नईदिल्लीः शिवसेना ने कहा है कि साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में फैसला लिया है कि वह अगले लोकसभा चुनावों में एनडीए का हिस्सा नहीं होगी. शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राज्यसभा सांसद संजय राउत ने बीजेपी से अलग होने का प्रस्ताव रखा था. जिसे पार्टी ने सर्वसम्मति से मान लिया है. पार्टी का मानना है कि बीजेपी के साथ होने से पिछले तीन साल में उसका मनोबल गिरा है. शिवसेना ने ऐलान किया है कि वह ना सिर्फ अगले लोकसभा चुनाव बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी अकेले मैदान में जाएगी.
गौरतलब है कि शिवसेना और बीजेपी में तल्खी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से ही शुरू हो गई थी. इसके बाद महाराष्ट्र नगर निकाय चुनाव के नतीजों के बाद भी शिवसेना राज्य में बीजेपी के बढ़ते कद को लेकर परेशान रही है. केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की फडणवीस सरकार पर शिवसेना लगातार हमला करती रही है और सरकार में भी बनी रही है. बता दें कि वर्तमान में 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा विधानसभा में शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. शिवसेना के पास 63 सीटें है जबकि राज्य की सत्ताधारी बीजेपी 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है.
केंद्र की बात करें तो शिवसेना ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था. इन चुनावों में राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि बीजेपी ने 23 सीटों पर कब्जा किया था. राज्यसभा में शिवसेना के तीन सांसद है. केंद्र की मोदी सरकार में शिवसेना से अनंत गीते भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यमिता मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री है.
जवानों की शहादत पर भी सरकार को घेरा था
दिसंबर महीने में शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में संपादकीय में कहा, ‘‘ शांतिकाल में किसी सैनिक की मौत से सरकार की खराब छवि बनती है. शांतिकाल में हमारे जवानों की शहादत बीते 30 सालों से हो रही है और जब मौजूदा सरकार सत्ता में आई थी तो हमें इसके थमने की उम्मीद थी.’’ संपादकीय में कहा गया है कि जब पाकिस्तान संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा था और भारतीय सैनिकों की हत्या कर रहा था तब प्रधानमंत्री और समूचा मंत्रिमंडल गुजरात में चुनाव प्रचार में मशगूल था.
शिवसेना ने कहा, ‘‘ गुजरात चुनाव जीतने के लिए आपने सूरत में व्यापारी समुदाय को जीएसटी में कई रियातें दीं. सैनिकों की जानों को बचाने के लिए आपने क्या किया?’’ इसमें कहा गया है, ‘‘ कश्मीर में सामान्य स्थिति के लौटने की बातें झूठ हैं. गुजरात में विकास खो गया है जबकि कश्मीर में शांति और सामान्य हालात लापता हैं.’’ शिवसेना ने कहा कि लोग सरकार की इस दलील को मान सकते हैं कि कश्मीर के युवाओं ने पत्थरबाजी छोड़ दी है. लेकिन देश के खिलाफ हथियार उठाने की रिपोर्टें चिंताजनक हैं.
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में बेटियों पर लाठीचार्ज पर किया था वार
साल 2017 के सितंबर महीने में शिवसेना के मुखपत्र ‘दोपहर का सामना’ में प्रकाशित संपादकीय में पार्टी ने लिखा,‘‘महंगाई दानव बन गई है और आप मौन हैं. पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान पर हैं और आप मौन हैं. व्यवस्था में सुधार के नाम पर लोग असहाय हैं और आप मौन हैं.’’पार्टी ने कहा,‘‘देश की बेटियों पर लाठीचार्ज किया जा रहा है और आप मौन हैं. आपके पार्टी कार्यकर्ता उत्पात मचा रहे हैं. आप कब तक मौन रहेंगे?’’संपादकीय के अनुसार,‘‘क्या यही आपके संसदीय क्षेत्र की बेटियों का सौभाग्य है, जिन्होंने इतनी आकांक्षाओं के साथ आपको शीर्ष पर पहुंचाया.’’ बीएचयू में छेड़छाड़ की कथित घटना के बाद छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज में बड़ी संख्या में विद्यार्थी और दो पत्रकार घायल हो गए थे. पार्टी ने प्रधानमंत्री के लिए कहा,‘‘आपने सही से दो बार सोचे-समझे बिना ऐसे कदम उठाये जिनसे देश में तूफान आ गया, लेकिन जहां तक जनता की चिंताओं की बात है तो आपने केवल ‘जुमले’गढ़े.
आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता पर उठाए सवाल
शिवसेना ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली के 20 विधायकों को ‘लाभ का पद’ धारण करने को लेकर अयोग्य करार दिए जाने में ‘जल्दबाजी’ को लेकर सवाल उठाए. शिवसेना ने कहा, “यह एक अभूतपूर्व घटना है जिसमें बहुत से चुने हुए विधायकों को थोक भाव से अयोग्य करार दे दिया गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल संकट का सामना कर रहे हैं और यह भ्रष्टाचार व अन्याय के खिलाफ सार्वजनिक अभियान के कारण है.”
‘चुनाव आयोग ने जल्दबाजी से कार्य किया’
शिवसेना ने अपने पार्टी मुखपत्र सामना और दोपहर का सामना के संपादकीय में कहा कि यहां तक कि मामले का राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संज्ञान लिया और निर्वाचन आयोग (ईसी) की सिफारिशों पर अपनी मंजूरी की मुहर लगा दी. संपादकीय में कहा गया है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में भी इसी तरह की शिकायतें थीं और यहां तक कि अभी भी कई राज्यों में हैं, लेकिन उनके पद बने हुए हैं.
संपादकीय में कहा गया है कि आप के 20 विधायकों के मामले में चुनाव आयोग ने जल्दबाजी से कार्य किया और विधायकों को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया. इस तरह की राय पूर्व ईसी अधिकारियों की भी है कि निर्वाचन आयोग ने मामले में जल्दबाजी की है. शिवसेना ने कहा, “ईसी ने विधायकों के खिलाफ शिकायत के मामले पर अपना आदेश बिना मामले की सुनवाई के या आप के 20 निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपना पक्ष रखने का मौका रखे बगैर दिया है. यह गलत है.”
केजरीवाल और एलजी के बीच जारी जंग का भी मुद्दा उठाया
संपादकीय में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल व दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल के बीच चल रही जंग का भी जिक्र किया गया है और कहा गया है कि इसमें उप राज्यपाल, केजरीवाल व आप सरकार की राह में बाधा पैदा करने का ‘एक भी मौका’ नहीं छोड़ते. शिवसेना ने कहा है, “अगर केजरीवाल की जगह कोई भाजपा का मुख्यमंत्री होता तो क्या उप राज्यपाल इस तरह से काम करने की हिम्मत दिखाते? क्या वह ईसी को 20 विधायकों को पक्ष रखे बगैर बाहर का रास्ता दिखाने को कह पाते? केंद्र से अधिक उपराज्यपाल भाजपा के एजेंट की तरह काम करते दिख रहे हैं.”
संपादकीय में कहा गया है कि इस हाल के घटनाक्रम ने चुने हुए प्रतिनिधियों के लाभ का पद धारण करने के ठीक-ठीक मायने पर एक नई बहस शुरू कर दी है, क्योंकि यह इस तरह का देश में पहला मामला है. शिवसेना ने कहा, “ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि चुनाव आयोग का इस्तेमाल आप विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में किया गया है. इससे आयोग की साख पर सवाल उठे हैं.”
Bureau Report
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