगा मिलेंगी, गंगा को भी ले चलो, तभी चलूंगा.
Bureau Report
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