नईदिल्लीः भारत में आज भी ऐसी जगह है जहां लोग इंसानी जान से ज्यादा अपने रसूख, जाति और पंच फैसले को महत्व देते हैं. लेकिन कहते हैं ना इंसान चाहे अपने सामाजिक दायरों को कितना भी घटा-बढ़ा ले, लेकिन वो कुदरत के किसी भी नियम से बढ़कर नहीं हो पाया है. जिसे इस धरती पर आना है उसे लाख सुविधाओं के आभाव में भी आना है और जिसे जाना है उसे लाख सुविधाएं होने पर भी बचाया नहीं जा सकता है. ओडिशा के मल्कानगिरी में सामाजिक बहिष्कार के चलते जंगल में एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा (Labour pain) के दौरान किसी गांव वाले ने मदद नहीं की. दर्द से करहाते-करहाते इसके होंठ सूख गए, जब इसने पानी मांगा तो लोग तमाशबीन बने देखते रहे लेकिन किसी ने उसे पानी तक नहीं दिया.
दर्द के कारण गोरी कराहती रही और मदद की गुहार लगती रही. लेकिन बगल में रहने वाली उसकी मां तक की हिम्मत नहीं हुई कि अपनी बेटी की मदद कर सके. इस दौरान गांव के काफी लोग वहां पहुंचे लेकिन किसी ने भी दर्द से कराहती गोरी की मदद नहीं की. हालांकि कुछ लोगों ने उसकी मदद करने के लिए आगे आए. जब गोरी को लेकर जाने लगे तो उसने रास्ते के एक जंगल में दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. सूचना मिलने के चार घंटे बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव में पहुंची और महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया. फिलहाल मां और उसके दोनों बच्चों की हालत ठीक हैं.
गौरतलब है कि ओडिशा में मानवता को शर्मशार करने वाला यह पहला मामला नही हैं, कालाहांडी जिले में लांझीगढ़ में एंबुलेंस चालक के रवैये के कारण एक गर्भवती को उसके घरवाले 16 किलोमीटर तक बांस के ऊपर चादर पर लटकाकर ले गए थे. इसके कुछ दिन पहले इसी गांव में एंबुलेस की सुविधा नहीं मिलने की वजह से एक गर्भवती महिला को उसके घरवालों ने स्ट्रेचर से अस्पताल पहुंचाया था, लेकिन बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई.
Bureau Report
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