नईदिल्ली: भाजपा का हिंदी प्रेम किसी से छिपा नहीं है. इसीलिए कई बार दूसरे राज्यों की ओर से ये आरोप लगाया जाता है कि केंद्र सरकार दूसरे राज्यों पर हिंदी थोप रही है. ऐसे में ये सोचा भी नहीं जा सकता है कि भाजपा का ही कोई नेता हिंदी को इतना बुरा मानता हो कि उसे देखते ही उस पर कालिख पोत दे. हम बात कर रहे हैं उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू की. जिन्होंने खुद इस बात का खुलासा किया है कि उन्हें अपनी युवावस्था में हिंदी इतनी बुरी लगती थी कि वह हिंदी में लिखे साइन बोर्ड पर कालिख पोते देते थे. उन्होंने ये बात पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी की चुनाव पर लिखी पुस्तक के हिंदी संस्करण का जिक्र करते हुए कही.
उन्होंने अपनी किशोरावस्था को याद करते हुए कहा कि उन्होंने डाकघर और रेलवे स्टेशन पर हिंदी बोर्ड पर कालिख पोत दी थी, लेकिन जब वह 1993 में दिल्ली आए तब उन्हें इस भाषा का महत्व समझ में आया. उन्होंने कहा कि हिंदी समेत अन्य भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. अन्य भारतीय भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा नहीं बल्कि भारतीय भाषाएं कहा जाना चाहिए.
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने चुनाव में धनबल के इस्तेमाल पर चिंता प्रकट की और कहा कि चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों एवं मतदाताओं को इस बुराई को खत्म करने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा. एक पुस्तक विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा कि कुछ दल एवं उम्मीदवार चुनाव से पहले मंगलसूत्र बांट रहे हैं. लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए जाने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि सालभर चुनावी खुमार का मतलब लंबे समय तक आदर्श आचार संहिता लागू करना है जिसकी वजह से विकास कार्य प्रभावित होते हैं.
उन्होंने उम्मीदवारों के खिलाफ चुनावी याचिकाओं के निस्तारण के लिए विशेष चुनाव न्यायाधिकरण गठित करने का भी सुझाव दिया, क्योंकि नियमित अदालतों में इन मामलों में वर्षों लग जाते हैं. फिलहाल ऐसी याचिकाएं उच्च न्यायालाय में दायर की जा सकती हैं. उपराष्ट्रपति ने कहा कि दलबदल कानून के वर्तमान प्रावधान और सख्त बनाए जाने चाहिए, क्योंकि वे अब भी दल-बदल की गुंजाइश छोड़ते हैं.
Bureau Report
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