पटना: कहते हैं राजनीति फुल टाइम काम है. राजनीति एक ऐसी आदत है जिसकी अगर किसी को आदत लग जाए तो वह किसी भी परिस्थिति में इससे खुद को अलग नहीं कर पाता है. रविवार को अंतिम चरण की वोटिंग के साथ ही लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) लगभग संपन्न हो जाएगा. इस पूरे चुनाव में बीजेपी बनाम विपक्ष की लड़ाई देखने मिली. इस चुनाव में बिहार की राजनीति में एक ऐसे राजनेता बीजेपी के लिए अड़चनें पैदा करते रहे जो जेल में सजा काट रहे हैं. ये राजनेता कोई और नहीं बल्कि राष्ट्रीय जनता दल (BJP) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) हैं.
लालू प्रसाद भले ही बिहार की राजधानी पटना से करीब 300 किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची के होटवार जेल में चर्चित चारा घोटाला के कई मामलों में सजा काट रहे हों, परंतु बिहार में कई वर्षो से सियासत की एक धुरी बने लालू इस चुनाव में भी खुद को सियासत से दूर नहीं रख सके. दीगर बात है कि आरजेडी और उनका सियासी परिवार भी किसी न किसी बहाने लालू को चुनाव से जोड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता. पार्टी भी लालू की सहानुभूति की लहर में अपनी चुनावी नैया पार करने में जुटी है.
चिट्ठी लिखकर महागठबंधन के लिए लालू ने मांगे वोट
बिहार में आरजेडी की प्रचार की कमान संभाले आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव हों या उनकी बहन और पाटलिपुत्र की प्रत्याशी मीसा भारती सहित आरजेडी का कोई नेता, उनकी चुनावी जनसभा बिना लालू प्रसाद के नाम के पूरी नहीं हो रही है. यह दीगर बात है कि आरजेडी के नेता इस दौरान लालू को साजिश के तहत फंसाने की बात कर सहानुभूति पाने की कोशिश भी कर रहे हैं.
ट्विटर के जरिए जनता के बीच बने रहे लालू
लालू ने चुनाव के पहले और उसके बाद बिहार के लोगों को पत्र लिखकर अपना संदेश देते हुए आरजेडी को वोट देने की अपील की थी. इसके अलावा लालू प्रसाद सोशल मीडिया के जरिए भी खुद को चुनाव में जोड़कर रख रहे हैं. लालू ट्विटर के जरिए विरोधियों की कमियां गिना रहे हैं तो कई मौके पर उन पर निशाना साध कर चुनाव में अपनी मौजूदगी जता रहे हैं. इस दौरान वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर उनपर निशाना साधने से भी नहीं चूके.
लालू के पुस्तक की भी चुनाव में चर्चा हुई
लालू ने खुद को इस चुनाव में जोड़े रखने के लिए तथा कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए मतदान के पूर्व ही एक खुला पत्र लिखकर अपना संदेश दिया. चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद की लिखी पुस्तक ‘गोपालगंज से रायसीना’ के कई अंश प्रकाश में आने के बाद लालू चर्चा में रहे. लालू किसी न किसी रूप से मतदाताओं तक पहुंच बनाने में जुटे हैं परंतु यह कितना असरकारक होगा यह देखने वाली बात होगी.
आरजेडी को खूब खल रही है लालू की कमी
बिहार की राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि लालू प्रसाद सोशल साइट, पत्र और अपने संदेशों के जरिए मतदाताओं में असर पैदा करेंगे, इसकी उम्मीद कम है. उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि पहली बार लालू प्रसाद को वर्ष 2013 में सजा हुई थी, उसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी को सहानुभूति नहीं मिली थी. इस बार भी सहानुभूति की उम्मीद करना बेमानी है. हालांकि वे इतना जरूर कहते हैं कि इस चुनाव में लालू सोशल मीडिया के जरिए जेल से ही मीडिया में अवश्य बने रहे.
पटना के वरिष्ठ पत्रकार और लालू प्रसाद की आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ के सहायक लेखक नलिन वर्मा कहते हैं कि लालू समय की अहमियत को समझते हैं. उनके जेल में रहने के बाद आरजेडी में ऐसा कोई ‘धाकड़’ नेता नहीं है.
जनता में हैं लालू की पैठ
वर्मा मानते हैं कि मतदाताओं में लालू की गहरी पैठ रही है, जिसे कोई नकार नहीं सकता. इस चुनाव में पार्टी के लोगों को यह कमी खल रही है और इसका नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है. लालू इसी वोटबैंक को बनाए रखना चाहते हैं. पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन की प्रत्याशी और आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती ने तो अपने नामांकन पत्र दाखिल करने के समय पूरे वक्त उनकी तस्वीर हाथों में लिए गले से लगाए रही.
लालू जेल में भले हैं पर सीएम उन्हीं पर हमले कर रहे हैं
आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी कहते हैं कि लालू कहीं भी रहें बिहार के लोगों पर उनकी जमीनी पकड़ को नकारा नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि लालू के सोशल मीडिया या पत्रों का मतदाताओं पर कितना असर पड़ता है इसको मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयानों से समझा जा सकता है.
उनका कहना है, “आरजेडी अध्यक्ष के बयानों का ही असर है कि मुख्यमंत्री अपनी हर चुनावी सभा में लालू प्रसाद का नाम ले रहे हैं और उनकी आलोचना कर रहे हैं. लालू के पत्र और संदेश इस चुनाव में आरजेडी के लिए काफी कारगर साबित हुए हैं.”
जेडीयू कहती है अब 1990 की राजनीति नहीं चलेगी
आरजेडी के विरोधी तिवारी के इस बयान से इत्तेफाक नहीं रखते. जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, “पटना की गंगा में 1990 के बाद बहुत पानी बह गया. अब बिहार 90 के दशक वाला बिहार नहीं है.” वे कहते हैं, “लालू होटवार जेल में कैदी नंबर 3351 क्यों बने, यह सभी लोग जानते हैं. ऐसे में आरजेडी भले ही उनके नाम पर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करे, लेकिन इसका लाभ नहीं मिलने वाला है.”
बहरहाल, आरजेडी लालू के नाम की रथ पर सवार होकर इस चुनावी रण को जीतने की कोशिश में जुटा है और लालू प्रसाद भी अपने माध्यमों से इस चुनाव में खुद को जोड़ने की कवायद में जुटे हैं. अब इसका कितना लाभ आरजेडी को मिलता है यह तो 23 मई के चुनाव परिणाम के आने के बाद ही पता चल सकेगा.
Bureau Report
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