पटना: बिहार में एक बार फिर चुनाव की घंटी बज गई है। यह चुनाव आम जनता का नहीं, बल्कि स्थानीय निकाय कोटे से चुनी जाने वाली विधान परिषद की सीटों का है। 24 सीटों पर होने वाले इस चुनाव में भी सत्ता और विपक्ष के बीच जमकर जोर-आजमाइश होनी तय है। दोनों ही सदन में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ने वाले। इस चुनाव में खास यही है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही गठबंधन के सारे दलों की भागीदारी नहीं है। सत्ता पक्ष से केवल भाजपा और जदयू के ही उम्मीदवार मैदान में होंगे तो विपक्ष में बैठी कांग्रेस को राजद ने दरकिनार कर दिया है। कांग्रेस अपने बूते चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। हालांकि अभी तक एक भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं कर सकी है, जबकि चुनाव की तिथि घोषित हो चुकी है।
विधान परिषद की रिक्त हुई 24 सीटों के लिए चार अप्रैल को वोट पड़ने हैं और वोटों की गिनती सात अप्रैल को होगी। हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनावों में चुनकर आए लगभग एक लाख 32 हजार पंचायत प्रतिनिधि वोट डालेंगे। जिन्हें अपने पाले में करने के प्रयास चुनाव बाद ही शुरू हो गए थे। ये चुनाव राजद और भाजपा-जदयू, दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण है। राजद के लिए इसलिए, क्योंकि सदन में उसकी वर्तमान संख्या मात्र पांच है। 75 सदस्यीय सदन में कम से कम उसके आठ सदस्य होने चाहिए, ताकि नेता प्रतिपक्ष का पद सुरक्षित रह सके। अभी मौजूदा 51 सदस्यों में भाजपा के 15, जदयू के 23, राजद के पांच, भाकपा के दो, कांग्रेस के तीन, सत्ता में सहयोगी वीआइपी व हम के एक-एक व एक निर्दलीय शामिल हैं। सत्ता पक्ष में भाजपा और जदयू में 12 व 11 सीटों पर समझौता हुआ है, जबकि एक सीट राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) को दी गई है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को एक भी सीट नहीं दी गई। जबकि दोनों एक-एक सीट पर लड़ना चाहते थे। बहरहाल सत्ता पक्ष इस चुनाव में जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
विधानसभा चुनाव के बाद से ही विपक्ष जो बिखरा, वो अभी तक नहीं जुड़ सका है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही राजद और कांग्रेस में दूरी बढ़नी शुरू हो गई थी। तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में यह खटास तब और बढ़ी, जब राजद ने कांग्रेस को कोई सीट नहीं दी। कांग्रेस ने भी दोनों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। नतीजा सत्ता पक्ष के पाले में गया और जीत का मंसूबा पाले राजद दोनों ही सीटें हार गया। इस विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस कम से कम सात सीटों पर लड़ना चाहती थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के परिणाम से आहत तेजस्वी एक भी सीट देने को तैयार नहीं थे। मध्यस्थता के लिए मामला लालू दरबार तक पहुंचा, लेकिन बात नहीं बनी। लालू ने कांग्रेस के बिना राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की कल्पना को नकारा, लेकिन वे तेजस्वी को मना नहीं सके। कांग्रेस के बजाए राजद ने एक सीट भाकपा को दी है और 23 पर राजद के ही उम्मीदवार उतार दिए है। कांग्रेस ने भी सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा तो जरूर की है, लेकिन अभी तक एक का भी नाम तय नहीं हो सका है। जबकि चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है।
इस चुनाव में सभी प्रमुख दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन रिक्त 24 सीटों में भाजपा की 12, जदयू की छह, राजद की तीन, कांग्रेस और लोजपा की एक-एक व एक निर्दलीय की सीटें हैं। इसमें भाजपा को अपनी सभी सीटें बचाने की चुनौती है। वैसे देखा जाए तो सत्ता पक्ष की 19 सीटें दांव पर हैं। राजद को सदन में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए अपनी तीनों सीटें बचानी होंगी। भाजपा व जदयू में सीटों का बंटवारा तो हो गया है, लेकिन प्रत्याशियों की घोषणा अभी तक नहीं हो सकी है। जबकि राजद इस मामले में आगे है, उसने अपने प्रत्याशियों की घोषणा पहले ही कर दी है। हालांकि सत्ता पक्ष ने नाम भले ही न घोषित किए हों, लेकिन लड़ाने वालों को मैदान में मेहनत करने की हरी झंडी दे दी गई है। नतीजा क्या होगा, यह तो सात अप्रैल को सामने आएगा, लेकिन साख और नाक का सवाल बने इस चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले ही होंगे।
Bureau Report
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