नईदिल्लीः वैसे तो कागज सिर्फ लिखने-पढ़ने के काम आता है, लेकिन यही कागज किसी की जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर भी रख सकता है ये बात इस फिल्म ने साबित कर दी है. ये तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी सरकारी काम के लिए कागजी कार्रवाई की क्या अहमियत होती है, लेकिन आप जिंदा हैं या नहीं इसके लिए भी सरकारी कागज की आवश्यकता है यही इस फिल्म का आधार है. किसी कागज पर यदि सरकारी मोहर लग जाए तो वो कागज बेहद कीमती हो जाता है. कागज की इसी अहमियत को दिखाने के लिए डायरेक्टर सतीश कौशिक ने ‘कागज’ नाम की ये शानदार फिल्म बनाई है.
कहानी
फिल्म ‘कागज’ की कहानी उत्तर प्रदेश के रहने वाले भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) की है जो एक बैंड चलाता है. अपनी आम सी जिंदगी को खास बनाने के लिए और परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए भरत लाल कर्जा लेना चाहता हैं. इसी सिलसिले में वो लेखपाल के पास जाता हैं और अपनी जमीन के मांगता हैं, क्योंकि उन्हें कर्जा लेने के लिए बतौर सिक्योरिटी जमीन के कागज देने हैं. बस यहीं से शुरू होता है फिल्म में असली बवाल. अपने हक की जमीन की वजह से ही भरत लाल को अपनी जिंदगी की ऐसी सच्चाई का पता चलता है जिसकी वजह से उनके होश उड़ जाते हैं. भरत लाल को पता चलता है कि वो सरकारी कागजों में कई साल पहले ही मृत घोषित कर दिए गए हैं. सरकारी कागज के एक टुकड़े ने भरत लाल की जिंदगी में ऐसा तूफान खड़ा कर दिया जिसकी वजह से उन्हें खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़नी पड़ी. इस लड़ाई में वकील साधूराम (सतीश कौशिक)भरत लाल का पूरा साथ देते हैं. तो क्या भरत लाल जिंदा होकर भी अपने जिंदा होने के सबूत को अदालत में पेश कर पाएंगे? इस सवाल के जवाब को जानने के लिए सतीश कौशिक की फिल्म ‘कागज’ जरूर देखिए.
सत्य घटना से प्रेरित
फिल्म कागज सत्य घटनाओं से प्रेरित है. ये कहानी लाल बिहारी मृतक की जिंदगी पर है जो अपनी जिंदगी के 19 साल इस लड़ाई में गुजार देते हैं कि वो जिंदा हैं. डायरेक्टर सतीश कौशिक ने बहुत हद तक लाल बिहारी मृतक की जिंदगी को अपनी कहानी में दिखाया है. पहले हाफ में दर्शकों को खूब हंसाती हुई फिल्म ‘कागज’ भले ही दूसरे हाफ में थोड़े हिचकोले खाती है, लेकिन पंकज त्रिपाठी की शानदार एक्टिंग दर्शकों को बोर नहीं होने देती.
पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर जीता दर्शकों का दिल
हम सभी जानते हैं कि पंकज त्रिपाठी एक लाजवाब कलाकार हैं. जिस फिल्म के साथ उनका नाम जुड़ जाता है उस फिल्म से दर्शकों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं और इस फिल्म में भी पंकज ने दर्शकों को निराश नहीं किया. भरत लाल के किरदार में पंकज ने कमाल कर दिखाया. पंकज त्रिपाठी के अलावा भरत लाल की पत्नी के किरदार में मोनल गज्जर का काम भी काफी अच्छा है.
सतीश कौशिक का निर्देशन कमाल का रहा
सतीश कौशिक की एक्टिंग की बात हो या निर्देशन की, दोनों ही कमाल का है. सतीश कौशिन ने बतौर एक्टर हर मोड़ पर फिल्म ‘कागज’ की कहानी को एक लेवल ऊपर ही पहुंचाया है तो वहीं उनका निर्देशन भी काबिलेतारीफ रहा. फिल्म के कुछ-कुछ सीन तो ऐसे हैं जिन्हें देखकर दर्शक हैरान हो जाएंगे. FIR के लिए अपहरण करना, हारने के लिए चुनाव लड़ना, ये सभी घटनाएं दर्शकों के दिलों में अपनी छाप जरूर छोड़ेंगी.
सलमान खान की आवाज ने लगाए चार चांद
फिल्म कागज में सतीश कौशिक के साथ-साथ सलमान खान का नरेशन भी सुनने को मिलता है. जहां सलमान की कविता हर किसी को पसंद आएगी तो वहीं सतीश कौशिक का नरेशन रेडियो शो की तरह लगता है, हालांकि फिल्म में गानों की कोई जरूरत नहीं थी लेकिन बॉलीवुड फिल्म है तो गाने तो डालने ही थे. कुल मिलाकर फिल्म की कहानी काफी दिलचस्प है जिसे एक बार तो देखा ही जा सकता है.
Bureau Report
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