नईदिल्ली: एनडीए घटक दलों शिवसेना, तेलुगु देसम और अकाली दल के बीच उठापटक चल रही है. इन दलों ने सार्वजनिक रूप से बीजेपी पर घटक दलों की उपेक्षा का आरोप लगाया है. गुजरात चुनावों के नतीजों के बाद इन घटक दलों ने अपनी आवाज को मुखर किया है. गुजरात चुनावों में बीजेपी को दावे के मुताबिक अपेक्षित सफलता नहीं मिली. इसके उलट कांग्रेस ने अपने गठबंधन के लिए सहयोगियों की तलाश तेज कर दी है. इस कड़ी में पहली बड़ी खबर ये है कि कांग्रेस और एनसीपी एक बार फिर अपने गठबंधन को पुनर्जीवित करने जा रहे हैं. 2014 में इन दोनों दलों ने महाराष्ट्र में अपनी राहें जुदा कर ली थीं लेकिन शिवसेना के अगले चुनावों में अकेले लड़ने की घोषणा के बाद इन दोनों दलों ने एक बार फिर साथ आने का फैसला किया है.
इन सबके बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि 2019 के चुनावों से पहले यदि बीजेपी अपने एनडीए सहयोगियों को अपने पाले में रखने में कामयाब नहीं रहती और शिवसेना की तरह ही बाकी अहम क्षेत्रीय दलों ने अलग रुख अख्तियार किया तो सियासी फलक पर क्या सीन उभर सकता है?
अरविंद केजरीवाल की भविष्यवाणी
बड़ी वजह
दरअसल कांग्रेस के इस आकलन का आधार यह है कि महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे बीजेपी शासित राज्यों में इस बार कांग्रेस को बड़ी बढ़त मिलेगी. पंजाब में भी अपनी बढ़त बनाए रखने का पार्टी को अनुमान है. यानी कि यदि चुनावों में इन राज्यों में बीजेपी को नुकसान होता है तो उसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा.
सियासी सीन
विपक्ष इस बात का भी आकलन कर रहा है कि यदि बीजेपी 2019 आम चुनावों में 220 सीटों तक सिमटती है तो क्या परिदृश्य हो सकता है? पहला अनुमान यह है कि उस दशा में एनडीए के घटक दल बीजेपी के साथ सियासी सौदेबाजी की स्थिति में होंगे. ऐसे में बीजेपी को 272 के जादुई आंकड़े को हासिल करने के लिए इन दलों के प्रति लचीला रुख अपनाना पड़ेगा. हालांकि ये काफी हद तक पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रुख पर निर्भर करेगा. वैसे अभी घटक दल बीजेपी नेतृत्व पर उनकी उपेक्षा का आरोप लगा रहा है. ऐसे में नाराज चल रहे घटक दलों को साधना बीजेपी की लीडरशिप के लिए आसान नहीं होगा.
विपक्ष का दूसरा अनुमान यह है कि यदि कांग्रेस के साथ डीएमके, तृणमूल कांग्रेस एवं सपा जैसे क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत होती है तो एक तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आ सकता है. तृणमूल कांग्रेस, राजद, डीएमके, सपा जैसे दल इसके अहम सदस्य हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में कांग्रेस और तीसरा मोर्चा मिलकर सरकार बना सकते हैं. इसका नेतृत्व हालांकि कांग्रेस के पास होगा. लेकिन यदि ऐसा संभव नहीं होता है तो दूसरी स्थिति में कांग्रेस, बाहर से तीसरा मोर्चा को समर्थन दे सकती है. अतीत में ऐसा हो भी चुका है.
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