नईदिल्ली: केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राम मंदिर केस की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग की है. उनका कहना है कि जब सबरीमाला मामले की सुनवाई 6 महीने में और अर्बन नक्सल का केस दो महीने में पूरा हो सकता है तो रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस 70 साल से क्यों अटका पड़ा है. उन्होंने इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की.
विधि एवं न्याय मंत्री ने अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन अवसर पर कहा कि राम लला मामले में कोर्ट में सुनवाई क्यों नहीं हो रही इसका मेरे पास कोई उत्तर नहीं है. उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह हो ताकि जल्द से जल्द इसपर फैसला आ सके. इस समारोह में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. आर. शाह, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी भी मौजूद थे.
प्रसाद ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को कभी इस बात पर आपत्ति नहीं थी कि अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र है. वह भी मानते हैं कि यहां प्रभु राम का जन्म हुआ था. मैं मानता हूं कि यहां बाबर की इबादत नहीं होनी चाहिए. देश का आम मुस्लिम चाहता है कि हिंदुओं की भावनाओं को सम्मान मिले. लेकिन कुछ लोग हैं जो यह नहीं चाहते कि यहां राम मंदिर बने.
उन्होंने कहा कि मैं कानून मंत्री होने के नाते नहीं बल्कि भारत के एक आम नागरिक के रूप में अपील करता हूं कि इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह की जाए. इस मामले में इतने सबूत हैं कि इसपर अच्छी बहस हो सके. उन्होंने कहा कि जब अडल्ट्री कानून की सुनवाई 6 महीने में, सबरीमाला केस 5-6 महीने में और अर्बन नक्सल केस दो महीने में पूरा हो सकता है. जब आतंकियों की फांसी को लेकर रात को दो बजे कोर्ट खुल सकता है तो रामजन्मभूमि पर जल्द सुनवाई क्यों नहीं हो सकती.
प्रसाद ने अन्य लोक सेवाओं की तरह भविष्य में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति के लिये भी ‘ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेज सिस्टम’ लाने की भी बात कही. उन्होंने कहा कि वह इस बात की हिमायत करते हैं कि भविष्य की न्यायिक व्यवस्था में उच्च कोटि के न्यायमूर्तियों की ही नियुक्ति हो. प्रसाद ने अधिवेशन में उपस्थित अधिवक्ता परिषद के सदस्यों से अपील की कि गरीबों के मुकदमों का निस्तारण जल्द और कम खर्च पर किया जाए.
Bureau Report
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