नईदिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा अर्थशास्त्री और नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविंद पानगढिय़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनका कहना है कि वे दोबारा अकादमिक जगत में लौटना चाहते हैं।
मगर उनके अचानक आए इस्तीफे से साफ है कि सरकार से उनके कुछ अहम मामलों पर मतभेद थे। इससे पहले प्रधानमंत्री की पसंद के एक और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी कह दिया था कि वे रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार नहीं हैं और दोबारा अकादमिक जगत में जाना चाहते हैं।
इस राय पर विवाद
नीति आयोग ने सुझाव दिया था कि किसानों पर भी आयकर लगना चाहिए। विवाद हुआ तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कृषि पर कर लगाने की स्थिति नहीं है।
तब जिक्र नहीं
पिछले दिनों बातचीत में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के काम की तारीफ की थी। तब उन्होंने कार्यकाल बीच में ही छोडऩे की इच्छा नहीं जताई थी।
इसे मेरा इस्तीफा नहीं माना जाए: पानगढिय़ा
राजस्थान निवासी पानगढिय़ा ने कहा कि इसे मेरा इस्तीफा नहीं माना जाए। कोलंंबिया यूनिवर्सिटी ने मेरी छुट्टी बढ़ाने से मना कर दिया था। इस संबंध में दो महीने से प्रधानमंत्री से संपर्क में था। उनकी सलाह पर यूनिवर्सिटी को यह अनुरोध किया था कि वह मेरी छुट्टी बढ़ा दें। मगर वे तैयार नहीं हुए। इसके बाद मेरे सामने दो ही विकल्प थे या तो मैं वहां से इस्तीफा दूं या फिर अपनी मौजूदा जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं। चूंकि यूनिवर्सिटी में मेरा कार्यकाल जीववपर्यंत है।
जानिए कौन है अरविंद पानगढिय़ा
अरविंद पानगढिय़ा का जन्म 30 सितंबर 1952 काे हुआ।
अरविंद पानगढिय़ा प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से पढ़े।
नीति आयोग में आने से पहले कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे, वापस वहीं जा रहे हैं।
एशियन डेवलपमेंट बैंक के चीफ अर्थशास्त्री भी रहे।
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में सेंट्रल फॉर इंटरनेश्नल इकॉनोमिक्स में भी प्रोफेसर रहे।
आईएमएफ, विश्व व्यापार संगठन के साथ काम किया है।
महत्वपूर्ण सुझाव और फैसले…
आयोग ने दिल्ली-मुम्बई और दिल्ली-कोलकाता रूट पर हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट के लिए 18,000 करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी दी।
पेट्रोल-डीजल कारों का रजिस्ट्रेशन लॉटरी सिस्टम से।
ज्यूडिशियल परफॉर्मेंस इंडेक्स बने।
2024 से एक साथ और 2 चरण में हो लोकसभा-विधानसभा चुनाव।
संघ था नाराज!
संघ परिवार के संगठन उनके काम-काज और नीतियों की आलोचना करते रहे। भारतीय मजदूर संंघ और स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों ने खुल कर उनकी नीतियों को भारत के प्रतिकूल बताया है। हालांकि पनगढ़िया के इस्तीफे पर संघ के संगठनों ने कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है।
Bureau Report
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